प्रियंका के लिए सियासत में आने की सीढ़ी हो सकती है यूपी चुनाव
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन में अहम भूमिका निभाने वाली प्रियंंका गांधी ने 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बड़ा सियासी कदम बढ़ा दिया है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन में अहम रोल निभाने वाली प्रियंका गांधी मुमकिन है कि आने वाले समय में सक्रिय राजनीति में दिखाई देने लगें। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2019 में होनेे वाले लोकसभा चुनाव के लिए प्रियंका गांधी की सियासी जमीन के लिए यह पहला कदम है। सपा के साथ बनती बिगड़ती बातचीत के बीच प्रियंका गांधी ने जो अहम भूमिका अदा की है वह कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में संजीवनी दिलाने में भी कारगर साबित हो सकती है।
प्रियंका को राजनीति में लाने की मांग
कांग्रेस में यूं भी काफी समय से प्रियंका को राजनीति में लाने की मांग होती रही है। सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए की गई प्रियंका की पहल को इसकी एक शुरुआत माना जा रहा है। यहां एक बात और काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। वह यह है कि वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव काफी हद तक मुमकिन है कि सोनिया गांधी नहीं लड़ेंगी। इसकी वजह उनका खराब स्वास्थ्य है। राजनीतिक गलियारों में तो इसकी भी चर्चा है कि प्रियंका गांधी अपनी मां और कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी की संसदीय सीट राय बरेली से ही राष्ट्रीय राजनीति में सियासी धमक भी दे सकती हैं।
Wrong to suggest lightweights were dealing on behalf of Congress party.Discussion was at highest level- b/w CM (UP),GS I/C & Priyanka Gandhi
— Ahmed Patel (@ahmedpatel) 22 January 2017
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पहली बार अमेठी से चुनावी मैदान में उतरी थींं सोनिया
सोनिया गांधी ने 1999 में पहली बार अमेठी की सीट से चुनाव लड़ा था। इसके बाद वह 2004 में राय बरेली आ गईंं थी और अमेठी सीट को राहुल गांधी को सौंप दिया था। दरअसल इन सभी कयासों के पीछे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का वह ट्वीट है जिसमें उन्होंने सपा-कांग्रेस गठबंधन में प्रियंका की अहम भूमिका का जिक्र किया है। उन्होंने अपने एक ट्वीट में यह कहा है कि इस गठबंधन के लिए कांग्रेस से किसी और ने नहीं बल्कि खुद प्रियंका गांधी ने ही विचार विमर्श किया था।
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गठबंधन की राजनीति को हरी झंडी
यूपी में अपने दम पर सियासी जमीन तलाशने की असफल कोशिश के बाद आखिरकार राहुल गांधी ने भी अब गठबंधन की उस राजनीति को हरी झंडी दे दी है जिसे करीब 14 वर्ष पहले सोनिया गांधी ने हरी झंडी दिखाई थी। कांग्रेस के लिए मौजूदा राजनीतिक समीकरण भी इसके ही पक्ष में है। दरअसल तक सोनिया ने तब पार्टी को संकट के दौर से निकालने के लिए 'शिमला संकल्प' में पहली बार गठबंधन की राजनीति की खुलकर वकालत की थी। हालांकि राजनीति में पूरे तेवर के साथ उतरे राहुल इससे शुरुआत में जरूर बचते दिखाई दिए थे। लेकिन अब वह भी इसके पक्ष में हैं।
खुद को मजबूत करने की दिशा में कांग्रेस
शिमला संकल्प की राह पर लौटते हुए 105 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उससे साफ है कि पार्टी का पहला मकसद उत्तरप्रदेश में भाजपा को सत्ता में आने से रोकना है, तो दूसरा उद्देश्य अपने विधायकों की मौजूदा संख्या में अधिकतम इजाफा करना है। इस लिहाज से सोनिया की पुरानी राह पर लौटने में ही राहुल को भी फायदा नजर आ रहा है। मौजूदा समय में कर्नाटक को छोड़ कर कांग्रेस सभी बड़े राज्यों में सत्ता से बाहर हो चुकी है। ऐसे में शिमला संकल्प की ओर लौटना राहुल की सियासी मजबूरी भी है। वहीं गठबंधन की राजनीति की ही बदौलत वह 2004 केंद्र की सत्ता पाने में सफल हो सकी थी।
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