Move to Jagran APP

जेल मे बंद कैदियों को मिल सकता है मतदान का अधिकार, चुनाव आयोग कर रहा है विचार

सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व के फैसलों में साफ कह चुका है की वोट डालने का अधिकार संवैधानिक या मौलिक अधिकार नहीं बल्कि विधायी अधिकार है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 20 Feb 2018 07:39 PM (IST)Updated: Wed, 21 Feb 2018 07:09 AM (IST)
जेल मे बंद कैदियों को मिल सकता है मतदान का अधिकार, चुनाव आयोग कर रहा है विचार
जेल मे बंद कैदियों को मिल सकता है मतदान का अधिकार, चुनाव आयोग कर रहा है विचार

नई दिल्ली [ शिवांग माथुर ]। चुनाव सुधार की प्रक्रिया मे चुनाव‌ आयोग जेल मे बंद कैदियो को भी वोट डालने का अधिकार दे सकता है। आयोग ने इसके लिए एक कमेटी का गठन किया है, जो उन संभावनाओं को तलाशेगी, जिनसे जेल में बंद कैदियो को मताधिकार के अधिकार पर लगा प्रतिबंध हट सकता है।

loksabha election banner

बता दें कि जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 62(5) के तहत ऐसा कोई भी व्यक्ति जो न्यायिक हिरासत मे है या फिर किसी अपराध के लिए सजा काट रहा है, वह वोट नहीं दे सकता है। सामान्य जनता के अलावा वोट सिर्फ वही दे सकते हैं, जो पुलिस हिरासत में हैं। इस कमेटी का गठन कई लोगों द्वारा सुझाव मिलने के बाद किया गया हैं।

फिलहाल कैदियों को चुनाव लड़ने की आजादी लेकिन उसे भी वोट डालने का नहीं है अधिकार

गौरतलब है कि इंगलैंड, ऑस्ट्रिया, रूस जैसे देशो में कैदियों को मतदान की इजाजत नहीं है, वहीं स्पेन, स्वीडन, स्विटजरलैंड और फिनलैंड में कैदियो को वोट देने की आजादी है। इटली और ग्रीस जैसे देशो में आजीवन कारावास काट रहे कैदियों को छोड़कर सभी कैदियों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हैं ।

चुनाव आयोग द्वारा गठित सात सदस्यीय कमेटी अन्य देशों की कार्यप्रणाली का अध्ययन कर रही है। इस कमेटी ने तमाम अन्य राज्यों के चुनाव आयुक्तों से भी राज्यों के हालात को ध्यान में रखते हुए सुझाव मांगे हैं।

सूत्रों की माने तो गठित कमेटी इ पोस्टल बैलट के जरिये मतदान कराने पर विचार कर रही, वही प्रतिनिधि रूप में वोट या जेल मे ही मोबाइल वोटिंग बूथ का इंतजाम करने पर विचार किया जा रहा हैं ।

सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व के फैसलों में साफ कह चुका है की वोट डालने का अधिकार संवैधानिक या मौलिक अधिकार नहीं बल्कि कानून के जरिये मिलने वाला विधायी अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट कह चुका है की जेल काट रहा व्यक्ति अपने आचरण और किए गए व्यवहार की वजह से वहां पर है , और इसीलिए वो आम नागरिक की तरह सामान्य हक की बात नही कर सकता। वही मानवाधिकार कार्यकर्ता हमेशा से इस बात की आलोचना करते रहे है की इस तरह से कैदियो के वोट पर प्रतिबन्ध लगाना इसीलिए भी जायज़ नहीं है क्योंकि उन्हें दोषी नहीं ठहराया गया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.