गणित की दुनिया में जगमगाते नए सितारे का नाम है प्रांजल, आखिर क्यों न हो इन पर फख्र
15 साल के प्रांजल श्रीवास्तव ने दुनिया की सबसे कठिन प्रतियोगिताओं में शुमार इंटरनेशनल मैथमैटिक्स ओलंपियाड में गत माह स्वर्ण पदक हासिल कर इतिहास रच दिया।
नई दिल्ली [नेशनल डेस्क]। दो और दो चार तो सबको आसान लगता है, लेकिन जब बात कैलकुलस, ज्योमेट्री आदि की आती है तो गणित का डर अच्छे अच्छों को सूत्र भुला देता है। अगर इसे गणित न समझ कर फन एक्टिविटी मान लिया जाए तो इसका डर काफूर हो जाता है और कठिन से कठिन सवाल भी चुटकी बजाकर हल किए जा सकते हैं। कुछ ऐसा ही मानना है बेंगलुरु के 15 वर्षीय प्रांजल श्रीवास्तव का, जिन्होंने दुनिया की सबसे कठिन मानी जानी वाली प्रतियोगिता इंटरनेशनल मैथमैटिक्स ओलंपियाड (आइएमओ) में इस वर्ष स्वर्ण पदक हासिल किया है। गत माह ब्रिटेन में यह सफलता हासिल करने वाले प्रांजल इस प्रतियोगिता में सबसे कम उम्र में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय बन गए हैं। आइएमओ में यह उनका दूसरा प्रयास था।
पिछले वर्ष मिला था रजत
गत वर्ष उन्होंने इस प्रतियोगिता में रजत पदक हासिल किया था।ऐसे हुई शुरुआत: किसी भी क्षेत्र में सफलता तभी मिल सकती है, जब उसमें रुचि हो और प्रांजल में गणित के प्रति रुचि बहुत कम उम्र में ही जग गई थी। प्रांजल के माता-पिता दोनों आइटी प्रोफेशनल हैं। पिता आशीष कुमार श्रीवास्तव के मुताबिक, वह जब भी विदेश जाते, वहां से रोचक किताबें खरीद लाते। इन्हीं किताबों ने प्रांजल की दोस्ती गणित से कराई। बकौल प्रांजल, उन्होंने इन किताबों से सीखा कि गणित कितना रुचिकर विषय है। इनमें पजल्स की किताबें शामिल थीं। वह जितना इन किताबों के साथ समय बिताते, गणित के उतना ही करीब आते।
प्रांजल का ये है कहना
आइएमओ में स्वर्ण पदक जीतने के बारे में उनका कहना है कि उन्होंने अपने कमजोर विषय जैसे ज्योमेट्री आदि पर अधिक मेहनत की। जब भी उन्हें खाली समय मिलता वह गणित की जटिल समस्याओं को हल करने में जुट जाते। इसके अलावा उन्होंने कभी कोई मेडल या किसी खास प्रतियोगिता को ध्यान में रखकर तैयारी नहीं की। उन्होंने बस गणित पर ध्यान केंद्रित किया और सफलताएं मिलती गईं।और भी हैं उपलब्धियां: गणित की दुनिया में प्रांजल का यह पहला कीर्तिमान नहीं है। उन्होंने गणित की प्रतियोगिताओं में तब से हिस्सा लेना शुरू कर दिया था, जब वह तीसरी कक्षा में थे।
पहले भी बजाया है डंका
आइएमओ में स्वर्ण पदक से पहले वह कई प्रतियोगिताओं में अपने नाम का डंका बजा चुके हैं। एशिया पैसिफिक मैथेमैटिक्स ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतने वाले वह पहले भारतीय थे। वह टूर्नामेंट ऑफ टाउंस भी जीत चुके हैं। प्रांजल सूचना विज्ञान में राष्ट्रीय टॉपर्स में भी शुमार थे, लेकिन उन्होंने मैथ ओलंपियाड में आगे बढ़ना तय किया।
दबाव नहीं होना चाहिए
गणित के अलावा प्रांजल को संगीत में भी रुचि है। वह पियानो और ड्रम बहुत अच्छा बजाते हैं। पिता आशीष का कहना है कि उन्होंने प्रांजल पर कभी किसी चीज का दबाव नहीं डाला। यह उसे तय करना था कि वह मैथ चुने या म्यूजिक। सफलता तभी मिलती है, जब कोई दबाव न हो। रुचि ही किसी क्षेत्र में इंसान को आगे तक ले जाती है। ओलंपियाड में भेजने के बारे में आशीष कहते हैं कि उनके लिए प्रांजल को ऐसी किसी प्रतियोगिता में भेजना किसी फन एक्टिविटी में भेजने जैसा होता है। मानो वह उसे क्रिकेट खेलने के लिए भेज रहे हों। आशीष के मुताबिक, इन प्रतियोगिताओं ने प्रांजल को दुनिया में अपने जैसे लोगों के करीब आने का मौका दिया है। वे आपस में मिलते हैं। गणित की समस्याओं पर चर्चा करते हैं। उन्हें हल करते हैं। इससे प्रांजल को इस विषय को ज्यादा सीखने में मदद मिलती है।
यह है लक्ष्य
कम उम्र में ढेरों मेडल और कई देशों की यात्र कर चुके प्रांजल गणित या कंप्यूटर साइंस में कॅरियर बनाना चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस या अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से उच्च शिक्षा हासिल करें।
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