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संग्राम पर विपक्षी खेमा फिर बंटा, संसद चलने की बढ़ी उम्मीद

सोमवार को भी संसद में गतिरोध बरकरार था। लोकसभा में विपक्षी खेमा वोटिंग के नियम के तहत चर्चा के लिए अड़ थे जबकि सरकार किसी नियम से इसे अलग रखना चाहती थी।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Mon, 05 Dec 2016 08:17 PM (IST)Updated: Mon, 05 Dec 2016 08:34 PM (IST)
संग्राम पर विपक्षी खेमा फिर बंटा, संसद चलने की बढ़ी उम्मीद

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नोटबंदी पर सरकार के साथ जारी सियासी तनातनी में विपक्षी एकता एक बार फिर बंटती दिखाई दे रही है। लोगों को नोटबंदी से दिक्कतों पर तो विपक्षी खेमे की करीब 17 पार्टियां एकमत है। मगर संसद में वोटिंग के नियम में ही नोटबंदी पर बहस को लेकर केवल तीन दल कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां अपने रुख पर कायम हैं। इसके अलावा विपक्षी खेमे की अधिकांश पार्टियां अब संसद में नोटबंदी पर नियमों से परे चर्चा की हिमायत कर रही हैं। विपक्षी खेमे में संसद ठप होने को लेकर दिखी इस बेचैनी के मद्देनजर सरकार को संसद का गतिरोध अगले एक-दो दिन में दूर होने की उम्मीद है।

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सोमवार को भी संसद में गतिरोध बरकरार था। लोकसभा में विपक्षी खेमा वोटिंग के नियम के तहत चर्चा के लिए अड़ थे जबकि सरकार किसी नियम से इसे अलग रखना चाहती थी। विपक्ष के कई दल भी सरकार के इस रुख से थोड़े सहमत थे। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सदन में कहा कि किसी भी दल ने नोटबंदी को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा नहीं किया है। अगर जनता को हो रही परेशानी मुद्दा है तो चर्चा होनी चाहिए और सरकार जो भी जरूरी सुझाव आएंगे उस पर अमल करेगी।

वहीं राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी ने यह कहकर शोर शराबा कर रहे विपक्षी नेताओं को कठघरे में खड़ा कर दिया कि हंगामा करने से उन्हें केवल कवरेज मिलेगा लेकिन समाधान नहीं निकलेगा। इसका असर भी दिखा। दोनों सदनों में विपक्षी दलों के बीच ही बंटवारा सामने आने लगा है। बीजद के बाद सोमवार को लोकसभा में टीआरएस के जितेंद्र रेड्डी ने नियमों के दायरे से परे नोटबंदी पर चर्चा की खुली वकालत कर साफ संकेत दे दिया कि उनकी पार्टी संसद को आगे ठप करने के पक्ष में नहीं है। बीजद नेता भर्तृहरि महताब भी इसी तरह की राय जाहिर कर चुके हैं।

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने भी लोकसभा में चर्चा की जरूरत बता नियमों के सवाल पर चुप्पी साध संकेत दिए कि वे भी नोटबंदी की मुसीबतों पर तत्काल बहस चाहते हैं। इन पार्टियों का मानना है कि यदि गतिरोध खत्म नहीं हुआ तो नोटबंदी से मुश्किलों के खिलाफ संसद के जरिए अपनी बात जनता को पहुंचाने का मौका हाथ से निकल जाएगा। साथ ही संसद को ठप करने की पूरी तोहमत भी सरकार उनके सिर मढ़ने की कोशिश करेगी।

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दरअसल विपक्षी दलों के नेता चाहते हैं कि जिस जनता की सुविधा के लिए वह सवाल उठा रहे हैं और संसद में गतिरोध है उन तक बात भी जाए। वह अपनी बात कह सकें और जरूरी सुझाव भी दें। इसी बहाने सरकार को कठघरे में खडा करने का मौका भी मिलेगा। लिहाजा बुधवार से लोकसभा सुचारू हो सकता है हालांकि इस पर संशय है कि वह कितने दिनों तक सुचारू रहेगा। जरूरत हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से माफी की मांग दोबारा उठाकर विपक्ष फिर से गतिरोध पैदा कर सकता है।


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