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निजता के मौलिक अधिकार में नहीं आयेगा निजी जानकारी देना: केन्द्र

सूचनात्मक निजता को मौलिक अधिकार तक नहीं बढ़ाया जा सकता। कई तरह से सूचनाएं दी जाती हैं या एकत्र होती हैं।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 27 Jul 2017 10:31 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jul 2017 10:31 PM (IST)
निजता के मौलिक अधिकार में नहीं आयेगा निजी जानकारी देना: केन्द्र
निजता के मौलिक अधिकार में नहीं आयेगा निजी जानकारी देना: केन्द्र

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकार ने गुरुवार को एक बार फिर जोर देकर कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है और निजी जानकारी मुहैया कराना मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आयेगा। केन्द्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने नौ न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष ये दलील दी।

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मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ के सामने बुधवार को केन्द्र सरकार ने कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हो सकता है लेकिन ये पूर्ण अधिकार नहीं है। गुरुवार को बहस आगे बढ़ाते हुए अटार्नी जनरल ने कहा कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है। निजता के कई पहलू होते हैं और हर पहलू मौलिक अधिकार का हिस्सा नहीं हो सकता। सूचनात्मक निजता भी होती है। लेकिन आंकड़े जुटाना या अपने बारे में जानकारी देना मौलिक अधिकार में नहीं आएगा। अगर सूचनात्मक निजता का दावा किया जाएगा तो दूसरों के मौलिक अधिकार प्रभावित होंगे। सूचनात्मक निजता को मौलिक अधिकार तक नहीं बढ़ाया जा सकता। कई तरह से सूचनाएं दी जाती हैं या एकत्र होती हैं। जैसे रोजगार के फार्म में जानकारियां दी जाती हैं।

जनगणना में, पासपोर्ट व मतदाता पहचानपत्र बनवाने में सूचनाएं दी जाती हैं जो कि पब्लिक डोमेन में हैं। किसी ने कभी भी आधार की तरह जनगणना, मतदाता पंजीकरण आदि को चुनौती नहीं दी। इस पर जस्टिस आरएफ नारिमन ने कहा कि ये सूचनाएं एच्छिक नहीं है इसलिए इन सूचनाओं को सुरक्षित रखने के लिए प्राइवेसी के बारे में कानून होना जरूरी है। जस्टिस जे. चेलमेश्वर ने कहा कि जनगणना के आंकड़े सुरक्षित रखने के बारे में कानूनी प्रावधान है। किसी प्राइवेट पार्टी के लिए सरकार से जनगणना के आंकड़े प्राप्त करना बहुत कठिन है।

जस्टिस एसए बोबडे ने सरकार से सवाल किया कि क्या ऐसे प्रावधान आधार कानून में हैं। इस पर सरकार ने हां में जवाब देते हुए कहा कि कानून की धारा 29 इस बारे में है। जस्टिस चेलमेश्वर ने सवाल किया कि मोबाइल नंबर के संरक्षण का क्या। तभी याचिकाकर्ता के वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने बीच में खड़े होकर कहा कि आधार के आंकड़े सुरक्षित रहने की बात कल्पना मात्र है क्योंकि आधार का इनरोलमेंन्ट प्राइवेट पार्टी करती है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार के बारे में सरकार का तर्क जायज हो सकता है लेकिन एकत्र किये गये डाटा की सुरक्षा के लिए मजबूत तंत्र होना चाहिए। इस पर एएसजी तुषार मेहता ने आधार कानून की धारा 29(2) का हवाला देते हुए कहा कि ये इसी बारे में हैं। तब जस्टिस नारिमन ने कहा कि आधार कानून में पूरा एक चेप्टर प्राइवेसी के बारे में है और कानून के उद्देश्य और कारणों में भी इसका जिक्र है, तो क्या इसका मतलब यह नहीं निकलता कि कानून में निजता को मान्यता दी गई है। केन्द्र ने ट्रंास जेन्डर के सेना में प्रवेश पर रोक लगाने के ट्रंप सरकार के हालिया आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार कई बार एक्जीक्यूटिव आदेश जारी करती है। सरकार को एक्जीक्यूटिव आदेश जारी करने का अधिकार है।

महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील सीएस सुन्दरम ने भी बहस की। सुन्दरम ने कहा कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है और आंकड़े एकत्र करना निजता के मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आयेगा। उन्होंने कहा कि निजता को मौलिक अधिकार बनाने के मुद्दे पर संविधानसभा में बहस हुई थी और जानबूझकर संविधाननिर्माताओं ने इसे मौलिक अधिकार में शामिल नहीं किया। अगर कोर्ट इसे मौलिक अधिकार घोषित करता है तो ये संविधान संशोधन करने जैसा होगा जिसका कोर्ट को अधिकार नहीं है। सुन्दरम ने यह भी कहा कि अगर कोर्ट इसे मौलिक अधिकार मानने पर विचार करे तो उसे संविधान सभा में इस पर हुई बहस और इसके इतिहास का भी ध्यान रखना होगा। सुन्दरम की बहस मंगलवार को भी जारी रहेगी।

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