पूर्व रेल मंत्री ने कहा, यह रेल बजट नहीं-एक आइडिया है
पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने कहा मैंने पूरा रेल बजट पढ़ा नहीं है। सिर्फ सुना है, जिसके आधार पर मैं जो कह सकता हूं, वो यह है कि इस बार जो पेश किया गया है, वह दरअसल रेल बजट ही नहीं है। ये तो यह कहने जैसा है कि
नई दिल्ली। पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने कहा मैंने पूरा रेल बजट पढ़ा नहीं है। सिर्फ सुना है, जिसके आधार पर मैं जो कह सकता हूं, वो यह है कि इस बार जो पेश किया गया है, वह दरअसल रेल बजट ही नहीं है। ये तो यह कहने जैसा है कि मैं चांद पर जाऊंगा। यह एक आइडिया है, एक सपना है लेकिन अहम यह है कि आप वहां पहुंचेंगे कैसे?
यह भविष्य की बात है, लेकिन वर्तमान में आपके फंड में लगभग 50 फीसद की कमी है। आप इस अंतर को कैसे दूर करेंगे? इसमें ढेर सारे वादे किए गए हैं, लेकिन महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख नहीं किया गया है। जिन परियोजनाओं की घोषणा की गई है, उनके लिए फंड कहां से आएगा, इसका उल्लेख नहीं है। कोई रोड मैप नहीं है। बिना रोड मैप के गंतव्य स्थल पर कैसे पहुंचा जा सकेगा? यह बजट भविष्य के लिए है। वर्तमान के लिए इसमें कुछ भी नहीं है। मैं इस रेल बजट से निराश हूं।
परिचालन व्यय को कम करने की बात होनी चाहिए। रेलवे की परियोजनाओं व विस्तारीकरण के लिए पैसे कहां से आएंगे? विश्व बैंक, बांड्स व अन्य माध्यमों से धन जुटाने की निर्भरता कैसे कम होगी, इसका भी इसमें कहीं कोई जिक्र नहीं है। मैं रेलवे को एयर इंडिया की दिशा में बढ़ते देख रहा हूं। उसका कोष खाली है। सबसे पहले भारतीय रेलवे की नींव को मजबूत करने और यात्री सुविधाओं को बढ़ाने की जरूरत है। अगर भारतीय रेलवे उस तरह से काम नहीं करेगी, जिस तरह से इसे करना चाहिए तो देश की अखंडता पर ही सवालिया निशान लग जाएगा।बुलेट ट्रेन एक अच्छी योजना है लेकिन 'एलिस इन वंडरलैंड' जैसी है।
बुलेट ट्रेन को एक किलोमीटर तक चलाने में लगभग 300 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। भारतीय रेलवे की मौजूदा हालत देखकर क्या इसे व्यावहारिक कहा जा सकता है? रेलवे हमारे देश की जीवन रेखा है। हमें इसकी देखभाल करनी होगी। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इसके लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार की जानी चाहिए।
मैंने हमेशा इस बात को माना है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था रेलवे की ताकत को समझ नहीं पाई है। राजनीतिक व्यवस्था इस आसान सी बात को भी नहीं समझ पाई है कि रेलवे देश के जीडीपी में 2.5 फीसद का योगदान कर सकता है। रेलवे के बिना मुद्रास्फीति को भी नियंत्रित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह माल को ढोने का भी काम करती है। रेलवे हमारी आधारभूत संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
कांग्रेस नेता और पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल ने कहा कि इस रेल बजट से उन्हें निराशा हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार यह कह कर अपना पीठ तपथपाना चाह रही है कि रेल भाड़े में कोई वृद्धि नहीं की गई है लेकिन यह कहकर आम जनता से धोखा किया जा रहा है। जब हमने रेल बजट पेश किया था उस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की जो कीमत थी अब आधी रह गई है। इसे देखते हुए रेल भाड़े में कमी की जानी चाहिए थी।
कांग्रेस के राजीव शुक्ला, जयप्रकाश जायसवाल ने भी रेल बजट की आलोचना करते हुए इसे निराशाजनक बताया है। इन लोगों का कहना है कि इसमें जो घोषणाएं हुई है उसपर भी कोई अमल नहीं होने वाला। बसपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने रेल बजट को आंखों में धूल झोंकने वाला बताया है।
इसी तरह से आम जनता भी इस रेल बजट से संशय की स्थित में हैं। बजट में कोई नए ट्रेन की घोषणा नहीं की गई है। साथ ही सुरक्षा को लेकर भी कोई खास घोषणा नहीं की गई है। लोगों का कहना है कि बजट में घोषणाएं तो हर बार होती है लेकिन उस पर अमल नहीं होता। इस लिए हमने सरकार से उम्मीद करनी ही छोड़ दी है। टिकटों को लेकर परेशान लोगों ने कहा कि इस समस्या को लेकर कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई है।
ट्रेनों आैर स्टेशनों पर साफ सफाई के बारे में घोषणाएं तो की गई है लेकिन लोग इसे लेकर कोई खास उत्साहित नहीं हैं। उनका मानना है कि जब कुछ होगा तभी हम विश्वास कर सकते हैं। क्योंकि इतने सालों में अबतक तो कुछ नहीं हुआ। रेल बजट में जो घोषणाएं की गई है उनपर कितना अमल होता है यह तो समय ही बताएगा।
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