परेशान हैं दिल्लीवासी, एलजी से केजरीवाल पूछ रहे हैं अपने अधिकार
संवैधानिक व्यवस्थाओं पर अक्सर सवाल उठाने वाले दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने एलजी बैजल से पूछा कि वो ही बता दें उनके अधिकार क्या हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । सियासत की राह चलने वालों की चाल कभी सीधी नहीं होती है। सियासत खुद कई रास्ते बनाती है, मौके देती है और राजनेता अपनी सुविधा के अनुसार मौकों की व्याख्या करते हैं। भ्रष्टाचार और जनांदोलन से निकली हुई आम आदमी पार्टी में लोगों को उम्मीद दिखी। आम आदमी पार्टी ने लोगों को सपने दिखाए। लेकिन फर्जी डिग्री मामले में जीतेंद्र तोमर, भ्रष्टाचार के मामले में असीम अहमद खान और कदाचार के मामले संदीप कुमार उस दाग के तौर पर सामने आए जिससे आदर्श व्यवस्था की नारा बुलंद करने वाली केजरीवाल की पार्टी दूसरे दलों की तरह लगने लगी। आम जनमानस में ये धारणा बनने लगी कि अपनी खामियों पर ध्यान देने की जगह केजरीवाल दोषारोपण में ज्यादा यकीन रखते हैं। लेकिन सीएम केजरीवाल अभी भी दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल से पूछ रहे हैं कि वो ही बता दें कि दिल्ली सरकार के अधिकार क्या हैं।
'केजरी' कथा
- दिल्ली सरकार के अधिकार के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को राजनिवास जाकर एलजी से मुलाकात की।
- गुरुवार को एलजी अनिल बैजल को खत लिखकर पूछा कि वो ही बता दें कि सीएम के अधिकार क्या हैं ?
- उप राज्यपाल और सीएम के अधिकारों को लेकर आप ने दिल्ली हाइकोर्ट में अपील की थी। लेकिन दिल्ली हाइकोर्ट ने अपने फैसले में ये साफ कर दिया कि उपराज्यपाल सर्वोच्च हैं।
- दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ आप पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां मामला विचाराधीन है।
- दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले के बाद तत्कालीन उप राज्यपाल नजीब जंग ने इसे संवैधानिक वैधताओं की जीत बताया था। दिल्ली हाइकोर्ट ने अपने फैसले में सीएम और एलजी के अधिकारों को स्पष्ट किया था।
अनिल बैजल के उपराज्यपाल बनने के बाद शुरुआत में दिल्ली सरकार के अलग अलग विभागों के अधिकारियों ने सीएम और उनके मंत्रियों के आदेशों का पालन किया, लेकिन पंजाब और गोवा के चुनाव में आप के मंत्रियों के व्यस्त होने की वजह से उप राज्यपाल ने प्रमुख सचिव समेत दूसरे सचिवों से सीधे सवाल जवाब करना शुरू कर दिया और उन्हें आदेश जारी किये जाने लगे। इन सब हालात से परेशान केजरीवाल ने कहा आम आदमी पार्टी चुनी हुई सरकार है। सरकार के पास भी फैसले लेने के अधिकार है। इस लिए अब ये तय होना चाहिए कि किस तरह के फैसले उपराज्यपाल लेंगे और किस तरह के फैसले लेने का अधिकार सरकार के पास है।
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कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने Jagran.com से खास बातचीत में कहा कि अगर दो साल सरकार में रहने के बाद केजरीवाल को ये पता नहीं कि उनके अधिकार क्या हैं तो ये हास्यास्पद बात है। दरअसल केजरीवाल जी को सरकार चलाने का अनुभव नहीं है। इसके अलावा वो हमेशा विवादों में रहना चाहते हैं ताकि अखबारों में रोजाना नाम आ सके। दिल्ली सरकार के रूल ऑफ बिजनेस में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल की भूमिका क्या है। शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि हकीकत ये है कि पिछले दो साल अपने कामकाज में नाकाम रहने पर वो कभी एलजी पर ठीकरा फोड़ते हैं तो कभी केंद्र सरकार पर और जब लगता है कि इसका कोई फायदा नहीं हो रहा है तो कांग्रेस को निशाना बनाने लगते हैं।
