बाघों की जिंदगी पर भारी पड़ा अवैध शिकार, इस साल 76 बाघों की हुई मौत
2010 के बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में बाघों की मौत हुई है। 'टाइगरनेट' और 'ट्रैफिक-इंडिया' द्वारा जारी किए गए डाटा से यह चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं।
पुणे, जेएनएन। इस साल जनवरी से लेकर अक्टूबर में 76 बाघों की मौतों ने बाग सरंक्षण के लिए काम करने वाले संगठनों को चिंता में डाल दिया है। 2010 के बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में बाघों की मौत हुई है। 'टाइगरनेट' और 'ट्रैफिक-इंडिया' द्वारा जारी किए गए डाटा से यह चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं।
अंगो की तस्करी हो सकती शिकार की बड़ी वजह
बाघों की सबसे ज्यादा मौत के मामले मध्य प्रदेश में हुए हैं। कुल मौतों की तिहाई मौत मध्य प्रदेश में हुई हैं। कर्नाटक में 13 बाघों की मौत हुई है। बाघों के शरीर के अंगो की तस्करी के लिए इसके शिकार की वजह से ये मौते हुई हैं। ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इस साल बाघों की तस्करी के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।
6 साल में सबसे ज्यादा मौते
2010 के बाद पहली बार एक साल में इतने बाघों की मौत हुई है। पुछले साल (2015) में 69 बाघों की मौत के मामले सामने आए थे। जबकि इस साल 10 महीने में ही 76 बाघ मर चुके हैं। 76 में से 41 बाघों की मौत की अभी जांच चल रही है। इनमें आदमी के रोल को देखा जा रहा है। इसमें शिकार, जहर देना, सड़क दुर्घटना जैसे सभी पहलू तलाशे जा रहे हैं।
संगठन ट्रैफिक-इंडिया के शेखर कुमार नीरज का कहना है कि अगस्त से नवंबर के बीच शिकार के मामले बढ़ जाते हैं। उन्होंने कहा कि तस्करी पर सख्ती की जरूरत है, नहीं तो बाघों को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
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