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सरकारी बैंकों में 38 फीसद बढ़ी डिफॉल्टरों की संख्या

खुद को डिफॉल्टर घोषित करने वालों की संख्या दिसंबर 2015 तक 7686 पहुंच गई है। जबकि दिसंबर 2012 में येे संख्या 5554 थी।

By Anand RajEdited By: Published: Wed, 04 May 2016 12:56 PM (IST)Updated: Wed, 04 May 2016 04:54 PM (IST)
सरकारी बैंकों में 38 फीसद बढ़ी डिफॉल्टरों की संख्या

नई दिल्ली। सरकारी बैंकों का कर्ज लेकर चुकता नहीं करने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। पिछले तीन सालों में इनकी संख्या में 38 फीसद की वृद्धि देखी गई है। इसमें ऐसे लोग शामिल हैं जो ऋण चुकाने की हैसियत रखने के बाद भी ऋण नहीं चुकाने के लिए खुद को डिफॉल्टर घोषित कर देते हैं।

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अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक खुद को डिफॉल्टर घोषित करने वालों की संख्या दिसंबर 2015 तक 7686 पहुंच गई है। जबकि दिसंबर 2012 में येे संख्या 5554 थी। इस दौरान ऋण राशि भी तीन गुना बढ़ कर 66190 करोड़ पहुंच गया। जबकि तीन साल पहले यह राशि 27750 करोड़ रुपये था। मंगलवार को सरकार ने इस बात की जानकारी संसद को दी।

हालांकि बैंकरों ने चेतावनी दी है कि कुछ बैंक अभी भी बाहर की कंपनियों और उनके प्रवर्तकों को नेट से दूर रख रहे हैंं। बैंक्स अभी भी बकाएदारों की पहचान के लिए जान-बूझकर रिजर्व बैंक के पूर्ण दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। अभी तक इस बात के कोई भी प्रमाण नहीं है कि किसी कर्जदार ने जानबूझकर खुद को डिफॉल्टर घोषित किया है। यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के एक पूर्व कार्यकारी निदेशक दीपक नारंग ने बताया कि हाल के वर्षों में ऐसी घटनाओं में वृद्धि हुई है, लेकिन अभी भी सभी खातों की पहचान नहीं की गई है।

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दीपक नारंग ने इंडियन ओवरसीज बैंक और यूनाइटेड बैंक का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि इन बैंकों में ऐसे डिफॉल्टर्स की संख्या में कमी आई है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि जब सिस्टम में एनपीए बढ़ रहा है और बैंक घाटे की बात कह रहे हैं। ऐसी स्थिति में यह कैसे संभव है।

आरबीआई के नियमों के मुताबिक बैंक किसी भी कर्जदार को डिफॉल्टर तब घोषित कर सकतेे हैं जब कर्जदार पुर्णभुुगतान नहीं कर पाता है। ठीक उसी तरह कोई कर्जदार अपनी चल या अचल संपत्ति को कर्ज चुकाने के लिए बाजार में बेचने की इजाजत देता है तो उन्हें डिफॉल्टर घोषित किया जाता है।

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