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56 किमी की खूनी सड़क पर अब तक हो चुके हैं 49 जवान शहीद

कभी वनोपज का केंद्र रहे जगरगुंडा को नक्सलवाद ने टापू बना दिया है। चार दशक से बन रही सड़क के बनते ही नक्सलियों की बढ़ जाएगी परेशानी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 26 Apr 2017 04:19 AM (IST)Updated: Wed, 26 Apr 2017 05:51 AM (IST)
56 किमी की खूनी सड़क पर अब तक हो चुके हैं 49 जवान शहीद
56 किमी की खूनी सड़क पर अब तक हो चुके हैं 49 जवान शहीद

रायपुर (नई दुनिया)। छत्तीसग़़ढ स्थित सुकमा जिले की दोरनापाल से जगरगुंडा तक 56 किलोमीटर की सड़क पिछले चार दशक से राज्य सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। इसका निर्माण चल रहा है। कभी वनोपज का केंद्र और उप तहसील मुख्यालय रहे जगरगुंडा में अब कंटीले तारों से घिरा एक सलवा जुडूम कैंप है। तारों के पार मौत का सामान लेकर नक्सली खड़े रहते हैं। जगरगुंडा को देश से जोड़ने के तीन रास्ते हैं, जिनमें से दो पर बम बिछे हैं और तीसरे पर जब चाहे तब नक्सली एंबुश लगाकर जवानों को शहीद कर देते हैं। यानी नक्सलवाद ने इसे टापू बना दिया है।

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इसी रास्ते पर 2010 में अब तक की सबसे बड़ी नक्सल वारदात हुई थी, जिसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। जगरगुंडा सड़क निर्माण को सुरक्षा दे रहे सीआरपीएफ के 25 जवानों की सोमवार को शहादत के बाद एक बार फिर यह सड़क सुर्खियों में है। इससे पहले बासागुडा की तरफ सड़क निर्माण सुरक्षा में लगे 24 जवान अलग-अलग हमलों में शहीद हुए हैं। जगरगुंडा से बीजापुर के बासागुडा तक, दंतेवाड़ा के अरनपुर तक और सुकमा के दोरनापाल तक तीन रास्ते हैं।

दोरनापाल-जगरगुंडा 56 किमी सड़क पर कई घटनाएं हो चुकी हैं। 2008 में मुकरम के पास नक्सलियों ने सड़क काट दी थी। जगरगुंडा से एक पार्टी थानेदार हेमंत मंडावी के नेतृत्व में गढ्डा पाटने निकली और नक्सलियों के एंबुश में फंस गई। इसमें 12 जवानों ने शहादत दी। सड़क के लिए कई बार टेंडर निकाला गया, लेकिन कोई ठेकेदार सामने नहीं आया। डीजी नक्सल ऑपरेशन व पुलिस हाउसिंग बोर्ड के एमडी डीएम अवस्थी ने बताया कि अब पुलिस खुद सड़क बना रही है।

बासागुडा और अरनपुर की ओर से आवागमन चार दशक से बंद है। दोरनापाल से एकमात्र रास्ता है जो जगरगुंडा तक जाता है। 2007 में जगरगुंडा में सलवा जुडूम कैंप खुलने के बाद नक्सलियों ने चिंतलनार के आगे 12 किमी मार्ग पर सभी पुल उड़ा दिए। बासाग़़ुडा और दोरनापाल दोनों ओर से जगरगुंडा सड़क बन रही है।

नक्सली कब्जे में चार सौ किमी सड़क

बस्तर में कोंटा के मरईग़़ुडा से भेज्जी, चिंतागुफा, जगरगुंडा, किरंदुल, दंतेवाड़ा,  बारसूर, नारायणपुर, अंताग़़ढ होते हुए राजनांदगांव में एनएच तक करीब चार सौ किमी सड़क ऐसी है, जिसका अधिकांश हिस्सा नक्सलियों के कब्जे में है। भेज्जी में इसी सड़क पर बन रहे पुल की सुरक्षा में लगे जवानों पर 11 मार्च को हमला किया गया था, जिसमें 12 जवान शहीद हुए थे।

सरकार बना रही 27 सड़कें : बस्तर में सरकार एक हजार किमी लंबाई की 27 सड़क बना रही है। बीजापुर से बासागुडा तक 52 किमी सड़क बन चुकी है। बीजापुर-गंगालूर 22 किमी की सड़क बनाई गई है। इस साल केंद्रीय बजट में बस्तर के नक्सल इलाकों में 556 किमी सड़कों के लिए अलग से राशि मिली है। इससे नक्सली बेचैन हैं। नक्सली कहते हैं कि हमारे इलाके में किसी के पास साइकिल तक नहीं है। यहां सड़क की क्या जरूरत। सरकार सड़क इसलिए बना रही है ताकि यहां बड़ी कंपनियां आ पाएं और बस्तर के संसाधनों को लूट सकें।

सड़कें जिन पर बहा जवानों का खून -- बीजापुर जिले में आवापल्ली--जगरगुंडा सड़क पर सीआरपीएफ के 24 जवान शहीद।

- दंतेवाड़ा जिले में अरनपुर-जगरगुंडा मार्ग पर सुरक्षा में तैनात जवान का पैर नक्सलियों के बिछाए प्रेशर बम की चपेट में आकर शहीद।

बीजापुर जिले में भैरमगढ़ से बीजापुर तक एनएच 63 के निर्माण के दौरान नक्सलियों ने 13 बार ब्लास्ट किया। दो जवान शहीद।

