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कांग्रेस में राहुल युग की शुरुआत, निर्विरोध चुने गए अध्यक्ष; जश्न का माहौल

47 साल के राहुल कांग्रेस का शीर्ष पद संभालने वाले नेहरू-गांधी परिवार के छठे सदस्य होंगे। वह पिछले 13 साल से मां और वर्तमान पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में राजनीति की बारीकियां सीख रहे हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 11 Dec 2017 07:06 AM (IST)Updated: Mon, 11 Dec 2017 04:33 PM (IST)
कांग्रेस में राहुल युग की शुरुआत, निर्विरोध चुने गए अध्यक्ष; जश्न का माहौल
कांग्रेस में राहुल युग की शुरुआत, निर्विरोध चुने गए अध्यक्ष; जश्न का माहौल

जेएनएन, नई दिल्ली। राहुल गांधी आज सोमवार को 132 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। चूंकि किसी और ने नामांकन दाखिल नहीं किया था, इसलिए नाम वापसी के अंतिम दिन यानी सोमवार को उन्हें निर्विरोध का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया है। वैसे औपचारिक रूप से कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनकी ताजपोशी 16 दिसंबर को होगी। 47 साल के राहुल कांग्रेस का शीर्ष पद संभालने वाले नेहरू-गांधी परिवार के छठे सदस्य होंगे। वह पिछले 13 साल से मां और वर्तमान पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में राजनीति की बारीकियां सीख रहे हैं। चार साल से संगठन में उनकी हैसियत दूसरे नंबर की रही है। इस दौरान पार्टी बिखरी-बिखरी सी दिखी। गिने-चुने प्रदेशों में ही उसकी सरकारें रह गई हैं। ऐसे प्रतिकूल समय में राहुल की ताजपोशी को भले ही नया दौर बताया जा रहा हो, लेकिन उनके सामने चुनौतियों की फेहरिस्त लंबी होगी।

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दिल्ली पार्टी कार्यालय के बाहर जश्न का माहौल

राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष चुने जाने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल है। दिल्ली में कांग्रेस कार्यालय के बाहर कार्यकर्ताओं ने बैंड-बाजे के साथ राहुल की ताजपोशी का जश्न मनाया। भारी संख्या में कार्यकर्ता दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय पर पहुंचे और राहुल गांधी को निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने पर बधाई दी।

नेहरू-गांधी छाया से निकलना

राहुल गांधी नेहरू-गांधी विरासत के उत्तराधिकारी हैं, लेकिन युवा मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए सिर्फ यही काफी नहीं रह गया है। युवा भारत की उम्मीदें-आकांक्षाएं बदल चुकी हैं। लिहाजा राहुल गांधी को नेहरू-गांधी परिवार की परछाईं से बाहर निकलकर लोगों तक पहुंचना होगा। प्रधानमंत्री मोदी मतदाताओं से सीधे जुड़ने के लिए जाने जाते हैं। इसी तरह राहुल गांधी को भी जनता से सीधे जुड़ने के लिए अपना रास्ता खोजना होगा।

सिर्फ छह राज्य रह गए हैं

पार्टी में नेता अधिक, कैडर कम हैं। नए अध्यक्ष के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती होगी कि 2014 के लोकसभा चुनाव सहित एक के बाद दूसरे राज्य खोती जा रही पार्टी का जनाधार कैसे मजबूत किया जाए? पार्टी की खोई साख कैसे वापस आए? कभी पूरे देश में एकछत्र राज करने वाली पार्टी के पास सिर्फ छह राज्य बचे हैं। इनमें केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी भी है। ऐसे में पार्टी और इसके कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार करना पार्टी अध्यक्ष के लिए बड़ी चुनौती होगी। चुनावी सफलताएं ही पार्टी में ऊर्जा का संचार करेंगी।

नेहरू गांधी परिवार से अध्यक्ष (बनते समय उम्र)

मोतीलाल नेहरू (58)

जवाहर लाल नेहरू(40)

इंदिरा गांधी (42)

राजीव गांधी (41)

सोनिया गांधी (52)

राहुल गांधी (47)

बड़े राज्यों में जीत से ही साबित हो पाएगा नेतृत्व

अब हर चुनाव की जीत-हार का सेहरा पार्टी अध्यक्ष के सिर बंधेगा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे सबसे पहले आएंगे। अगले साल मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में चुनाव होंगे जो 2019 के लोकसभा का रुझान तय करेंगे। इन राज्यों में कांग्रेस के प्रदर्शन पर ही 2019 के नतीजों का दारोमदार होगा। कांग्रेस के बारे में यह किसी से छिपा नहीं कि वहां जीत का सेहरा गांधी परिवार के माथे पर ही बंधता है, जबकि हार की जिम्मेदारी सामूहिक होती है। 

मोदी की लहर सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती

प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के बूते भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में एक के बाद एक राज्य कांग्रेस से छीनती जा रही है। असम जैसे परंपरागत कांग्रेसी राज्य भी भाजपा के पास आ चुके हैं। ऐसे में मोदी लहर से पार पाना राहुल के सामने बड़ी चुनौती होगी। राहुल को इस चुनौती का अहसास है। इसीलिए वह गुजरात के चुनाव में प्रचार के दौरान बार-बार सीधे प्रधानमंत्री पर हमला बोल रहे हैं।

वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच बनाना होगा संतुलन

पार्टी में वरिष्ठ नेताओं के साथ नए और युवा नेताओं के बीच संतुलन बनाना नए अध्यक्ष के सामने बड़ा काम होगा। कई राज्यों की पार्टी इकाइयों में इन दोनों तरह के नेताओं के बीच सत्ता संग्राम सामने आ चुका है। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट का मामला सबके सामने है। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह और दिल्ली में शीला दीक्षित व अजय माकन इसके उदाहरण हैं। कांग्रेस में सीनियर और युवा नेताओं के बीच खींचतान का इतिहास रहा है। कहना कठिन है कि राहुल के राज में क्या होगा।

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