मोहनलालगंज कांड: अब सीबीआइ करेगी जांच
राज्य सरकार ने अंतत: रोंगटे खड़े कर देने वाले राजधानी के मोहनलालगंज कांड की जांच सीबीआइ से कराने की सिफारिश कर दी। सोमवार की सुबह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उच्चाधिकारियों से विमर्श के बाद यह फैसला किया। सीबीआइ जांच स्वीकार न करने के चलते सरकार की किरकिरी हो रही थी और विपक्ष लगातार हमले कर रहा था।
लखनऊ। राज्य सरकार ने अंतत: रोंगटे खड़े कर देने वाले राजधानी के मोहनलालगंज कांड की जांच सीबीआइ से कराने की सिफारिश कर दी। सोमवार की सुबह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उच्चाधिकारियों से विमर्श के बाद यह फैसला किया। सीबीआइ जांच स्वीकार न करने के चलते सरकार की किरकिरी हो रही थी और विपक्ष लगातार हमले कर रहा था।
मोहनलालगंज में 16 जुलाई की रात एक युवती के साथ दरिंदगी की हद पार कर दी गयी और उसे बड़ी बेरहमी से मारा गया। पुलिस ने घटना का राजफाश करते हुए एक गार्ड रामसेवक यादव के सिर ठीकरा फोड़ दिया, लेकिन सवालों से घिरी उसकी कहानी किसी के गले नहीं उतरी। युवती के नाबालिग बच्चे स्वयंसेवी संगठनों की मदद से सीबीआइ जांच की मांग को लेकर पिछले कई दिनों से आंदोलित थे। वे गांधी प्रतिमा पर भूख हड़ताल पर बैठ गए। बच्चों ने सीबीआइ जांच समेत छह सूत्रीय मांगों को लेकर शासन को अपना पत्रक भी सौंपा था। उधर राजनीतिक दल भी सीबीआइ जांच की मांग पर अड़े थे।
गृह सचिव कमल सक्सेना और पुलिस महानिरीक्षक कानून-व्यवस्था अमरेन्द्र कुमार सिंह ने पत्रकारों को बताया कि लखनऊ के एसएसपी ने अपनी आख्या डीजीपी को भेजी। डीजीपी ने एसएसपी की रिपोर्ट शासन को संदर्भित कर दी। सुबह उच्चाधिकारियों के साथ विमर्श के बाद मुख्यमंत्री ने सीबीआइ जांच कराने का निर्णय लिया। कमल सक्सेना ने कहा कि प्रारूप तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा जायेगा। बहरहाल, इतने दिन बाद घटना की सीबीआइ जांच की सिफारिश पर भी सवाल उठने लगे हैं। राजनीतिक दलों के नेताओं का आरोप है कि पुलिस ने साक्ष्य मिटा दिए तब जांच की सिफारिश की गयी है।
किडनी प्रकरण की जांच पर ब्रेक : सीबीआइ जांच की सिफारिश होने के साथ ही मृत युवती के किडनी प्रकरण की जांच पर ब्रेक लग जायेगा। दरअसल पोस्टमार्टम रिपोर्ट में युवती की दो किडनी दिखाई गयी, जबकि उसने अपनी एक किडनी अपने पति को दान दी थी। पीजीआइ में उसका आपरेशन हुआ था और वहां के प्रशासन का दावा है कि युवती के पास एक ही किडनी है। विवाद बढ़ने पर मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य महानिदेशक की दो सदस्यीय टीम को यह जांच सौंपी थी। इस संदर्भ में पूछे जाने पर गृह सचिव कमल सक्सेना ने बताया कि सीबीआइ जांच शुरू होगी तो सभी प्रकरण उसे स्थानांतरित हो जायेंगे। इस बीच अगर जांच टीम ने रिपोर्ट बना ली होगी तो शासन को सौंप सकती है।
अब गेंद केंद्र के पाले में :
मोहनलालगंज के निर्भया कांड ने सूबे को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। चौतरफा इस घटना की भर्त्सना हो रही है और यूपी पुलिस के रवैये पर सवाल-दर-सवाल उठ रहे हैं। सरकार ने सीबीआइ जांच की सिफारिश कर गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है। असल में राज्य सरकार की सिफारिश के बाद केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय सीबीआइ से इस बाबत उसकी मर्जी जानने के बाद अधिसूचना जारी करता है। राज्य सरकार द्वारा सिफारिश किए गए अधिकांश मामलों में सीबीआइ जांच से इंकार करती रही है। वैसे भी जिस तरह इस घटना में साक्ष्यों से छेड़छाड़ की गयी है, उससे यही लग रहा है कि सीबीआइ शायद ही जांच स्वीकार करे। बम धमाकों के आरोपी खालिद मुजाहिद की मौत के मामले में सीबीआइ और कार्मिक मंत्रालय ने राज्य सरकार की सिफारिश की अनदेखी कर दी। आगरा के नेहा शर्मा, मुरादाबाद की मेडिकल छात्रा नीरज भड़ाना, आजमगढ़ के पूर्व विधायक सर्वेश सिंह सीपू, बदायूं की दो बहनों की दुष्कर्म के बाद हत्या जैसे अधिकांश मामलों में अदालती हस्तक्षेप के बाद ही सीबीआइ जांच के लिए राजी हुई। माना जा रहा है कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह के संसदीय क्षेत्र के जिले का मामला होने की वजह से केंद्र सरकार इस मामले में रूचि ले सकती है और जांच के लिए सीबीआइ को निर्देशित कर सकती है।
अदालती आदेश के बाद जांच अनिवार्य : जब अदालत से सीबीआइ के लिए जांच का आदेश होता है, तब जांच एजेंसी बिना अधिसूचना जारी हुए भी जांच कर सकती है। अदालत के निर्देश पर लगभग सभी मामलों में सीबीआइ जांच स्वीकार कर लेती है।
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