- बीजापुर में ही बासाग़़ुडा से तर्रेम तक 12 किमी सड़क निर्माण के दौरान कई बार आईईडी ब्लास्ट। दो जवान शहीद, कई घायल।

गीदम से भैरमग़़ढ के बीच सड़क निर्माण के दौरान पुंडरी के पास ब्लास्ट हुआ। इसमें एक जवान शहीद

बीजापुर के मिरतुर मार्ग के निर्माण में सीएएफ (छत्तीसग़़ढ सुरक्षा बल) के एक सहायक कमांडेंट शहीद

नक्सली हमले में हिडमा का नाम

बुरकापाल में सीआरपीएफ जवानों पर हमले में एक बार फिर नक्सल कमांडर हिडमा का नाम सामने आ रहा है। हिडमा नक्सलियों के मिलिट्री दलम नंबर--एक का कमांडर है। उस पर 25 लाख रपए का इनाम घोषित है। वह दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर तीनों जिलों में नक्सल लड़ाकों का नेतृत्व करता है। मार्च में भेज्जी के पास कोत्ताचेरू में सीआरपीएफ जवानों पर हमले में उसका नाम सामने आया था। इससे पहले भी झीरम घाटी में 2013 में सीआरपीएफ पर हमले में उसकी भूमिका बताई गई थी। उसी के बाद से यह नाम चर्चा में है। यह खबर भी चर्चा में है कि जनवरी 2017 में सुरक्षा बलों के साथ मुठभे़ड़ में हिडमा मारा गया है। हालांकि, इसकी पुष्टि नहीं हुई है।

नक्सल विरोधी रणनीति में बड़े बदलाव के संकेत

केंद्रीय गृहमंत्री ने 8 मई को बुलाई नक्सल प्रभावित राज्यों की बैठक बुलाई है। उन्‍होंने हमले को बताया अंधा कत्ल बताया है। उन्‍होंने कहा कि बस्तर का विकास देखकर घबरा गए हैं नक्सली महीनेभर में शहादत की दूसरी बड़ी वारदात ने सरकार को नक्सल मोर्चे की रणनीति पर फिर से विचार करने के लिए विवश कर दिया है। मंगलवार को रायपुर पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार अपनी रणनीति पर विचार करेगी।

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8 मई को नक्सल प्रभावित राज्यों की दिल्ली में बैठक बुलाई गई है। जरूरत पड़ी तो रणनीति में बदलाव भी किया जाएगा। सुकमा हमले में शहीद सीआरपीएफ के जवानों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे गृहमंत्री सिंह ने माना में अफसरों के साथ बैठक की। इसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, डीजीपी व सीआरपीएफ के डीजी सहित आला अफसर मौजूद थे। सूत्रों के अनुसार इसमें व्यवस्था में चूक की बात सामने आई है। हालांकि गृहमंत्री ने मीडिया से चर्चा में कहा कि यह वक्त किसी पर दोषषारोपण का नहीं है। जरूरत प़़डी तो नक्सल मोर्चे पर और वरिष्ठ अफसर की भी पोस्टिंग कर सकते हैं।

आदिवासी और गरीबों के सबसे ब़़डे दुश्मन राजनाथ ने नक्सलियों को आदिवासियों और गरीबों का सबसे बड़ा दुश्मन बताया। उन्होंने कहा कि नक्सली विकास विरोधी हैं, आदिवासियों को ढाल बनाकर विकास रोकना चाहते हैं। बस्तर में हो रहे विकास कार्यो के कारण नक्सली डिप्रेशन में इस तरह के हमले कर रहे हैं। इसे हमने चुनौती के रूप में स्वीकार किया है। छोटे प़़ड गए ताबूत शहीद जवानों के लिए रायपुर में लाए गए ताबूत छोटे पड़ गए। आकार बड़ा करने के लिए आनन--फानन में रात में ही ताबूत बनाने वालों को बुलाया गया। इसमें बटालियन के जवानों की भी मदद ली गई। एक अफसर ने बताया कि 25 ताबूत की जरूरत थी। 17 का आकार ठीक था। आठ छोटे थे, उन्हें बड़ा करवाना पड़ा।

घायल जवानों ने राजनाथ से कहा- नहीं मिली समय पर मदद

केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह मंगलवार को सुकमा के बुर्कापाल में हुए नक्सली हमले में घायल जवानों से मिलने रामकृष्ण केयर और बालाजी अस्पताल पहुंचे। उन्हें देख घायल जवानों का दर्द फूट पड़ा।  उन्होंने गृहमंत्री को पीडा बताई। घायलों ने शिकायत की कि उन्हें स्थानीय पुलिस प्रशासन से समय पर मदद नहीं मिली। समय रहते मदद मिल जाती तो वे नक्सलियों को ढेर कर देते। नक्सलियों ने कायरों की तरह ग्रामीणों और आदिवासियों को आगे कर दिया था। इस वजह से नक्सलियों पर जवाबी कार्रवाई करने में दिक्कत हो रही थी।

शहीद जवानों को दी गई श्रद्धांजलि

सुकमा में शहीद सीआरपीएफ के 25 जवानों को राजधानी के माना में मंगलवार को श्रद्धांजलि दी गई। जवानों का पार्थिव शरीर राज्य सशस्त्र बल की चौथी बटालियन के मुख्यालय में रखा गया था। सशस्त्र बलों की सलामी के बीच राज्यपाल बलरामजी दास टंडन, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सहित अन्य ने श्रद्धांजलि दी।

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