बेटियों के हक के लिए कर रही आवाज बुलंद
बच्चों को शिक्षित करने के लिए गांवों में मुफ्त कोचिंग संस्थान चलाए जा रहे हैं। उनके प्रयास से इलाके में बाल विवाह पर कुछ हद तक अंकुश लगा है।
दरभंगा (सुरेंद्र त्रिवेदी)। अत्यंत पिछड़े परिवार की बेटी शर्मीला (28) इलाके में किसी परिचय की मोहताज नहीं है। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ बीते पांच साल से सक्रिय शर्मीला को ग्रामीण दीदी के नाम से पुकारते हैं। शर्मीला गांव-गांव जाकर बाल विवाह और दहेज प्रथा के विरुद्ध लोगों को संकल्प दिला रही हैं। अब तक तीन हजार परिवारों ने बाल विवाह नहीं करने का संकल्प पत्र भरा है। बच्चों को शिक्षित करने के लिए गांवों में मुफ्त कोचिंग संस्थान चलाए जा रहे हैं। उनके प्रयास से इलाके में बाल विवाह पर कुछ हद तक अंकुश लगा है।
सुशीला जी से मिली प्रेरणा : बकौल शर्मीला, बचपन से समाज व परिवार में माताओं को केवल बेटी जनने के लिए दंडित होते देखा। खुद भी बेटी होने का दंड झेला। दादा ने बेटी जनने के कारण मां को घर से निकाल दिया। तीन बहनों ने गरीबी में किसी तरह पढ़ाई की। दसवीं के बाद शादी कर दी गई। सास-ससुर अच्छे मिले। आगे पढ़ाई की इच्छा जताई तो सास ने साथ दिया। बीए तक शिक्षा ली। ट्यूशन पढ़ाती थी। महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं से मन व्यथित था। इसी दौरान एक स्वंयसेवी संस्था की संचालिका सुशीला जी से मुलाकात हुई। उनकी प्रेरणा से कुछ करने का विचार प्रबल हुआ। बाद में भ्रूण हत्या, बाल विवाह और वंचितों की शिक्षा के क्षेत्र में काम करनेवाली संस्था हेल्पलाइन फाउंडेशन से जुड़ी। बतौर, समन्वयक गांवों में जाकर लोगों को जागरूक कर रही हूं। सदर प्रखंड के बालूघाट स्थित ससुराल में रह रही शर्मीला तीन बच्चों की मां है।
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