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जनता को हो सांसद-विधायक को बुलाने का हक

वरुण गांधी ने जनता को 'सांसद, विधायक वापसी का अधिकार' देने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन का प्रस्ताव रखा है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Tue, 28 Feb 2017 07:55 PM (IST)Updated: Tue, 28 Feb 2017 08:01 PM (IST)
जनता को हो सांसद-विधायक को बुलाने का हक
जनता को हो सांसद-विधायक को बुलाने का हक

नई दिल्ली, प्रेट्र : भाजपा सांसद वरुण गांधी ने उम्मीद पर खरे नहीं उतरने वाले जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार जनता को देने की मांग की है। उन्होंने इसको लेकर लोकसभा में एक निजी विधेयक पेश किया है। संसद में पारित होने पर संबंधित संसदीय/विधानसभा क्षेत्र की जनता को सांसदों और विधायकों को वापस बुलाने का अधिकार मिल जाएगा।

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वरुण गांधी ने जनता को 'सांसद, विधायक वापसी का अधिकार' देने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। संसद में पेश जनप्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक, 2016 में सांसदों और विधायकों को वापस बुलाने के तौर-तरीका भी सुझाए गए हैं। वरुण के अनुसार, दुनिया के कई देशों में इसे अपनाया गया है। इसमें निर्वाचित होने के दो साल के अंदर संबंधित संसदीय या विधानसभा क्षेत्र के 75 फीसद मतदाताओं द्वारा जनप्रतिनिधियों को हटाने का अनुमोदन करने पर सदस्यता खत्म करने का प्रावधान किया गया है।

दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त प्रावधान

दुरुपयोग रोकने के लिए विधेयक में कड़े प्रावधान किए गए हैं। जनप्रतिनिधि के संसदीय या विधान सभा क्षेत्र के एक चौथाई मतदाताओं को हस्ताक्षर के साथ सदन के अध्यक्ष को वापसी संबंधी अर्जी देनी होगी। सत्यता परखने के बाद अध्यक्ष इसे पुष्टि के लिए चुनाव आयोग को सौंपेंगे। आयोग मतदाताओं के हस्ताक्षर की जांच-पड़ताल करेगा। इसके बाद संबंधित क्षेत्र के 10 स्थानों पर चुनाव कराए जाएंगे। तीन चौथाई मतदाताओं के सांसद या विधायक को वापस बुलाने के पक्ष में मतदान करने पर उनकी सदस्यता खत्म करनी होगी। चुनाव परिणाम प्राप्त होने के 24 घंटे के अंदर अध्यक्ष को इसे अधिसूचित करना होगा। इसके बाद रिक्त घोषित सीट के लिए आयोग उपचुनाव कराएगा।

जनता को मिले ज्यादा अधिकार

वरुण गांधी ने कहा कि यदि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर जनता का विश्वास नहीं रहा तो उन्हें वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए। मौजूदा समय में सांसद या विधायक से नाखुश लोगों के पास कोई उपाय नहीं है। जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संसद या विधानसभा सदस्यों को हटाने में जनता की इच्छा शामिल नहीं है।


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