पावर फंड से होगी फंसे बिजली प्लांटों को उबारने की कोशिश
कोयला, गैस और वित्त की समस्या से जूझ रही देश की लगभग चार दर्जन बिजली परियोजनाओं को उबारने के लिए केंद्र सरकार एक नया प्रयोग करने पर विचार कर रही है। इस प्रयोग का नाम पावर फंड हो सकता है। इस फंड का इस्तेमाल तमाम समस्याओं से जूझ रहे बिजली
नई दिल्ली। कोयला, गैस और वित्त की समस्या से जूझ रही देश की लगभग चार दर्जन बिजली परियोजनाओं को उबारने के लिए केंद्र सरकार एक नया प्रयोग करने पर विचार कर रही है। इस प्रयोग का नाम पावर फंड हो सकता है। इस फंड का इस्तेमाल तमाम समस्याओं से जूझ रहे बिजली संयंत्रों को नए सिरे से वित्तीय सुविधा पहुंचा कर उन्हें उबारने के लिए होगा।
फंड से समस्याओं से जूझती परियोजनाओं की हिस्सेदारी भी खरीदी जा सकती है। बिजली व कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने राजग सरकार के एक वर्ष पूरा होने पर आयोजित प्रेस वार्ता में यह बात कही। गोयल ने बताया कि बिजली क्षेत्र में वित्त की मौजूदा समस्या का समाधान पावर फंड से निकल सकता है। इसे गठित करने की अवधारणा पर विचार चल रहा है। इस बारे में विदेशी निवेशकों से भी बात हुई है।
देश के वित्तीय संस्थानों से भी विचार विमर्श किया जा रहा है। भारत जिस गति से प्रगति कर रहा है उसको लेकर विदेशी निवेशकों में काफी उत्साह है। गोयल ने हालांकि यह नहीं माना कि वित्तीय संस्थान भारतीय बिजली संयंत्रों को कर्ज देने या फंड मुहैया कराने में आनाकानी कर रहे हैं। उनका मानना है कि मीडिया इस बारे में बढ़ाचढ़ा कर तथ्य पेश कर रहा है। लेकिन, वह मानते हैं कि पावर फंड फंसी हुई बिजली परियोजनाओं को उबारने का एक बढ़िया रास्ता हो सकता है।
सरकार के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 57 हजार मेगवाट क्षमता की बिजली परियोजनाएं काम के विभिन्न स्तरों पर अटकी हुई हैं। इनमें से लगभग 32 हजार मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजनाएं तो काम पूरा होने के बावजूद उत्पादन नहीं कर रही हैं या क्षमता से काफी कम उत्पादन कर रही हैं। 16,607 मेगावाट क्षमता की गैस आधारित बिजली परियोजनाओं को गैस मिलने का इंतजार है।
हाल ही में सरकार ने गैस आवंटित करने की एक नई नीति लागू की है जिससे 8000 मेगावाट क्षमता की परियोजनाओं में कुछ हद तक उत्पादन शुरू हो सकेगा। देश में इतनी गैस नहीं है कि सभी को गैस दी जा सके। इसी तरह से गोयल के दावे के मुताबिक कोयला उत्पादन में 11 फीसद की बढ़ोतरी के बावजूद 16 हजार मेगावाट क्षमता की कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं को लिंकेज मिलने का इंतजार है।
इन सभी परियोजनाओं को बैंकों की तरफ से लगभग दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया है। उत्पादन नहीं होने से ये प्लांट बैंकों को कर्ज वापस नहीं कर पा रहे हैं। लिहाजा बैंक बिजली कंपनियों को नए कर्ज देने में काफी आनाकानी कर रहे हैं। इस सब का इलाज "पावर फंड" हो सकता है।