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अध्यादेशों पर शिवसेना ने अलापा अलग राग

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कोयला और बीमा क्षेत्र से जुड़े दो अध्यादेशों को शुक्रवार को मंजूरी दे दी। इससे कोयला ब्लॉकों की ई-नीलामी और बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की मौजूदा सीमा 26 से बढ़ाकर 49 फीसद होने का रास्ता साफ हो गया है।

By Sudhir JhaEdited By: Published: Fri, 26 Dec 2014 03:01 PM (IST)Updated: Fri, 26 Dec 2014 06:43 PM (IST)
अध्यादेशों पर शिवसेना ने अलापा अलग राग

नई दिल्ली/ मुंबई। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कोयला और बीमा क्षेत्र से जुड़े दो अध्यादेशों को शुक्रवार को मंजूरी दे दी। इससे कोयला ब्लॉकों की ई-नीलामी और बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की मौजूदा सीमा 26 से बढ़ाकर 49 फीसद होने का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन सरकार की इस पहल पर विपक्ष के साथ ही सहयोगी शिवसेना ने भी अलग राग अलापा है। कहा कि ये अध्यादेश सरकार के सिर पर लटकती तलवार की तरह होंगे।

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संसद के शीत सत्र में सरकार इन दोनों क्षेत्रों से जुडे़ विधेयकों को पारित नहीं करा पाई। कारण रहा विपक्ष का हंगामा। खासकर राज्यसभा में, जहां सत्ता पक्ष अल्पमत में है। इसी वजह से सरकार ने अध्यादेश के जरिए कामचलाऊ व्यवस्था की है। द्रमुक प्रमुख एम.करणानिधि ने अध्यादेश लाने को संसदीय लोकतंत्र का मखौल करार दिया है।
शिवसेना का मानना है कि अध्यादेश के संवैधानिक प्रावधानों की एक सीमा है। छह महीने के भीतर संसद से इसकी पुष्टि करानी होती है। चूंकि राज्यसभा में सरकार के पास जरूरी बहुमत नहीं है, लिहाजा अध्यादेश का रास्ता अख्तियार करना सिर पर तलवार लटकने जैसा है।
मुखपत्र 'सामना' में प्रकाशित एक संपादकीय में हालांकि शिवसेना ने यह भी माना है कि कोयला तथा बीमा क्षेत्र में सुधार को आगे बढ़ाने के लिए यही एक तात्कालिक उपाय था।
वहीं करणानिधि ने याद दिलाया कि भाजपा जब खुद विपक्ष में थी तो बीमा सुधारों का तीव्र विरोध करती थी। उन्होंने कहा कि लोकसभा में बहुमत से विधेयक पारित होने के बावजूद सरकार ने अध्यादेश का विकल्प चुना, क्योंकि ऊपरी सदन में उसके पास पर्याप्त संख्या नहीं थी। इन परिस्थितियों में सरकार की ओर से पिछले दरवाजे से अध्यादेश लाना संसदीय राजनीति का मजाक उड़ाना है।


अध्यादेश लाने पर सरकार की दलील
-यह सुधार के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता और संकल्प को दर्शाने वाला है।
-दुनिया भर के निवेशकों में संदेश जाएगा कि यदि एक सदन किसी एजेंडा को रोकता रहे तो देश इंतजार नहीं करता रहेगा।

कोयला क्षेत्र
-कोयला ब्लॉकों का आवंटन सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने के बाद उसकी दोबारा नीलामी तात्कालिक जरूरत है।
-कोयला ब्लॉकों की जल्द नीलामी नहीं होने से कोयला आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।
-इससे बिजली महंगी होने के साथ ही ऊर्जा संकट पैदा होने का खतरा है।
-अध्यादेश जारी होने के बाद सरकार पहले चरण में 24 कोल ब्लॉकों को फरवरी में नीलामी कर सकेगी।

आम लोगों को लाभ होगा
नीलामी की इस प्रक्रिया से आम लोगों को लाभ होगा। बिजली की दरें नहीं ब़़ढेंगी। बल्कि मैं आश्वस्त करता हूं कि इससे बिजली की दरें घटेंगी।

-पीयूष गोयल, कोयला एवं बिजली मंत्री

बीमा क्षेत्र
-बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा ब़़ढाने से अतिरिक्त पूंजी मिलेगी।
-अनुमान के अनुसार 2020 तक 50,000 करोड़ [8 अरब डालर] की अतिरिक्त पूंजी मिल सकती है।
-बीमा क्षेत्र और व्यापक होगा तथा इसकी पहुंच बढे़गी। फिलहाल इसकी पहुंच काफी कम है। इस समय भारतीय बीमा क्षेत्र में 52 कंपनियां हैं। इनमें से 28 गैर-जीवन तथा 24 जीवन बीमा के क्षेत्र में हैं।

संकट से बचने के उपाय हैं
यदि एक सदन अध्यादेश की जगह आने वाले बिलों को पारित नहीं भी करता है तो उसके लिए भी प्रावधान हैं। गतिरोध और अवरोध की नीति निरंतर नहीं चल सकती।

-अरुण जेटली, केंद्रीय वित्त मंत्री

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