संविधान पर बोले PM, ‘खुद जहर पी सबके लिए अमृत छोड़ गए बाबा साहेब’
संविधान और बाबा अंबेडकर पर चर्चा के बहाने ही एक दूसरे पर तीखे हमलों के साथ चली दो दिन की चर्चा के समापन भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो दिशा दी उससे यह स्पष्ट हो गया है कि पिछले दो सत्रों के मुकाबले शीतकालीन सत्र बदला बदला होगा।
नई दिल्ली। न कोई तंज, न तकरार, न वार। केवल समभाव और सदभाव। संविधान और बाबा अंबेडकर पर चर्चा के बहाने ही एक दूसरे पर तीखे हमलों के साथ चली दो दिन की चर्चा के समापन भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो दिशा दी उससे यह स्पष्ट हो गया है कि पिछले दो सत्रों के मुकाबले शीतकालीन सत्र बदला बदला होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र सहमति के आधार पर चलता है। बहुमत और अल्पमत आखिरी रास्ता है। इसका खास अर्थ इसलिए भी है कि क्योंकि दो दिन पहले ही उन्होंने जीएसटी पारित कराने के लिए समर्थन की अपील की थी।
लोकसभा में दो दिन से संविधान पर चल रही चर्चा समाप्त हो गई। आशा की जा रही थी कि चर्चा के दौरान विपक्ष के शीर्ष नेतृत्व से भी किए गए तंज का जवाब मोदी भी अपने अंदाज में देंगे। लेकिन मोदी बदले बदले थे।
लगभग एक घंटे के भाषण में उन्होंने एक बार भी कोई राजनीतिक तंज नहीं किया न ही आपातकाल की याद दिलाने की कोशिश की जिस दौरान संवैधानिक स्वतंत्रता को गिरवी रखा गया था। बजाय इसके उन्होंने लोकतंत्र को मजबूत बनाने की अपील की और कहा कि बहुमत और अल्पमत आखिरी रास्ता होता है। कोशिश यह होनी चाहिए कि देश और समाज से जुड़े मुद्दों पर सहमति से फैसले हों।
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गौरतलब है कि गुरुवार को चर्चा में हिस्सा लेते हुए सोनिया गांधी ने कहा अगर काम करने वाला समूह गलत हो तो संविधान अच्छा काम नहीं कर सकता है। परोक्ष तौर पर सोनिया ने तंज किया था। लेकिन जवाब में मोदी ने केवल अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र करते हुए कहा कि शासन में रहते हुए जिस तरह उनकी सरकार एक वोट से गिरी थी और उन्होंने स्वीकार किया था उससे साबित होता है कि अच्छा समूह हो तो संविधान भी अच्छे स्वरूप में काम करता है।
विपक्ष की ओर से थोड़ी बहुत टोका टाकी को नजरअंदाज करते हुए मोदी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि संविधान कोई नहीं बदल सकता है। सरकार का एक ही धर्मग्रंथ होता है और वह है संविधान। सरकार संविधान से अलग नहीं चल सकती है। बहरहाल, मोदी यह जताने से नहीं चूके कि दलगत राजनीति बहुत तीखी हो गई है।
उन्होंने कहा कि संविधान की मूल प्रति में छपे चित्रों को भी सामने रखा जाए तो कुछ लोगों की ओर से उसे हटाने की बात होगी। शायद मोदी ने परोक्ष रूप से यह याद दिला दिया कि असहिष्णुता का आरोप भाजपा पर बेवजह लगाया जा रहा है। मोदी ने परोक्ष रूप से सुप्रीम कोर्ट को भी अपनी आपत्ति जता दी।
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डॉ अंबेडकर के हवाले से मोदी ने कहा- 'संविधान में तीनों अंगों के अपने कर्तव्य हैं लेकिन अगर हर अंग जो चाहे वह करे तो अराजकता आ जाएगी। अधिकारों पर सीमा जरूरी है।' ध्यान रहे कि एनजेएसी को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट में खटास काफी बढ़ गई थी। राज्यसभा में कुछ सदस्यों ने कोर्ट के रुख पर आपत्ति भी जताई थी। ऐसे में मोदी ने भी परोक्ष तौर पर अपनी बात रख दी है।
शिक्षक दिवस को नया रूप दे चुके मोदी ने यह भी साफ कर दिया कि 26 नवंबर भी अब खास होगा। इसी दिन संविधान बना था। मोदी ने कहा कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने 2009 संविधान की महत्ता के प्रति जागरुकता जगाने के लिहाज से हाथी पर रखकर खुद पैदल मार्च किया था। उन्होंने सुझाव दिया कि 26 नवंबर के आयोजन गांव तक पहुंचना चाहिए। संभव है कि अगले साल से इसकी शुरूआत भी हो।