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कश्मीर मुद्दे पर दुनिया का समर्थन खो चुका पाकिस्तानः हक्कानी

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर राग अलापने वाले पाकिस्तान को इस मुद्दे पर न तो कुछ मिलना था और न ही कुछ मिला। अमेरिका में पाकिस्तान के एक पूर्व राजदूत ने भी माना कि पाकिस्तान को अब कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल नहीं है। उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से

By Sudhir JhaEdited By: Published: Wed, 02 Sep 2015 04:42 PM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2015 05:04 PM (IST)
कश्मीर मुद्दे पर दुनिया का समर्थन खो चुका पाकिस्तानः हक्कानी

वाशिंगटन। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर राग अलापने वाले पाकिस्तान को इस मुद्दे पर न तो कुछ मिलना था और न ही कुछ मिला। अमेरिका में पाकिस्तान के एक पूर्व राजदूत ने भी माना कि पाकिस्तान को अब कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल नहीं है। उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से क्षेत्र में जनमतसंग्रह कराने की मंजूरी मिलने की संभावना भी नहीं है।

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अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी के मुताबिक, कश्मीर पाकिस्तान में एक भावनात्मक मुद्दा है। उसके नेता अपने लोगों को यह बताने में असफल रहे हैं कि पाकिस्तान को इस मुद्दे पर अब अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल नहीं है। हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान वर्षों से इस बात के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन मांग रहा है कि कश्मीर के भविष्य संबंधी विवाद को भारत के साथ वार्ता के जरिए सुलझाया जाए और कश्मीरी लोगों के बीच जनमतसंग्रह कराया जाए। उन्होंने कहा कि भारत इस विवाद पर तब तक बात भी नहीं करना चाहता, जब तक पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद समाप्त नहीं हो जाता। हक्कानी हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण एवं मध्य एशिया के मौजूदा निदेशक हैं।

हक्कानी ने एक लेख में लिखा, अधिकतर पाकिस्तानी यह नहीं जानते हैं कि कश्मीर के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आखिरी प्रस्ताव 1957 में पारित हुआ था और यदि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में नए मतदान की बात करता है तो वह कश्मीर में जनमतसंग्रह के लिए आज समर्थन हासिल नहीं कर सकता।

हक्कानी ने कहा कि दोनों देशों के लिए व्यापार बढ़ाकर और सीमा पार यात्रा के जरिए संबंधों को सामान्य करना बेहतर होगा, लेकिन पाकिस्तानी कट्टरपंथी 'कश्मीर' के मंत्र पर अटके हुए हैं जो कि अवास्तविक है। उन्होंने कहा कि कश्मीर पर रुख पाकिस्तान को कहीं नहीं लेकर जाएगा लेकिन उसके नेताओं को लगता है कि उन्हें अपने देश में इस्लामियत और सेना का समर्थन हासिल करने के लिए इस रुख पर बने रहना होगा।

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