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अब नॉन वेज मेधावी पुणे विवि में स्वर्ण पदक से नहीं रहेंगे वंचित

शर्त पर विवाद उठने के बाद विश्वविद्यालय ने यह कदम उठाया है। यह जानकारी शनिवार को विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दी।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Sat, 11 Nov 2017 07:17 PM (IST)Updated: Sat, 11 Nov 2017 07:17 PM (IST)
अब नॉन वेज मेधावी पुणे विवि में स्वर्ण पदक से नहीं रहेंगे वंचित
अब नॉन वेज मेधावी पुणे विवि में स्वर्ण पदक से नहीं रहेंगे वंचित

पुणे, आइएएनएस : सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय ने अपना 10 साल पुराना सर्कुलर वापस ले लिया है। विश्वविद्यालय ने धर्मार्थ कोटे से स्वर्ण पदक प्राप्त करने के लिए छात्रों पर शाकाहारी होना और दु‌र्व्यसन से मुक्त रहने की शर्त लगाई थी। इस शर्त पर विवाद उठने के बाद विश्वविद्यालय ने यह कदम उठाया है। यह जानकारी शनिवार को विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दी।

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विश्वविद्यालय के कुलसचिव अरविंद शालिग्राम ने कहा, 'आपत्तियों के बाद हमने 10 साल पुराना सर्कुलर वापस ले लिया है। समाज के विभिन्न तबके ने शर्त का विरोध किया था। अब हम शेलर परिवार (पदक के लिए धर्मार्थ देने वाले) को शर्त वापस लिए जाने की जानकारी देंगे।' उन्होंने कहा कि परिवार न मानने की स्थिति में विश्वविद्यालय को शेलर परिवार के धर्मार्थ से दिए जाने वाले पदक को निरस्त करने की कार्यवाही शुरू करनी होगी। कुलसचिव ने कहा, 'हमारे अन्य कई स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले छात्रों ने इसपर कोई आपत्ति नहीं की थी।'

क्या है मामला 

वर्ष 2006 का सर्कुलर शेलर परिवार की ओर से दिए गए 120,000 रुपये के धर्मार्थ के लिए जारी किया गया था। इसके तहत विश्वविद्यालय में विज्ञान संकाय में शीर्ष आने वाले दो छात्रों को स्वर्ण पदक से नवाजा जाना था। पदक प्राप्त करने वाले के लिए शाकाहारी होना और शराब जैसे हर तरह के दु‌र्व्यसनों से मुक्त रहना अनिवार्य किया गया था। हाल ही में विश्वविद्यालय की इस शर्त पर मीडिया और राजनीतिक खेमे में हंगामा शुरू हो गया।

अन्य शर्ते भी थी सर्कुलर में 

इन दो शर्तो के अलावा पदक प्राप्त करने वालों की श्रेणी में आए छात्रों के लिए पारंपरिक विचार, रोजमर्रा के जीवन में भारतीय संस्कृति का पालन, अनिवार्य रूप से ध्यान, योग और प्राणायाम के साथ ही विभिन्न भारतीय और पश्चिमी खेलों में अधिकतम अवार्ड हासिल करना शामिल था। इसके अलवा विजेता के लिए गायन, नृत्य, अभिनय और भाषण कला आदि में भी पारंगत होना जरूरी था।

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