अपंगता का दायरा बढ़ाने की सिफारिश
सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसद की स्थायी समिति ने डाइबिटीज टाइप-1, खराब किडनी और ब्लड कैंसर के मरीजों को भी अपंग व्यक्ति का दर्जा देने की सिफारिश की है। केंद्र सरकार ने पिछले साल राज्यसभा में 'विकलांग व्यक्तियों के अधिकार' विधेयक प्रस्तुत किया था। इसमें अपंगता की सूची में
नई दिल्ली। सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसद की स्थायी समिति ने डाइबिटीज टाइप-1, खराब किडनी और ब्लड कैंसर के मरीजों को भी अपंग व्यक्ति का दर्जा देने की सिफारिश की है। केंद्र सरकार ने पिछले साल राज्यसभा में 'विकलांग व्यक्तियों के अधिकार' विधेयक प्रस्तुत किया था। इसमें अपंगता की सूची में 19 तरह की स्थितियों को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया। बाद में व्यापक विचार-विमर्श के लिए विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया। स्थायी समिति ने सात मई को अपनी रिपोर्ट संसद को सौंप दी है। इसमें सरकार से अपंगता का दायरा बढ़ाने की सिफारिश की गई है।
हालांकि, संसदीय समिति के सुझावों का विरोध भी शुरू हो गया है। 'विकलांग व्यक्तियों के लिए आयुक्त कार्यालय' के पूर्व मुख्य आयुक्त प्रसन्न कुमार पिंचा ने इन सिफारिशों को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि ब्लड कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों को अपंगता के दायरे में रखने की संसदीय समिति की सिफारिश सही नहीं है। पिंचा के अनुसार, किसी बीमारी को विकलांगता का दर्जा दे देना अनुचित है। यदि इस सिफारिश को मान लिया जाता है तो विकलांगता की परिभाषा बुरी तरह से कमजोर हो जाएगी। उन्होंने विकलांगों के रोजगार से जुड़े मुद्दों पर किसी तरह की सिफारिश नहीं किए जाने को लेकर भी निराशा जताई है।
बहाली के लिए विशेष अभियान
केंद्र सरकार ने अपंग व्यक्तियों के लिए रिक्त पदों पर बहाली के लिए विशेष अभियान चलाने का फैसला किया है। कार्मिक विभाग ने एक आदेश जारी कर सभी मंत्रालयों और विभागों से इस संबंध में तत्काल जरूरी कदम उठाने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय दृष्टिहीन परिसंघ की याचिका पर 28 अप्रैल के अपने अंतरिम आदेश में विकलांग व्यक्तियों के खाली पदों पर जल्द भर्ती करने को कहा था। कोर्ट के आदेश के बाद कार्मिक मंत्रालय ने सभी मंत्रालयों और विभागों से नियुक्ति प्रक्रिया 31 दिसंबर, 2015 तक पूरी कर लेने को कहा है।