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राजनीतिक दलों के आरटीआइ दायरे पर फैसला आज

केंद्रीय सूचना आयोग की पूर्ण पीठ मंगलवार को एक अहम व दूरगामी फैसले में यह तय कर सकती है कि राजनीतिक दल सूचना के अधिकार के दायरे में आते हैं या नहीं। भाजपा, कांग्रेस, बसपा समेत ज्यादातर राजनीतिक दल आरटीआइ के दायरे में न होने का हवाला देते हुए करोड़ों का चंदा देने वालों और अन्य वित्तीय गतिविधि

By Edited By: Published: Wed, 26 Sep 2012 07:40 AM (IST)Updated: Wed, 26 Sep 2012 09:06 AM (IST)
राजनीतिक दलों के आरटीआइ दायरे पर फैसला आज

नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। केंद्रीय सूचना आयोग की पूर्ण पीठ बुधवार को एक अहम व दूरगामी फैसले में यह तय कर सकती है कि राजनीतिक दल सूचना के अधिकार के दायरे में आते हैं या नहीं। भाजपा, कांग्रेस, बसपा समेत ज्यादातर राजनीतिक दल आरटीआइ के दायरे में न होने का हवाला देते हुए करोड़ों का चंदा देने वालों और अन्य वित्ताीय गतिविधियों की जानकारी देने से इन्कार करते रहे हैं।

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एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफा‌र्म्स के राष्ट्रीय संयोजक अनिल बैरवाल और आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने इन दलों के खिलाफ 10 सितंबर को केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया था। मसले की अहमियत समझते हुए आयोग ने फैसले के लिए पूर्ण पीठ का गठन किया है। मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा, सूचना आयुक्त अन्नापूर्णा दीक्षित और एमएल शर्मा की पीठ मामले की सुनवाई करेगी।

एडीआर का कहना है कि भाजपा, कांग्रेस और बसपा समेत तमाम बड़े दलों को 2006-07 से 2010-11 के बीच 1093 करोड़ रुपये की टैक्स छूट मिल चुकी है। कर छूट पाने वाले आरटीआइ दायरे में आते हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने भी अपने एक फैसले में ऐसा कहा है। आयकर रिटर्न से मिली जानकारी में एडीआर ने बताया है कि वित्ताीय वर्ष 2004-05 से 2010-11 के बीच कांग्रेस की आय 2008.71 करोड़ रुपये वहीं भाजपा की 994.76 करोड़ रुपये रही।

सभी राजनीतिक दल पारदर्शिता, शुचिता और भ्रष्टाचार को खत्म करने की बात तो करते हैं लेकिन उन्हें अपनी वित्ताीय गतिविधियों को सार्वजनिक करने से गुरेज है। चंदा देने वाले संगठनों, उनके खातों आदि की जानकारी देने से इन्कार करते हुए कांग्रेस कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने पोस्टल आर्डर समेत आवेदन लौटा दिया था। जबकि भाजपा और बसपा ने तो जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा। अजीबोगरीब तर्क में राकांपा ने कहा है कि उसके पास इतना स्टाफ नहीं है कि वह दानकर्ताओं की जानकारी दे सके। सिर्फ भाकपा ने माना है कि वह एक सार्वजनिक संस्था है और आरटीआइ के तहत सूचना देने को बाध्य है।

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