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जाट आरक्षण पर उठे एतराज

जाट आरक्षण के सियासी फैसले के एक दिन बाद ही इस पर गंभीर एतराज उठने लगे हैं। दरअसल केंद्र सरकार ने पिछड़ा वर्ग राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशों को दरकिनार कर रविवार को जाटों को आरक्षण देने का फैसला किया है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जाट समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नहीं

By Edited By: Published: Mon, 03 Mar 2014 10:53 PM (IST)Updated: Mon, 03 Mar 2014 10:56 PM (IST)
जाट आरक्षण पर उठे एतराज

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। जाट आरक्षण के सियासी फैसले के एक दिन बाद ही इस पर गंभीर एतराज उठने लगे हैं। दरअसल केंद्र सरकार ने पिछड़ा वर्ग राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशों को दरकिनार कर रविवार को जाटों को आरक्षण देने का फैसला किया है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जाट समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नहीं माना है। वहीं, इस फैसले ने कांग्रेस में बगावत के बीज बो दिए हैं। पार्टी में अरसे से हाशिये पर रहे राशिद अल्वी ने बगावती तेवर अपनाते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को बेहद कड़ा पत्र लिखा है। अल्वी के साथ ही केंद्र सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रहमान खान ने भी जाट आरक्षण के मुद्दे पर सरकार से नाराजगी जताई है।

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कुछ दिन पहले केंद्र सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में पिछड़ा वर्ग आयोग ने जाट आरक्षण के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। इसमें कहा गया था कि जाट ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल होने की कसौटी और मापदंडों पर खरे नहीं उतरते। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने जाट आरक्षण पर मुहर लगा दी। इस पर सोमवार को पत्र के जरिये पार्टी के पूर्व प्रवक्ता राशिद अल्वी ने सवाल पूछा है कि क्या यह मुजफ्फरनगर दंगों में हुए कत्लेआम का नतीजा है? साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार व आलाकमान से मुस्लिम आरक्षण और सांप्रदायिक हिंसा निरोधक कानून को मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर तुरंत लागू करने की मांग भी की। कांग्रेस से मोहभंग होने के स्पष्ट संकेत दे रहे अल्वी ने कहा कि जाट आरक्षण के फैसले से उत्तर प्रदेश के मुसलमानों में बेचैनी पैदा हो गई है। एक जमाने से मुसलमान आरक्षण और सांप्रदायिक दंगा निरोधक कानून की मांग करते रहे हैं। उन पर कोई सुनवाई नहीं हुई, लेकिन जाटों को आरक्षण दे दिया गया। हम मुस्लिम नेता हैं और हमारी कौम के लोग हमसे सवाल कर रहे हैं। हमारे लिए उनका सामना करना मुश्किल होता है। इसीलिए, हमने सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है।

बकौल अल्वी चिट्ठी में उन्होंने दो मांगें रखी हैं। पहला आबादी के हिसाब से जल्द से जल्द मुस्लिम आरक्षण को मंजूरी दी जाए और दूसरा दंगा निरोधक विधेयक को अध्यादेश के जरिये लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को अलग से आरक्षण की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय ज्यादा शिक्षित और बेहतर हालात में हैं। लिहाजा संसाधनों का फायदा वह उठा ले जाते हैं और मुस्लिमों को कुछ नहीं हासिल हो पाता। अल्वी ने राहुल के भ्रष्टाचार के विरोधी बिलों पर अध्यादेश लाने की कोशिशों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ विधेयक ठीक है, लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है कि मुल्क में अमन कायम रहे और सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे। अल्वी के साथ दिल्ली के कांग्रेसी विधायक आसिफ मुहम्मद भी मौजूद थे।

उधर, रहमान खान ने भी सांप्रदायिक हिंसा निरोधी बिल पर सरकार के ढीले रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि यदि जाट आरक्षण पर फैसला हो सकता है तो सांप्रदायिक हिंसा निरोधी विधेयक पर क्यों नही। सरकार का रवैया निराशाजनक है। उन्होंने जाट आरक्षण के फैसले के समय पर भी सवाल उठाया।


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