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वन रैंक वन पेंशन पर फंसा पेंच

वन रैंक वन पेंशन पर समाधान तक पहुंचते-पहुंचते बात अटक गई है। सरकार जुबान और खजाने के चक्कर में फंसी है, तो पूर्व सैनिक भी आंदोलन की राह में इतने आगे निकल गए हैं कि उनको वापसी करना मुश्किल हो रहा है। इन हालात में पूर्व सैनिकों ने दबाव बढ़ाने

By Sachin kEdited By: Published: Fri, 28 Aug 2015 08:20 AM (IST)Updated: Sat, 29 Aug 2015 02:07 AM (IST)
वन रैंक वन पेंशन पर फंसा पेंच

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। वन रैंक वन पेंशन पर समाधान तक पहुंचते-पहुंचते बात अटक गई है। सरकार जुबान और खजाने के चक्कर में फंसी है, तो पूर्व सैनिक भी आंदोलन की राह में इतने आगे निकल गए हैं कि उनको वापसी करना मुश्किल हो रहा है। इन हालात में पूर्व सैनिकों ने दबाव बढ़ाने के लिए शुक्रवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की। इसके बाद प्रधानमंत्री ने शाम को राजनाथ सिंह के साथ-साथ रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के साथ बैठक की, लेकिन अभी कोई समाधान नहीं निकल सका है।

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वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीधे दखल के बाद सरकारी तंत्र ने वन रैंक वन पेंशन के मसले पर सम्मानजनक रास्ता निकाल लिया है। 40 साल से लटके इस मामले को सुलटाने की ईमानदार कोशिश तो सरकार ने दिखाई, लेकिन खजाने का संकट और पेंशन अनियमितिता का मुद्दा फैसले में बाधा बन रहा है। नौकरशाही की तमाम आपत्तियों और व्यावहारिक दिक्कतों के बावजूद सरकार ने तीन मुद्दों में से दो का तो लगभग समाधान कर लिया है, लेकिन प्रत्येक वर्ष पेंशन की समीक्षा की मांग माननी मुश्किल है। अलबत्ता 10 साल के बजाय पांच साल पर समीक्षा करने के लिए सरकार तैयार हो गई है, लेकिन इस पर पूर्व सैनिक नहीं मान रहे हैं।

इससे पहले रक्षा मंत्री पर्रिकर ने कहा कि ज्यादातर मुद्दे सुलझ चुके हैं। बस अब इसे लागू होने में थोड़ी कसर बची है। दरअसल, तीन मसले थे, जिन पर बात नहीं बन पा रही थी। पहला यह कि आधार वर्ष क्या हो और दूसरा कब से इसे लागू किया जाए। इन दोनों पर तो सहमति बन गई है। मगर प्रत्येक वर्ष पेंशन की समीक्षा के मुद्दे पर बात फंस गई है। सरकारी अधिकारी और आंदोलनरत पूर्व सैनिकों के बीच मामला यहीं फंस गया है।

सरकार का प्रस्ताव था कि हर वेतनमान दस साल में आता है, उसी समय पेंशन की समीक्षा होगी। मगर प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद वित्त और रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने पांच साल में पेंशन समीक्षा का फार्मूला निकाला है। हालांकि, सरकार के अधिकारी इसे न्यायसंगत नहीं मानते, लेकिन प्रधानमंत्री की इच्छा देखते हुए इस पर सहमति बनी है। यदि यह लागू होता है तो सरकारी खजाने पर हर वर्ष 8500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। मगर पूर्व सैनिक इससे संतुष्ट नहीं है। उनका कहना है कि यदि प्रत्येक वर्ष समीक्षा नहीं होगी तो पेंशन और रैंक की समानता का सिद्धांत खत्म होगा।

सूत्रों के मुताबिक, इस मुद्दे पर दोनों ही पक्षों में थोड़ी तल्खी बढ़ी है। आंदोलनरत पूर्व सैनिकों ने अपना रुख जहां और सख्त दिखाने की कोशिश की है, वहीं सरकार उन्हें समझाने और मनाने की कोशिश कर रही है। मगर संकेत स्पष्ट है कि प्रत्येक वर्ष पेंशन समीक्षा की मांग मांगना सरकार के लिए संभव नहीं है। यह संदेश भी दे दिया गया है। मगर प्रधानमंत्री अपने वरिष्ठ मंत्रियों के साथ बैठक बुलाकर समाधान का प्रयास कर रहे हैं।

पढ़ेंः वन रैंक वन पेंशन के लिए पूर्व सैनिक सड़क पर उतरने को मजबूर


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