नेताओं का रिटायरमेंट
कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी भी बुजुर्ग नेताओं को रिटायर करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फार्मूले से सहमत प्रतीत हो रहे हैं। उन्होंने भी तय उम्र के बाद सक्रिय राजनीति से बुजुर्गो के अलग होने की वकालत शुरू कर दी है। उन्होंने कहा है कि 70 की उम्र के बाद लोगों को राजनीति में सक्रिय पदों से हट जाना
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी भी बुजुर्ग नेताओं को रिटायर करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फार्मूले से सहमत प्रतीत हो रहे हैं। उन्होंने भी तय उम्र के बाद सक्रिय राजनीति से बुजुर्गो के अलग होने की वकालत शुरू कर दी है। उन्होंने कहा है कि 70 की उम्र के बाद लोगों को राजनीति में सक्रिय पदों से हट जाना चाहिए। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी और सरकार में 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को अहम भूमिका से अलग कर दिया है। इस पर कांग्रेस नेताओं ने उनकी जम कर आलोचना की थी।
अक्सर अपने विवादित बयानों की वजह से चर्चा में रहने वाले कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने अब कहा है कि राजनीति में लोगों को 70 की उम्र के बाद सक्रिय पदों पर नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीति से इतर सभी क्षेत्रों में यही होता है कि एक उम्र के बाद नेतृत्व बदल जाता है। इसी तरह राजनीति में भी होना चाहिए। खास कर जिन पदों पर सक्रिय भूमिका की जरूरत होती है, उन पर तो एक उम्र के बाद किसी को नहीं ही रहना चाहिए।
हालांकि, 67 वर्षीय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने इस नियम की उपयोगिता से इन्कार कर दिया। इस बारे में उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद कई मामलों में अपवाद रहा है। पार्टी का 'एक व्यक्ति एक पद' का नियम भी पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के ऊपर नहीं लागू किया जाता। लगे हाथ उन्होंने यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और पार्टी अध्यक्ष जैसे कुछ पद हैं, जिनको इस उम्र सीमा से दूर रखा जाना चाहिए।
द्विवेदी का यह बयान इसलिए चौंकाने वाला है, क्योंकि पिछले दिनों जब भाजपा में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और पूर्व अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी को सक्रिय भूमिकाओं से बाहर कर दिया गया तो कांग्रेस नेताओं ने इसकी जम कर आलोचना की थी। हालांकि, द्विवेदी के खुद भी इस उम्र सीमा तक पहुंचने में महज एक साल का ही फासला रह गया है। उधर बदली परिस्थितियों में उनकी भूमिका भी काफी सीमित होती जा रही है। ऐसे में इस बयान को अपने भविष्य की भूमिका के बारे में द्विवेदी की सफाई के तौर पर भी देखा जा रहा है।