इतिहास के कूड़ेदान में चली जाएगी आम आदमी पार्टी-आनंद कुमार
स्वराज इंडिया के संस्थापक सदस्य व आप के पूर्व नेता प्रोफेसर आनंद कुमार ने कहा कि दिल्ली को पूर्ण स्वराज का दर्जा मिलना चाहिए और इसके लिए बीजेपी जो लगातार इस बात की वकालत करती रही है उसे अपनी करनी और कथनी को एक करके दिखाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि केजरीवाल को इस तरह की बयानबाजी बंद करनी चाहिए कि उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा है क्योंकि लोगों ने एमसीडी चुनाव में अपने मत देकर अपनी इच्छा जाहिर कर दी है। ऐसे में अगर वे अब भी नहीं चेते तो इतिहास के कूड़ेदान में इस पार्टी को जगह मिलेगी।
कपिल मिश्रा के आरोपों का असर तो नहीं
आप के कद्दावर नेताओं में से एक कपिल मिश्रा ने पहली बार अपने ही मुखिया पर संगीन आरोप लगाए। ये अपने आप में एक बड़ी घटना थी। अरविंद केजरीवाल जिस आर्थिक भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाकर भारतीय जनमानस के दिलों में राज कर रहे थे उस पर बट्टा लग चुका था। मंत्री कपिल मिश्रा ने कहा था कि उन्होंने खुद दिल्ली सरकार के एक मंत्री सत्येंद्र जैन से केजरीवाल को दो करोड़ रुपये लेते देखा था। इस बावत जब केजरीवाल से पूछा तो उनका जवाब हतोत्साहित करने वाला था। केजरीवाल ने कहा था कि राजनीति में कुछ सवालों का जवाब तुरंत नहीं मिलता है। इससे पहले आर्थिक भ्रष्टाचार , फर्जी डिग्री, कदाचार के मामलों में कई मंत्रियों को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी। अपने मंत्रियों के मामले में आप सरकार सफाई देकर अपने आप को उन पापों से अलग करने का दावा किया। लेकिन इस दफा मामला ज्यादा ही संगीन था। पार्टी के कद्दावर नेताओं को एहसास होने लगा कि अब दोषारोपण के झांसे में जनता नहीं आने वाली है, लिहाजा अब मुद्दों को फिर से बदलना होगा।
एमसीडी हार के बाद जमीन खिसकने का डर तो नहीं
पंजाब और गोवा में मिली करारी हार के बाद आप नेताओं की बौखलाहट सामने आ गई। पार्टी के सभी नेता एक सुर में बोलने लगे की उनकी हार के पीछे मतदाता नहीं थे बल्कि मोदी सरकार द्वारा चुनाव आयोग को उपलब्ध करायी गई ईवीएम थी। लेकिन आप के नेताओं का ईवीएम राग नहीं रुका। दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणामों ने एक बार फिर आप की बौखलाहट बढ़ा दी। सीएम केजरीवाल ने चुप्पी साध ली लेकिन डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया और श्रम मंत्री गोपाल राय साफ शब्दों में कहा कि हार के पीछे सिर्फ और सिर्फ ईवीएम ही जिम्मेदार हैं। हालांकि पार्टी के कुछ विधायकों ने कहा कि हार के लिए ईवीएम को दोष देने की जगह आत्मचिंतन करना चाहिए। इस संबंध में आप ने दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जिसमें पार्टी विधायक सौरभ भारद्वाज ने बकायदा डेमो देकर ये बताया कि ईवीएम में किस तरह से छेड़छाड़ की जाती है। आप के आरोपों को स्वीकार करते हुए चुनाव आयोग ने ईवीएम हैक करने की खुली चुनौती दी। इसके लिए तीन जून के दिन को भी मुकर्रर किया। चुनाव आयोग के इस रुख के बाद आप के अलावा दूसरे विरोधी दलों ने अपने तेवर नरम कर लिए। ऐसे में आप को ये अहसास होने लगा कि कहीं ऐसा न हो जनता के बीच उनकी छवि और खराब न हो जाए।
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