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देश के किसी हिस्से में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को सहन नहीं किया जाएगा:शाह

जेएनयू में चल रहे देश विरोधी गतिविधियों के विवाद में भाजपा ने मोर्चा संभाल रखा है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि देश की जमीन पर देश के किसी भी हिस्से में देशद्रोही गतिविधियों को सहन नहीं किया जाएगा।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 15 Feb 2016 12:38 PM (IST)Updated: Mon, 15 Feb 2016 09:08 PM (IST)
देश के किसी हिस्से में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को सहन नहीं किया जाएगा:शाह

नई दिल्ली। जेएनयू में चल रहे देश विरोधी गतिविधियों के विवाद में भाजपा ने मोर्चा संभाल रखा है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि देश की जमीन पर देश के किसी भी हिस्से में देशद्रोही गतिविधियों को सहन नहीं किया जाएगा। शाह ने जेएनयू में राष्ट्र विरोधी नारे लगाने वालों की जमकर आलोचना की।

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इससे पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपने ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से कांग्रेस, सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए देश से मांफी मांगने की बात कही है।

भाजपा अध्यक्ष ने सोनिया व राहुल पर हमला बोलते हुए लिखा है कि कांग्रेस गहरे अवसाद से ग्रस्त है और अपनी राजनीतिक जिम्मेदारी भूल गई है। राहुल तो हताशा में देश विरोधी और देश हित का अंतर तक नहीं समझ पा रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू ) में जो कुछ भी हुआ उसे कहीं से भी देश हित के दायरे में रखकर नहीं देखा जा सकता है।

ब्लॉग में आगे लिखा है कि देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में देश विरोधी नारे लगें और आतंकियों की खुली हिमायत हो, इसे कोई भी नागरिक स्वीकार नहीं कर सकता। लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष व उनकी पार्टी के अन्य नेताओं ने जेएनयू जाकर जो बयान दिए हैं, उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनकी सोच में राष्ट्रहित जैसी भावना का कोई स्थान नहीं है।

जेएनयू में वामपंथी विचारधारा से प्रेरित कुछ मुट्ठीभर छात्रों ने राष्ट्रविरोधी नारे लगाए। इन छात्रों को सही ठहराकर राहुल किस लोकतांत्रिक व्यवस्था की वकालत कर रहे हैं। क्या राहुल के लिए राष्ट्रभक्ति की परिभाषा यही है? देशद्रोह को छात्र क्रांति और देशद्रोह के खिलाफ कार्यवाही को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात का नाम देकर उन्होंने राष्ट की अखंडता के प्रति संवेदनहीनता का परिचय दिया है। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि इन नारों का समर्थन करके क्या उन्होंने देश की अलगाववादी शक्तियों से हाथ मिला लिया है? क्या वह स्वतंत्रता की अभिवक्ति की आड़ में देश में अलगाववादियों को छूट देकर देश का एक और बंटवारा करवाना चाहते हैं?

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अमित शाह ने राहुल से सवाल करते हुए लिखा है कि देश की राजधानी में स्थित एक अग्रणी विश्वविद्यालय के परिसर को आतंकवाद व अलगाववाद को बढ़ावा देने का केंद्र बना कर इस शिक्षा के केंद्र को बदनाम करने की साजिश की गई। मैं राहुल से पूंछना चाहता हूं कि क्या केंद्र सरकार का हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना राष्ट्रहित में होता? क्या आप ऐसे राष्ट्रविरोधियों के समर्थन में धरना देकर देशद्रोही शक्तियों को बढ़ावा नहीं दे रहे है?

राहुल द्वारा अपने भाषण में वर्तमान हालातों की हिटलर काल से तुलना करने पर शाह ने लिखा है कि जेएनयू में राहुल ने वर्त्तमान भारत की तुलना हिटलर के जर्मनी से कर डाली। इतनी ओछी बात करने से पहले वह भूल जाते है कि स्वतंत्र भारत की हिटलर के जर्मनी से सबसे निकट परिकल्पना सिर्फ इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए 1975 के आपातकाल से की जा सकती है।

स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति तो दूर, आपातकाल में विरोधियों को निर्ममता के साथ जेल में ठूंस दिया गया था। वामदलों के नेता जिनकी वह आज हिमायत करते घूम रहे है, वह भी इस बर्बरता की शिकार हुए थे। हिटलरवाद सिर्फ कांग्रेस के डीएनए में है, भाजपा को राष्ट्रवाद और प्रजातंत्र के मूल्यों की शिक्षा कांग्रेस से लेने की जरूरत नहीं है। मैं राहुल से जानना चाहता हूं कि 1975 का आपातकाल क्या उनकी पार्टी के प्रजातांत्रिक मूल्यों को परिभाषित करता है और क्या वह इंदिरा गांधी की मानसिकता को हिटलरी मानसिकता नहीं मानते?


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मोदी शासन की प्रशंसा करते हुए उन्होंने सोनियां गांधी और राहुल गांधी से माफी की मांग करते हुए लिखा है कि भाजपा के केंद्र की सत्ता में आने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से कश्मीर में भी देश विरोधी भावनाओं को नियंत्रित करने में सफलता मिल रही है। लेकिन प्रमुख विपक्षी दल होने के बावजूद कांग्रेस इस काम में सरकार को सहयोग करने के बजाए जेएनयू में घटित शर्मनाक घटना को हवा दे रही है। प्रगतिशीलता के नाम पर वामपंथी विचारधारा का राष्ट्रविरोधी नारों को समर्थन किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

सीमा पर शहीद होने वाले सैनिकों की शहादत का हवाला देते हुए शाह ने लिखा है कि देश की सीमाओं की रक्षा और कश्मीर में अलगाववाद को नियंत्रित करते हुए हमारे असंख्य सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके है। 2001 में देश की संसद में हुए आतंकी हमले में दिल्ली पुलिस के 6 जवान, 2 संसद सुरक्षाकर्मी और और एक माली शहीद हुए थे।

इसी आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु का महिमा मंडल करने वालों और कश्मीर में अलगाववाद के नारे लगाने वालों को समर्थन देकर राहुल अपनी किस राष्ट्रभक्ति का परिचय दे रहे है? मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि अभी हाल में सियाचिन में देश की सीमा के प्रहरी 9 सैनिकों जिनमे लांस नायक हनुमनथप्पा एक थे के बलिदान को क्या वह इस तरह की श्रद्धांजलि देंगे?


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