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विधानसभा चुनावों में सीमित प्रचार करेंगे राहुल

जम्मू-कश्मीर और झारखंड में भाजपा के आक्रामक चुनाव अभियान का मुकाबला करने से पहले ही कांग्रेस पस्त नजर आ रही है। भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी को स्टार प्रचारक बनाकर इन राज्यों के लिए नारे से लेकर प्रचार के तरीके को अंतिम रूप दे दिया है। वहीं, कांग्रेस अब तक प्रत्याशियों

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Wed, 05 Nov 2014 03:05 AM (IST)Updated: Wed, 05 Nov 2014 03:09 AM (IST)
विधानसभा चुनावों में सीमित प्रचार करेंगे राहुल

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जम्मू-कश्मीर और झारखंड में भाजपा के आक्रामक चुनाव अभियान का मुकाबला करने से पहले ही कांग्रेस पस्त नजर आ रही है। भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी को स्टार प्रचारक बनाकर इन राज्यों के लिए नारे से लेकर प्रचार के तरीके को अंतिम रूप दे दिया है। वहीं, कांग्रेस अब तक प्रत्याशियों की सूची व प्रचार अभियान के लिए केंद्रीय नेतृत्व की ओर देख रही है। राज्य इकाई की ओर से प्रत्याशियों के प्रचार के लिए उपाध्यक्ष कार्यालय से समय मांगने पर इंतजार करने को कहा गया है।

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जम्मू-कश्मीर व झारखंड में जैसे-तैसे पहली सूची जारी करने के बाद से खामोश कांग्रेस जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश में दूसरे दलों के बागियों के इंतजार में है। केंद्रीय नेतृत्व प्रत्याशियों के नाम तलाशने में इंतजार कर रहा है तो राज्य इकाई की चुनाव प्रचार की तैयारी भी न के बराबर है। जम्मू कश्मीर में भाजपा मोदी विजन संग मिशन 44 का लक्ष्य तय कर मैदान में उतरी है। यहां पीएम पांच से छह रैलियां करने वाले हैं, इनमें से एक रैली घाटी व लेह में भी प्रस्तावित है। वहीं, कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद व सैफुद्दीन सोज चुनावी मैदान में पार्टी की अगुवाई से इन्कार कर चुके हैं। यहां पार्टी जमीन से सोशल मीडिया तक चुनाव प्रचार में फीकी है।

झारखंड में आजसू को आठ सीटें देकर गठबंधन बनाने से भी भाजपा मजबूत हुई है। यहां क्षेत्रीय नेताओं के स्वार्थ और उपाध्यक्ष की जिद के चलते कांग्रेस, झामुमो का गठबंधन सिर्फ चार सीटों को लेकर टूट गया। सूत्रों के मुताबिक इन राज्यों में प्रचार को लेकर राहुल गांधी अनिच्छुक बताए जा रहे हैं। राहुल ने एक बार फिर चुनावी मैदान में मोदी से मुकाबले में हिचकिचाहट दिखाई है। राहुल के एक करीबी ने बताया कि वह दोनों राज्यों में दो-दो रैलियां कर सकते हैं। सोनिया गांधी के स्वास्थ्य को देखते हुए उनसे भी बहुत अपेक्षा नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के लिए इन राज्यों में सत्ता विरोधी लहर से पार पाना तो दूर क्षेत्रीय दलों से आगे खड़े होने की चुनौती भी है।

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