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एनआरएचएम घोटाले का एक और आरोपी गिरफ्तार

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले के आरोपी दवा कारोबारी व डिस्ट्रीब्यूटर महेंद्र पांडेय को सीबीआइ ने कल लखनऊ से गिरफ्तार कर सीबीआइ कोर्ट गाजियाबाद में पेश किया। इसके बाद सीबीआइ भ्रष्टाचार निरोधक कोर्ट ने उसे पांच दिनों की रिमांड पर भेज दिया। सीबीआइ ने 14 दिनों की रिमांड मांगी थी।

By Edited By: Published: Sat, 02 Aug 2014 12:47 PM (IST)Updated: Sat, 02 Aug 2014 12:48 PM (IST)
एनआरएचएम घोटाले का एक और आरोपी गिरफ्तार

लखनऊ। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले के आरोपी दवा कारोबारी व डिस्ट्रीब्यूटर महेंद्र पांडेय को सीबीआइ ने कल लखनऊ से गिरफ्तार कर सीबीआइ कोर्ट गाजियाबाद में पेश किया। इसके बाद सीबीआइ भ्रष्टाचार निरोधक कोर्ट ने उसे पांच दिनों की रिमांड पर भेज दिया। सीबीआइ ने 14 दिनों की रिमांड मांगी थी।

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महेंद्र कुमार पांडेय ने भगवती इंटरप्राइजेज व एसके डिस्ट्रीब्यूशन फर्म नाम से वाराणसी व सुल्तानपुर में करोड़ों की दवा सप्लाई की थी। वर्ष 2009-10 में हुए इस घोटाले का खुलासा होने के बाद सीबीआइ ने महेंद्र पांडेय को आरोपी बनाया था। इस मामले की अगली सुनवाई 20 अगस्त को होगी।

तीन के खिलाफ चार्जशीट पेश

एनआरएचएम घोटाले के तीन आरोपियों के खिलाफ सीबीआइ ने कोर्ट में चार्जशीट पेश कर दी। कल सीबीआइ भ्रष्टाचार निरोधक कोर्ट में डॉ. चित्रा सिंह, डॉ. एससी सचान, डॉ. अंजू जायसवाल के खिलाफ चार्जशीट दायर की। इसके बाद अब सीबीआइ आगे की कार्रवाई करेगी।

दवा खरीद में हुआ लाखों का घोटाला

हाइकोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने एनआरएचएम घोटाले की जांच शुरू की थी। 27 अगस्त 2013 को सुल्तानपुर जिले में दवा की फर्जी आपूर्ति पर तत्कालीन उपमुख्य चिकित्साधिकारी, सीएमओ कार्यालय के स्टोर कीपर (मुख्य फार्मासिस्ट) के खिलाफ आधा दर्जन धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई थी। सीबीआइ ने पाया कि सिप्रोफ्लोक्सीन हाइड्रोक्लोराइड के 7620 बाक्स व आइब्रूफेन नाम की टेबलेट की 24 सौ बाक्स की खरीद में ही तकरीबन 15 लाख 94 हजार रुपये का घोटाला किया गया है। घोटाले में वाराणसी के मूल निवासी और लखनऊ के नरही के अपार्टमेन्ट के फ्लैट से कारोबार चलाने वाले महेन्द्र पाण्डेय ने भी आपराधिक षड्यंत्र किया था। महेंद्र ने वाराणसी समेत कई जिलों में अंधता निवारण योजना में चश्मा, लेंस की आपूर्ति की, जिसमें बड़े पैमाने पर घोटाला किया गया। ये लोग स्वास्थ्य अधिकारियों से मिलीभगत कर ऐसी दवाएं सरकारी अस्पतालों को आपूर्ति करते थे, जिनकी एक्सपायरी डेट करीब होती थी। इसके जरिए भी करोड़ों रुपए की कमाई की गई। फर्जी फर्मे भी गठित कर ली गई थीं। इनमें एक फर्म का पता लखनऊ के इंडस्ट्रीयल क्षेत्र, हजरतगंज बताया गया था जबकि लखनऊ के हजरतगंज में इंडस्ट्रीयल क्षेत्र है ही नहीं।

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