अयूब पंडित के लिए गमज़दा वादी का सवाल, आखिरकार कहां खो गई कश्मीरियत
डीएसपी मुहम्मद अयूब पंडित के जनाजे में परिवार ही नहीं कश्मीर के लोग भी बोले हम हिन्दोस्तानी हैं, हम हिन्दोस्तानी हैं, हम हिन्दोस्तानी हैं।
जम्मू (ब्यूरो)। कश्मीर का सपूत अयूब पंडित देश के लिए कुर्बान हो गया। लेफ्टिनेंट उमर फैयाज, पुलिस अफसर फिरोज डार की तरह पंडित की शहादत पर पूरे देश को नाज है। यही जांबाज कश्मीर में हिंसा की बयार को अमन में बदलेंगे। अवाम अब जाग उठी है। आजादी की आवाज अब अलगाववाद और आतंकवाद समर्थकों से छुटकारा दिलाने के लिए ही उठेगी। ताकि कोई मां का बेटा, कोई पत्नी का पति, कोई बच्चों का पिता अपनों से न बिछड़ पाए।
हम हिन्दुस्तानी हैं, हम हिन्दुस्तानी हैं...
डीएसपी मुहम्मद अयूब पंडित के जनाजे में परिवार ही नहीं कश्मीर के लोग भी बोले हम हिन्दुस्तानी हैं, हम हिन्दुस्तानी हैं, हम हिन्दुस्तानी हैं। कहां है मीरवाइज, कहां है गिलानी। आजादी की मांग ने कई बच्चों और युवाओं को मौत की नींद सुला दिया है। क्या इसी आजादी के लिए मासूमों की जिंदगी से खेला जा रहा है। अब यह गंदा खेल बंद कर दो। निर्दोषों की हत्या से कुछ हासिल नहीं होगा। अब बस करो। शहीद के बुजुर्ग रिश्तेदार ने कहा कि हमें वो कश्मीर चाहिए जिसे तीन दशक पहले जन्नत-ए-वादी के लिए जाना जाता था। हमें कश्मीर को जहन्नुम नहीं बनने देना है।
आखिर क्या था कसूर
गुरुवार रात को नौहट्टा क्षेत्र में जामिया मस्जिद के बाहर डीएसपी मुहम्मद अयूब पंडित को अलगाववादी व आतंकी समर्थकों की भीड़ ने बेरहमी से मार डाला। आखिर उसका कसूर यह था कि वह शब-ए-कदर की मुबारक रात को मस्जिद में गुनाहों से तौबा कर रहे अपने भाइयों की सुरक्षा के लिए बाहर मुस्तैदी से तैनात था। अयूब को मारने वाली भीड़ इतनी खून में उतारू थी कि पहले घेरकर लात घूसों, लाठियों से मारा और फिर काफी दूर तक घसीटा। कहां गई कश्मीरियत जिसके लिए कश्मीर मशहूर है। उसे बचाने कोई आगे तक नहीं आया। यह शर्म की बात है।
17 पुलिस कर्मियों ने दी शहादत
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ छेड़े गए ऑपरेशन में कई पुलिस जवानों ने भी शहादत दी है। इस वर्ष छह माह में 17 पुलिसकर्मी शहीद हो चुके हैं। पिछले वर्ष 2016 यह संख्या 17 थी। वर्ष 2015 में 10 और 2014 में 14 पुलिस कर्मियों ने आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहादत दी थी।
कई उम्मीदें और सपने थे
वर्ष 2016 में सेना में लेफ्टिनेंट बनने के बाद 23 वर्षीय उमर फैयाज की भी कई उम्मीदें और सपने थे। तारीख नौ मई थी। जम्मू के अखनूर में राजपूताना राइफल में तैनात उमर खुशी खुशी कश्मीर में अपने मामा की बेटी की शादी के लिए निकला था। आतंकियों को इसकी भनक कहीं से लग गई। बीच रास्ते में उसे अगवा कर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। फैयाज का गोलियों से छलनी शव दक्षिणी कश्मीर के हरमन में एक बाग में मिला था। पूरा देश फैयाज की हत्या पर गमजदा था। उसने 10 दिसंबर 2016 को एनडीए से सेना में कमीशन प्राप्त किया था। फैयाज का परिवार भी आज बेटे की मौत से सदमे से बाहर नहीं आ पाया है। उसके परिवार ने बस यही उम्मीद थी कि उनका बेटा सेना का बड़ा अफसर बनकर यहां के हालात ठीक कर दे। करीब तीन दशक से वे आतंकवाद का दंश झेल रहे हैं।
पापा की मौत से अंजान हैं मासूम
16 जून को थाना प्रभारी फिरोज डार भी अनंतनाग के अच्छाबल में गश्त पर था। आतंकियों के अचानक हुए हमले में डार सहित छह पुलिस कर्मी शहीद हो गए। फेसबुक पर वर्ष 2013 को लिखी कविता पर पूरा देश रो उठा था। डार की दो बेटियां 6 वर्षीय अदाह और दो वर्षीय सिमरन पापा की मौत से अंजान हैं। उन्हें उम्मीद है कि पापा गुडिया लेकर आएंगे। ईद पर कई उपहार देने का वादा किया था। शहीद की पत्नी मुबीना, वृद्ध माता-पिता और रिश्तेदारों ने आतंक का खेल खेलने वालों को खूब कोसा था।
फेसबुक पर यह लिखा था
क्या आपने एक पल के लिए भी रुककर स्वयं से सवाल किया कि मेरी कब्र में मेरे साथ पहली रात को क्या होगा? उस पल के बारे में सोचना जब तुम्हारे शव को नहलाया जा रहा होगा और तुम्हारी कब्र तैयार की जा रही होगी। उस दिन के बारे में सोचो जब लोग तुम्हें तुम्हारी कब्र तक ले जा रहे होंगे और तुम्हारा परिवार रो रहा होगा... उस पल के बारे में सोचो जब तुम्हें तुम्हारी कब्र में डाला जा रहा होगा।
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