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रेल बजट को आम बजट में शामिल करने के लिए इतिहास खंगाल रहे हैं 'प्रभु'

रेल बजट को आम बजट में शामिल करने का माहौल बना रहे रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने 1924 से 1946 के रेल बजट भाषणों का संकलन जारी किया।

By anand rajEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2016 12:54 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2016 03:31 AM (IST)
रेल बजट को आम बजट में शामिल करने के लिए इतिहास खंगाल रहे हैं 'प्रभु'

संजय सिंह, नई दिल्ली। केंद्र सरकार रेल बजट के केंद्रीय आम बजट में विलय करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु रेल बजट के विलय के लिए मजबूत तर्क रेलवे के इतिहास में तलाश रहे हैं।

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1924-25 में रेलवे के अलग बजट के लिए दिये गये उद्देश्यों की पूर्ति न हो पाने की वजह से प्रस्तावित विलय तार्किक बताया जा रहा है।विलय की भूमिका के तौर पर रेल मंत्री ने 1924-25 से 1946-47 तक के रेल बजट भाषणों की संकलन पुस्तिका का बुधवार को अनावरण किया। इसका मकसद लोगों को यह बताना है कि 1924 में रेल बजट को आम बजट से पृथक करने का मकसद पूरा नहीं हुआ है।

कमेटी ने थी अलग बजट की सिफारिश

वह अंग्रेजों का जमाना था और देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग रेलवे कंपनियां कार्यरत थीं। इनके एकीकरण के लिए सरकार ने विलियम एकवर्थ की अध्यक्षता में ईस्ट इंडिया रेलवे कमेटी का गठन किया। इसी समिति की सिफारिश पर सरकार ने सभी रेलों का प्रबंध अपने हाथ में लेने के साथ 1924 में रेल बजट को आम बजट से पृथक कर दिया।

वित्त आयुक्त की नियुक्ति 1929 मेंइतना ही नहीं, इस मकसद से रेलवे बोर्ड का विस्तार कर उसमें वित्त आयुक्त के रूप में एक नये सदस्य को शामिल करने का निर्णय भी लिया गया। तदनुसार एक अप्रैल, 1929 को पहले वित्त आयुक्त ने ऑडीटर जनरल से रेलवे के हिसाब-किताब की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली।

कारोबार की तरह चलाना था रेलवे को

उस समय के रेल बजट भाषण में रेल बजट को पृथक करने के पीछे यह तर्क दिया गया था कि चूंकि रेलवे का कार्य वाणिज्यिक प्रकृति का है, लिहाजा इसे वाणिज्यिक सिद्धांतों पर चलाये जाने के लिए इसका पृथक खाता-बही होना चाहिए। इससे रेलवे अपने कार्यो पर ज्यादा बेहतर ढंग से ध्यान दे सकेगा और घाटे के बजाय लाभ में रहेगा। इसी के साथ यह व्यवस्था भी की गई कि जब कभी भी रेलवे को अपने विकास कार्यो के लिए सामान्य राजकोष से धन लेने की जरूरत पड़ेगी तो वह उसकी वापसी वार्षिक लाभांश के रूप में सरकार को करेगा।

नेतागीरी ने भटकाया

दुर्भाग्य से नेतागीरी के कारण ये पवित्र उद्देश्य पूरी नहीं हुए और रेलवे की यात्री सेवाएं घाटे का सौदा बनती चली गई। यही वजह है कि मौजूदा सरकार रेल बजट को वापस आम बजट का हिस्सा बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है क्योंकि जब सरकार के पैसे से ही रेल चलनी है तो अलग ढपली-अलग राग का क्या मतलब। वैसे भी 1924 तक आम बजट में रेलवे की हिस्सेदारी 70 फीसद हुआ करती थी। जबकि आज रेलवे का हिस्सा घटकर 15 फीसद से भी कम रह गया है।

लालू ने शुरू की थी परिपाटी

रेल बजट भाषणों का संकलन जारी करने की परिपाटी की शुरुआत रेलमंत्री के रूप में लालू प्रसाद ने की थी। उन्होंने 4 मई, 2006 को 1947-48 से 2006-07 तक के रेल बजट भाषणों का संकलन जारी किया था।

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