ओएनजीसी ने 2005 में दे दिए थे सरस्वती के संकेत
हरियाणा के यमुनानगर के जिस मुगलावाली गांव में 10 फीट की खुदाई में मिले पानी को हजारों साल पहले लुप्त सरस्वती नदी का पानी बता उसके पुनर्जन्म के रूप में माना जा रहा है, उस अवधारणा को तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के अध्ययन ‘सरस्वती ओएनजीसी प्रोजेक्ट’ में पहले
देहरादून (सुमन सेमवाल)। हरियाणा के यमुनानगर के जिस मुगलावाली गांव में 10 फीट की खुदाई में मिले पानी को हजारों साल पहले लुप्त सरस्वती नदी का पानी बता उसके पुनर्जन्म के रूप में माना जा रहा है, उस अवधारणा को तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के अध्ययन ‘सरस्वती ओएनजीसी प्रोजेक्ट’ में पहले ही मजबूत आधार दिया जा चुका है।
वर्ष 2005 में रिमोट सेंसिंग और धरातलीय अध्ययन के माध्यम से ओएनजीसी के भूगर्भीय विशेषज्ञ यह बता चुके थे कि सरस्वती नदी आज भी सैकड़ों किलोमीटर नीचे जिंदा है। अध्ययन में यह भी बताया गया कि किन कारणों से नदी लुप्त हो गई।
यह अध्ययन ओएनजीसी से अधिशासी निदेशक पद से सेवानिवृत्त डॉ. एमआर राव ने किया था। उन्होंने पहले नदी के रूट की सेटेलाइट मैपिंग की और फिर धरातलीय जानकारी जुटाई। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के काला अंब के पास ‘सरस्वती टियर फाल्ट’ का बारीकी से अध्ययन किया गया। इसके आधार पर कहा गया कि हजारों साल पहले आए भीषण भूकंप के कारण यमुना और सतलुज नदी ने अपना रास्ता बदल दिया। यमुना पूरब में बहते हुए दिल्ली पहुंच गई और सतलुज पश्चिम में होते हुए सिंधु नदी में मिलने लगी। जबकि, पहले इन दोनों नदियों का पानी सरस्वती में मिलकर हरियाणा, राजस्थान व गुजरात होते हुए कच्छ में मिलता था। यही दोनों नदियां सरस्वती नदी के जल का मुख्य स्नोत भी थीं। सरस्वती को जल न मिलने के कारण यह नदी सूख गई।
अवशेषीय अध्ययन के बाद ओएनजीसी ने राजस्थान के जैसलमेर से सात किलोमीटर दूर जमीन में करीब 550 मीटर तक डिल किया। वहां पर 7600 लीटर प्रति घंटे की दर से साफ पानी निकला था। यही नहीं संस्थान ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के भारत-पाक विभाजन के कुछ समय बाद के सर्वे का अध्ययन भी किया। पता चला कि हरियाणा व राजस्थान में करीब 200 स्थलों पर सरस्वती के पानी के निशान मौजूद हैं। डॉ. राव के मुताबिक इस पूरे क्षेत्र में विस्तृत अध्ययन की जरूरत है, ताकि सरस्वती नदी को पुनर्जीवित किया जा सके।
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