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कोविंद दांव से हिला विपक्ष, दलित बनाम दलित बनाने पर भी मतभेद

22 जून को विपक्षी राष्ट्रपति उम्मीदवार पर अपना फैसला करेंगे। विपक्ष की तरफ से मीरा कुमार के साथ शिंदे और प्रकाश अंबेडकर के नाम पर मंथन हो रहा है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Tue, 20 Jun 2017 10:05 AM (IST)Updated: Tue, 20 Jun 2017 11:50 AM (IST)
कोविंद दांव से हिला विपक्ष, दलित बनाम दलित बनाने पर भी मतभेद
कोविंद दांव से हिला विपक्ष, दलित बनाम दलित बनाने पर भी मतभेद

संजय मिश्र, नई दिल्ली। एनडीए के रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के फैसले ने विपक्षी गोलबंदी की नींव हिला दी है। कोविंद जैसा गैरविवादित चेहरा सामने आने से असहज विपक्ष ने अपनी सियासत बचाने के लिए अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार भी उतारने का इरादा तय कर लिया है। हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार कोविंद के विरोध के पक्ष में नहीं है। इस दुविधा के बीच विपक्षी खेमा कोविंद के मुकाबले पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाने पर गंभीर है।

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वहीं एनडीए के सियासी दांव के घाव को खत्म करने के लिए पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और बाबा साहब अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर भी विपक्ष के संभावित राष्ट्रपति उम्मीदवारों की सूची में शामिल हैं। विपक्षी दल 22 जून को अपनी बैठक में एनडीए के खिलाफ अपने उम्मीदवार के नाम का फैसला करेंगे।

रामनाथ कोविंद के नाम के ऐलान के तत्काल बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने एनडीए के कदम को एकतरफा फैसला करार देते हुए साफ संकेत दे दिया कि विपक्ष अब आम सहमति के लिए राजी नहीं होगा। आजाद ने कहा कि उम्मीदवार तय कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को इसकी सूचना दी। जाहिर तौर पर इसमें विपक्षी दलों से कोई राय-मशविरा नहीं किया गया। इसीलिए विपक्ष दल सामूहिक रुप से अपनी बैठक में 22 जून को राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले में उतरने पर फैसला लेंगे। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने भी एनडीए उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष का प्रत्याशी उतारे जाने का ही संकेत दिया। कांग्रेस और वामदलों के अलावा तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी भी कोविंद के नाम पर आम सहमति के पक्ष में नहीं हैं।

कांग्रेस और वामदल बेशक कोविंद के खिलाफ दलित चेहरे को उम्मीदवार बनाने की वकालत कर रहे हैं। मगर जदयू अध्यक्ष बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत कुछ पार्टियां राष्ट्रपति चुनाव को दलित बनाम दलित बनाने के पक्ष में नहीं है। उनका मानना है कि इसका सियासी संदेश अच्छा नहीं जाएगा। सूत्रों का कहना है कि नीतीश ने कोविंद की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद सोनिया गांधी से हुई फोन पर वार्ता के दौरान बिहार के राज्यपाल के तौर पर उनके काम की तारीफ की। साथ ही कहा कि कोविंद एक महादलित अच्छा चेहरा हैं और यही जदयू के लिए दुविधा की स्थिति है। बताया जाता है कि नीतीश भी कोविंद के खिलाफ दूसरे दलित को उतारने के पक्ष में नहीं है। जदयू महासचिव केसी त्यागी ने भी यह माना कि कोविंद एक चौंकाने वाला अच्छा नाम है मगर उनकी पार्टी विपक्षी एकता और विचारधारा के लिए समर्पित है।

सूत्रों के मुताबिक नीतीश के विपरीत लालू प्रसाद ने कोविद का नाम आने के बाद सोनिया से वार्ता में आम सहमति की बजाय विपक्ष का उम्मीदवार उतारने की बेबाक राय दी। कोविंद की उम्मीदवारी ने सपा और बसपा के लिए भी सियासी मुसीबत बढ़ा दी है। हालांकि बसपा प्रमुख मायावती ने विपक्षी खेमे की अगुआई कर रही कांग्रेस को यह कहते हुए राहत दी कि कोविंद से बेहतर दलित चेहरा विपक्ष लेकर आता है तो बसपा उसे समर्थन देगी।

विपक्षी सियासत के इस डांवाडोल अंदरुनी समीकरण के मद्देनजर ही राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार को लेकर अब गंभीर मंत्रणा शुरू हो गई है। विपक्ष के कई दलों के नेताओं ने अनौपचारिक वार्ता में स्वीकार किया कि कोविंद के नाम ने विपक्षी पार्टियों को न केवल भौंचक किया है बल्कि आपस में इस पर गंभीर मतभेद हैं कि राष्ट्रपति चुनाव को दलित बनाम दलित की लड़ाई बनाना कितना सही होगा। इन मतभेदों के बीच मीरा कुमार बड़े दलित और महिला चेहरे के तौर पर पहली पसंद रही हैं। मगर कोविंद का नाम आने के बाद कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दल एनडीए के असंतुष्ट घटक शिवसेना पर निगाह लगा रहे हैं।

इसी रणनीति के तहत महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले दिग्गज कांग्रेसी पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे का नाम विपक्ष के दूसरे गंभीर प्रत्याशी के रूप में चर्चा में आया। शिंदे भी बड़े दलित नेता हैं। एनडीए के दलित दांव का असर खत्म करने की रणनीति के तहत ही बाबा साहब अंबडेकर के पौत्र प्रकाश अंबडेकर को उम्मीदवार बनाने को लेकर भी विपक्षी दलों के बीच विचार मंथन हो रहा है। ऐसा हुआ तो राजग सहयोगी शिवसेना भी मराठी मानुष के तर्क के साथ खेमे में आ सकता है।

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