अखिलेश सरकार के एक साल: नौकरशाही की बिगड़ी चाल
पूर्ववर्ती मायावती सरकार में डरी सहमी रहने वाली नौकरशाही अखिलेश सरकार में आजादी मिलते ही इतनी स्वच्छंद हो गयी कि उसकी चाल ही बिगड़ गयी। खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पिछले दिनों आइएएस वीक में कही गयी यह बात कि अगर वह सम्मान देना जानते हैं तो सजा देना भी आता है उनकी इसी पीड़ा को जाहिर करने वाली रही। नौकरश
[स्वदेश कुमार] पूर्ववर्ती मायावती सरकार में डरी सहमी रहने वाली नौकरशाही अखिलेश सरकार में आजादी मिलते ही इतनी स्वच्छंद हो गयी कि उसकी चाल ही बिगड़ गयी। खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पिछले दिनों आइएएस वीक में कही गयी यह बात कि अगर वह सम्मान देना जानते हैं तो सजा देना भी आता है उनकी इसी पीड़ा को जाहिर करने वाली रही।
नौकरशाही किसी भी सरकार की आंख-कान कही जाती है। सरकार की कामयाबी-नाकामी में उसकी अहम भूमिका होती है। कहा जाता है कि ब्यूरोक्रेसी पर सरकार का जितना सटीक नियंत्रण रहता है उतना ही प्रशासनिक रूप से उसका फायदा भी मिलता है।
सरकार के कामकाज पर लगातार करीबी निगाह रखने का दावा करने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव द्वारा अफसर सुधर नहीं रहे हैं की कई बार की गयी टिप्पणियां भी यह जताने को काफी रही कि सरकार को प्रशासनिक स्तर पर जितना फायदा मिलना चाहिए वह उसे नहीं मिल रहा है। उनका कहना भी रहा कि अधिकारी राज्य सरकार की योजनाओं को जनता तक नहीं ले जा रहे हैं जिससे जनता को उनका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। वैसे उनकी नाराजगी सूबे के विकास को गति न मिलने के साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की समस्याओं को तवज्जो न दिए जाने की भी रही।
सख्त कदमों का नहीं मिला लाभ: ऐसा नहीं है कि अखिलेश सरकार ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर कोई सख्त कदम उठाए ही नहीं। इसी साल आइएएस वीक के ठीक पहले उन्होंने शासन में सबसे प्रभावशाली अधिकारी कहे जाने वाले डा. अनिल कुमार गुप्ता को आश्चर्यजनक ढंग से हटा कर राजस्व परिषद में महत्वहीन पद पर भेज दिया।
गुप्ता औद्योगिक विकास आयुक्त, प्रमुख सचिव ऊर्जा सहित आधा दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी संभाले हुए थे। यही नहीं इससे पहले सरकार ने कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ते देख चहेते कहे जाने वाले अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) जगमोहन यादव को भी उनके पद से हटाने का काम किया। पर, इसके बावजूद भी नौकरशाही में सरकार अपनी धमक कायम नहीं कर सकी।
दागी अफसरों के प्रति दिखा लगाव: भ्रष्टाचार को लेकर भले ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पूर्ववर्ती मायावती सरकार को निशाने पर लेते रहे हों, पर उस समय के चंद दागी अफसरों पर जिस तरह से सरकार मेहरबान दिखी उससे उसे फजीहत का ही सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले के आरोपी आइएएस अधिकारी प्रदीप शुक्ल के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति न देने के सरकार के रुख ने उसे कटघरे में खड़ा करने का काम किया। वाहनों के नंबर प्लेट प्रकरण को लेकर चर्चा में रहे आइएएस माजिद अली और जितेन्द्र कुमार की महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती को लेकर भी सरकार की मंशा पर अंगुलियां उठीं। आबकारी आयुक्त के पद पर मायावती सरकार के ही चहेते अफसर को बरकरार रखने पर भी प्रशासनिक हल्कों में चर्चा रही। जिस नौकरशाही को पिछली बसपा सरकार अपने हिसाब से ढालने में सफल रही वही नौकरशाही सपा राज में बेलगाम कैसे हो गई? जानकारों की माने तो इसकी वजह मुख्यमंत्री की मुलायम छवि के अलावा सत्ता और संगठन में मौजूद कई पावर सेंटर होना है जिसकी वजह से अफसरों में यह भाव पैदा हो गया है कि उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला।
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