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सिर्फ जिताऊ सीटों पर ही प्रचार करेंगे राहुल

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी को सोच से भी ज्यादा बदल देने का वादा कर चुके उपाध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर चुनाव से मुकाबिल हैं। इस बार हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में होने वाले चुनावों में राहुल का राजनीतिक कौशल दांव पर है। हालांकि, अपनों के नि

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 09:17 PM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 09:21 PM (IST)
सिर्फ जिताऊ सीटों पर ही प्रचार करेंगे राहुल

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी को सोच से भी ज्यादा बदल देने का वादा कर चुके उपाध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर चुनाव से मुकाबिल हैं। इस बार हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में होने वाले चुनावों में राहुल का राजनीतिक कौशल दांव पर है। हालांकि, अपनों के निशाने पर आए राहुल को बचाने के लिए पार्टी ने मोर्चेबंदी शुरू कर दी है।

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इसके तहत उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों में प्रदेश छोड़कर न जाने का वादा कर चुके राहुल राज्य विधान सभा के उप चुनावों में प्रचार करने नहीं जाएंगे। वहीं संकेत मिले हैं कि विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में भी राहुल जीत की संभावना वाली सीटों पर ही प्रचार करते नजर आएंगे।

लोकसभा चुनावों में हार का ठीकरा खुद व अपनी टीम पर फोड़े जाने से असहज राहुल गांधी विधानसभा चुनावों में खुद को परिणामों की कसौटी पर कसे जाने से बचना चाह रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक पार्टी उपाध्यक्ष के कार्यालय में विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में जिताऊ सीटों की सर्वे रिपोर्ट बनाई जा रही है। राहुल गांधी सिर्फ इन्ही सीटों पर प्रचार करते नजर आएंगे। यही नहीं चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी बिना लिखा भाषण पढ़ते नजर आएंगे। इसके लिए प्रचार वाली सीटों के जातीय और समाजिक समीकरणों के आधार पर पावर प्वाइंट राहुल के पास रहेंगे और वह उसके जरिए अपनी बात कहेंगे।

हालांकि, पार्टी उपाध्यक्ष के इस सुरक्षित राह पकड़ने से पीढ़ीगत बदलाव के मुहाने पर खड़ी कांग्रेस में परिवर्तन का इंतजार और लंबा हो सकता है। पार्टी में हो रही बगावत व संगठन में संभावित बदलाव की खबरों के बीच पार्टी उपाध्यक्ष का सामने आकर जिम्मेदारी संभालने से बचने का प्रयास आंतरिक असंतोष को और बढ़ा सकता है। राहुल के बेहद करीबी माने जाने वाले पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह का राहुल की खामोशी को लेकर सवाल उठाना यह जाहिर करता है कि पार्टी राहुल के जिम्मेदारी उठाने में हो रही देरी से उकता चुकी है।

वैसे पार्टी के एक और वरिष्ठ महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने सक्रिय राजनीति में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को लेकर उम्र की सीमा तय किए जाने की बात कह बहस छेड़ने की कोशिश की है, लेकिन बदलाव की बात कह रही 'टीम राहुल' में भी इसको लेकर एक राय नहीं है।

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