'आंखों के सामने हमारी दुकान जमींदोज हो गई'
शनिवार को धरती कांपी तो हम अपने घरों व दुकान से बाहर सड़क पर आ गए। हमारी दुकान चंद सेकेंड में ही तेज आवाज के साथ भरभरा कर आंखों के सामने जमींदोज हो गई। भागो-भागो की चीख पुकार के शिवाय कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था।
महराजगंज । शनिवार को धरती कांपी तो हम अपने घरों व दुकान से बाहर सड़क पर आ गए। हमारी दुकान चंद सेकेंड में ही तेज आवाज के साथ भरभरा कर आंखों के सामने जमींदोज हो गई। भागो-भागो की चीख पुकार के शिवाय कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था। सड़क पर खड़े हों तो एक तरफ पांव थरथरा रहा था, तो दूसरी तरफ मस्तिष्क नाच रहा था। आंखों के सामने ही बर्बादी का नजारा देख होश उड़ गए थे। यह खौफनाक मंजर देख मानो काठ मार गया हो। भगवान का शुक्र कि हम जिंदा बच गए। पस्थितियां तो सुधर जाएगी, लेकिन यह घटना जिंदगी भर नहीं भूलेगी। यह पीड़ा काठमांडू में रहकर पांच वर्षों से दुकान चला रहे उन पीडि़तों की है जो किसी तरह जान बचाकर मंगलवार को भारत पहुंचे।
नेपाल से भूकंप में फंसे यात्रियों के आने का सिलसिला मंगलवार अबतक जारी है। काठमांडू से निजी वाहन से सोनौली सीमा पर पहुंचे 42 यात्रियों में काठमांडू के न्यू बस पार्क के पास कुछ भारतीय दुकानदार भी थे। मंगलवार की दोपहर को जैसे ही वह सीमा पर पहुंचे तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने नोमेंस लैंड पर खड़े होकर वतन लौटने पर भगवान को हाथ जोड़ कर धन्यवाद दिया। काठमांडू में पांच साल से दुकान चलाने वाले उत्तर प्रदेश के बिजनौर निवासी बाबू सिंह, सीटू सिंह, संसार सिंह व कवि सिंह की आंखे भर आई। बताया कि भूकंप के बाद हर तरफ चीख पुकार व तबाही थी। जान बचाने के लिए लोग घरों व दुकानों से मैदान व खाली स्थानों की ओर भाग रहे थे। तबाही के बाद बारिश ने तो खुले आसमान तले शरण लिए लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी। ऊपर से खाने पीने के सामनों के लाले पड़ गये। जो मिनरल वाटर की बोतल बीस रुपये की मिल रही थी, उसे सौ रुपये में खरीद कर पीना पड़ा।