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बारिश की बूदों को सहेजने में जुटे दीवान सिंह

उपनगरी में जल संरक्षण की बात हो तो लोगों की जुबां पर दीवान सिंह का नाम जरूर आएगा। यमुना सत्याग्रह व रिज बचाओ आंदोलन व द्वारका के तालाब पुनर्जीवन अभियान से जुड़े दीवान सिंह बताते हैं कि हमें प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करने के साथ ही इनके संरक्षण पर भी

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Sat, 31 Jan 2015 10:15 AM (IST)Updated: Sat, 31 Jan 2015 10:23 AM (IST)
बारिश की बूदों को सहेजने में जुटे दीवान सिंह

पश्चिमी दिल्ली, जागरण संवाददाता। उपनगरी में जल संरक्षण की बात हो तो लोगों की जुबां पर दीवान सिंह का नाम जरूर आएगा। यमुना सत्याग्रह व रिज बचाओ आंदोलन व द्वारका के तालाब पुनर्जीवन अभियान से जुड़े दीवान सिंह बताते हैं कि हमें प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करने के साथ ही इनके संरक्षण पर भी ध्यान देना चाहिए। बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए उन्होंने द्वारका में जनांदोलन खड़ा कर दिया। जल संरक्षण के कार्य में उन्होंने अपने साथ न सिर्फ आम लोगों को, बल्कि सरकारी एजेंसियों को भी लेने में सफलता पाई। आज इस प्रयास का असर भी नजर आने लगा है। द्वारका में मृतप्राय हो चले जोहड़ों को न सिर्फ पुनर्जीवन मिला, बल्कि अब अन्य बदहाल जोहड़ों के भी संरक्षण की आस जगी।

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यदि आप प्रकृति से प्रदत्त संसाधनों का प्रयोग करते हैं तो इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि यह प्रयोग इतनी ही मात्र में हो कि इसके वजूद पर कोई संकट न हो। प्रकृति से यदि लें तो इसे बदले में कुछ देने की भी प्रवृत्ति हम सभी को विकसित करनी होगी। द्वारका व आसपास में जैव विविधता की बात करें तो कुछ इलाके में अभी जैव विविधता कायम है। इनमें सेक्टर 23 स्थित पोचनपुर तालाब, भारत वंदना पार्क परिसर में स्थित जोहड़, नजफगढ़ झील व आसपास का क्षेत्र शामिल है। समस्या यह है कि मानवीय हस्तक्षेप के कारण इन सीमित जगहों पर कायम जैव विविधता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। तालाबों व झीलों में एक तो पानी रहा नहीं और जहां है वहां पानी पूरी तरह दूषित हो चुका है। समस्या यह है कि तालाबों में पानी का प्रमुख स्रोत पहले बारिश होता था, लेकिन शहरीकरण के कारण तालाबों का जल ग्रहण क्षेत्र अब सिकुड़ चुका है। सरकारी एजेंसियों को इस बात की तनिक भी फिक्र नहीं रही कि आखिर इनमें बारिश का पानी कैसे पहुंचे। विकास के नाम पर कई जोहड़ों को मिट्टी से भर दिया गया। कई पर मकान बना दिए गए। जल संरक्षण के परंपरागत स्रोत तालाब व जोहड़ की कीमत पर किए गए विकास को हम विकास नहीं कह सकते। इसकी कीमत आने वाले समय में किसी न किसी पीढ़ी को चुकानी होगी।

कई तालाबों को मिला पुनर्जीवन

दीवान सिंह के प्रयासों से उपनगरी के विभिन्न क्षेत्रों में मृतप्राय हो चुके कई जोहड़ों को पुनर्जीवन मिला। इनमें सेक्टर-23 स्थित पोचनपुर तालाब सबसे प्रमुख है। इसके अलावा उन्होंने डीडीए को उन पुराने जोहड़ों की खुदाई कर उन्हें पुनर्जीवित करने पर विवश किया जिनका अस्तित्व खतरे में था। उपनगरी के विभिन्न हिस्सों में करीब एक दर्जन तालाब ऐसे हैं जहां दीवान के प्रयासों से अब बारिश का पानी बर्बाद होने के बजाय एकत्रित होता है। दीवान बताते हैं कि लोगों को अपने आसपास स्थित पेड़-पौधों, नदी, तालाब, जंगल यानी स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों से तालमेल बैठाना होगा। जब तक हम स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों के साथ तालमेल नहीं बनाएंगे तब तक हम प्रकृति का भला नहीं कर सकते।

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