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शीला के इस्तीफे से दिल्ली में हलचल बढ़ी

केरल के राज्यपाल पद से शीला दीक्षित के इस्तीफे के साथ ही दिल्ली की सियासी हलचल बढ़ गई है। दिल्ली की राजनीति में उनकी वापसी को लेकर कयासों का सिलसिला तेज हो गया है। उनके समर्थकों ने इसके लिए बाकायदा लामबंदी भी शुरू कर दी है। दूसरी ओर उनकी मुखालफत करने वालों ने भी अपनी तरकश में तीर सजा लिए हैं। दिल्ली में कभी

By Edited By: Published: Wed, 27 Aug 2014 08:11 AM (IST)Updated: Wed, 27 Aug 2014 10:40 AM (IST)
शीला के इस्तीफे से दिल्ली में हलचल बढ़ी

नई दिल्ली। केरल के राज्यपाल पद से शीला दीक्षित के इस्तीफे के साथ ही दिल्ली की सियासी हलचल बढ़ गई है। दिल्ली की राजनीति में उनकी वापसी को लेकर कयासों का सिलसिला तेज हो गया है। उनके समर्थकों ने इसके लिए बाकायदा लामबंदी भी शुरू कर दी है। दूसरी ओर उनकी मुखालफत करने वालों ने भी अपनी तरकश में तीर सजा लिए हैं। दिल्ली में कभी कांग्रेस के लिए तुरुप का पत्ता मानी जाने वाली दीक्षित को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा यह भी है कि प्रदेश कांग्रेस में उनकी सक्रियता से पार्टी में नए समीकरण बनेंगे जिससे कमजोर पड़ी कांग्रेस में आपसी कलह बढ़ सकती है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस हाईकमान उनके अनुभव का इस्तेमाल दिल्ली के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर कर सकता है।

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सनद रहे कि पूर्व मुख्यमंत्री दीक्षित की वापसी ऐसे वक्त में हुई है जब दिल्ली चुनाव की चौखट पर खड़ी नजर आ रही है। तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा की अगुवाई में कोई सरकार नहीं बन पाई और अब ऐसी संभावना जताई जा रही है कि जनवरी-फरवरी में दिल्ली विधानसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं। जाहिर तौर पर दिल्ली के कांग्रेसियों में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या पार्टी अगला चुनाव फिर से दीक्षित की अगुवाई में लड़ेगी।

महत्वपूर्ण यह भी है कि पार्टी के विधायकों का एक बड़ा वर्ग बगावती तेवर अपनाए हुए है। इन विधायकों का मानना है कि बेहद मुश्किल स्थितियों में चुनाव जीतने के बावजूद संगठन में उन्हें वह तवज्जो नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। कुछ दिनों पूर्व तक कांग्रेस विधायक दल में टूट की चर्चा भी बेहद गर्म रही। पार्टी के दो विधायकों मतीन अहमद व आसिफ मोहम्मद ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर उनसे आग्रह भी किया था कि दीक्षित को एक बार फिर से दिल्ली की बागडोर सौंपी जाए। ऐसा चाहने वालों की संख्या ज्यादा भी हो सकती है।

लेकिन पिछले साल दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद से प्रदेश के कांग्रेसी समीकरण में बहुत बदलाव आए हैं। सूबे के अधिकतर कांग्रेसी मानते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली विपरीत परिस्थितियों में बेहतर नेतृत्व दे रहे हैं।

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