ध्वस्त हुई रेल की राजनीति, ठोस जमीन तैयार करने में जुटे प्रभु
नई सरकार की नई सोच की पहली बड़ी झलक रेलवे ने दे दी है। 'रेल की राजनीति' को धराशायी करते हुए बजट में सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह हर पांच-छह महीने में होने वाले चुनावों से प्रभावित हुए बिना पांच साल में ठोस जमीन तैयार करने में
नई दिल्ली, आशुतोष झा। नई सरकार की नई सोच की पहली बड़ी झलक रेलवे ने दे दी है। 'रेल की राजनीति' को धराशायी करते हुए बजट में सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह हर पांच-छह महीने में होने वाले चुनावों से प्रभावित हुए बिना पांच साल में ठोस जमीन तैयार करने में जुट गई है।
रेलवे का खजाना दुरुस्त करने के लिए भी और खुद की विश्वसनीयता के लिए भी। यही कारण है कि राजनीतिक दलों और नेताओं की संतुष्टि की बजाय सीधे जनता तक पहुंचने की कोशिश में प्रभु की रेल ने हर किसी को चौंका दिया।
पिछले डेढ़ दशक में छोटा सा काल छोड़ दें तो रेल की राजनीति का हाल यह रहा है कि रेल मंत्रालय हमेशा गठबंधन सहयोगी के पास रहा और उसी के सहारे सियासत भी हुई। तीस साल में पहली बार बहुमत से चुनकर आई मोदी सरकार ने मौका मिलते ही इसे ध्वस्त कर दिया।
रेलवे को राज्यों की राजनीति से बाहर निकाल दिया। दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए यह संकेत दे दिया गया है कि आगे भी कई बड़े बदलाव दिख सकते हैं।
गुरुवार को मोदी सरकार ने अब तक का सबसे अनूठा रेल बजट पेश किया। अगले छह महीने में भाजपा के लिए अहम माने जा रहे बिहार में चुनाव है। लेकिन सरकार ने लोकलुभावन दिखने की कोशिश नहीं की। बजट से नई ट्रेनों का वह हिस्सा गायब था जिसका हर किसी को इंतजार होता है।
जाहिर तौर पर सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि रेल पर चढ़कर वह न तो खुद सियासत करेगी और न ही किसी और को करने देगी। दरअसल, राजनीतिज्ञों की ओर से सबसे ज्यादा आग्रह और सुझाव ट्रेनों को लेकर ही होते हैं। संसद में इसपर चुप्पी ने एकबारगी हर किसी को चौंका दिया। कुछ तो यह विश्वास करने की ही तैयार नहीं थे कि बजट में एक भी नई ट्रेन की घोषणा नहीं की गई है।
थोड़ा शोर भी हुआ लेकिन सरकार का यह कदम इतना सधा हुआ था कि बाद में भी विपक्षी नेता इस टीस को दिल के अंदर ही दबा गए। आलोचना के लिए नए बिंदु ढूंढे जाने लगे हैं। हालांकि सूत्र इससे भी इनकार नहीं करते हैं कि बीच बीच में कुछ नई ट्रेनों की घोषणाएं हो सकती हैं।
यह और बात है कि यात्री सुविधा, स्वच्छता, ट्रेन स्पीड, अतिरिक्त बागी के सहारे सरकार ने यह जरूर सुनिश्चित कर लिया है कि जनता निराश न हो। हां, इसका फायदा दिखने में जरूर कुछ समय लगे लेकिन सरकार पांच साल में स्पष्ट बदलाव दिखाना चाहती है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार रेलवे में सुधार की बात करते रहे हैं।
पांच साल के कार्यकाल में मोदी सरकार यह क्रियान्वित करके दिखाना चाहती है। जबकि अपने अपने ठिकानों से रेल चलवाने या रुकवाने का आग्रह करने वाले सांसदों को भी रेल स्वच्छता के लिए सांसद निधि कोष से वित्तीय मदद देने का आग्रह कर चुनौती पेश कर दी है।