Move to Jagran APP

कायापलट के फेर में उथल-पुथल का शिकार हो गई रेल, चरमरा गया है प्रशासनिक ढांचा

उत्कल एक्सप्रेस हादसे ने साबित कर दिया है कि रेलवे बेहोशी में है। उस पर कायापलट का नशा चढ़ गया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 21 Aug 2017 07:21 AM (IST)Updated: Mon, 21 Aug 2017 11:38 AM (IST)
कायापलट के फेर में उथल-पुथल का शिकार हो गई रेल, चरमरा गया है प्रशासनिक ढांचा
कायापलट के फेर में उथल-पुथल का शिकार हो गई रेल, चरमरा गया है प्रशासनिक ढांचा

 संजय सिंह, नई दिल्ली। उत्कल एक्सप्रेस हादसे ने साबित कर दिया है कि रेलवे बेहोशी में है। उस पर कायापलट का नशा चढ़ गया है। यह नशा इस कदर हावी हो चुका है कि साधारण कार्य भी अब उससे नहीं होते। यह भी कोई बात हुई कि जो मरम्मत हादसा रोकने हो रही हो, वही हादसे का कारण बन जाए। रेलवे को ट्रेनों रफ्तार बढ़ाने की ऐसी धुन चढ़ी है कि ज्यादातर रूटों पर ट्रैक की मरम्मत के लिए ब्लॉक देना ही बंद कर दिया गया है।

loksabha election banner

 यह नशा झटपट सब कुछ बदल डालने का है। जब तक इस नशे का इलाज नहीं किया जाता, हादसे रुकने वाले नहीं हैं। सवा तीन सालों में रेलवे में सब कुछ उलटा-पुलटा हो गया है। अब मंत्री का काम रेलवे बोर्ड, बोर्ड का काम जीएम और उसका काम डीआरएम संभाल रहे हैं। और सबका जोर इस बात पर है कि कैसे रेल में हो रहे कार्यो को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाए और यात्रियों से ज्यादा से ज्यादा पैसे वसूले जाएं। इस आपाधापी में निर्णय और निगरानी की बागडोर ऊपर के बजाय नीचे खिसक गई है और नीचे के स्तर पर मनमानी शुरू हो गई है। ऊपर वालों को इस मनमानी की कोई खबर नहीं है। रेल मंत्री ने स्वयं को नीतियां बनाने तक सीमित कर लिया है। जबकि उन्हें लागू कराने वाला रेलवे बोर्ड कामचलाऊ चेयरमैन के कारण प्राय: अपंग है। ऐसे में जीएम और डीआरएम अपने हिसाब से फैसले ले रहे और उन्हें लागू कर रहे हैं। रेलवे का प्रशासनिक ढांचा चरमरा गया है।

 रेलवे की यह हालत बिबेक देबराय समिति की रिपोर्ट के कारण हुई है। जिसे टुकड़ों में लागू किया गया। छोटी और आसान चीजों को तो अपना लिया गया। मगर बड़ी और कठिन समस्याएं जस की तस छोड़ दी गई। समिति ने बोर्ड को दो हिस्सों में बांटने तथा सदस्य, संरक्षा का नया पद सृजित करने को कहा था। परंतु इसके बजाय कुछ सदस्यों का नया नामकरण कर उनकी जिम्मेदारियों से छेड़छाड़ की गई। इतना ही नहीं, ट्रेन आपरेशन से जुड़े काबिल अफसरों को कायाकल्प परिषद, मिशन रफ्तार, पर्यावरण निदेशालय जैसे दीर्घकालिक कार्यक्रमों में लगा दिया गया। ट्रेनों की रफ्तार 130 और 160 किलोमीटर तक बढ़ाने की ऐसी धुन चढ़ी है कि ट्रैक की मरम्मत के लिए ब्लॉक देने की परंपरा को लगभग खत्म कर दिया गया है।

 नतीजतन, ज्यादातर ट्रैक की मरम्मत या तो हो ही नहीं पा रही है। या हो रही है तो बेहद आधे-अधूरे ढंग से। बढ़ते ट्रेन हादसों की यह बहुत बड़ी वजह है।सच तो यह है कि रेलवे का तमाम अमला इस बात की चिंता करने के बजाय कि ट्रेनों का सुरक्षित और समय पर संचालन कैसे हो, इस बात में उलझा रहता है कि यात्रियों की जेब कैसे ढीली की जाए तथा निजीकरण के रास्ते कहां-कहां से निकाले जाएं, ताकि येन केन प्रकारेण रेलवे की आमदनी बढ़ाई जा सके। इसका सबसे बढि़या उदाहरण फ्लेक्सी फेयर और ई-कैटरिंग स्कीमें हैं, जिन्हें फ्लॉप होने के बावजूद बढ़ावा दिया जा रहा है।

यह भी पढें: 'महाकाली' शो के कलाकारों की सड़क दुर्घटना में मौत, शूटिंग से लौटते समय हुआ हादसा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.