Move to Jagran APP

आतंक पर सियासत: आतंकियों के मुकदमे वापस लेने की मांग पर नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने सिलसिलेवार धमाकों के आरोपी आतंकियों के मुकदमे वापस लेने का अधिकार मांगने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है। कोर्ट ने इस पर केंद्र से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। उप्र की अखिलेश सरकार आतंकियों के 14 मुकदमे वापस लेना चाहती है, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश्

By Edited By: Published: Fri, 29 Aug 2014 07:47 PM (IST)Updated: Fri, 29 Aug 2014 07:48 PM (IST)
आतंक पर सियासत: आतंकियों के मुकदमे वापस लेने की मांग पर नोटिस

नई दिल्ली, माला दीक्षित। सुप्रीम कोर्ट ने सिलसिलेवार धमाकों के आरोपी आतंकियों के मुकदमे वापस लेने का अधिकार मांगने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है। कोर्ट ने इस पर केंद्र से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। उप्र की अखिलेश सरकार आतंकियों के 14 मुकदमे वापस लेना चाहती है, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश ने उसके मंसूबों पर पानी फेर रखा है। हाईकोर्ट के फैसले से ट्रायल कोर्ट में लंबित मुकदमा वापसी की अर्जियों पर सुनवाई रुकी हुई है। इसमें सबसे ज्यादा छह मुकदमे लखनऊ के शामिल हैं।

loksabha election banner

अखिलेश सरकार ने सत्ता में आने से पहले मुसलमानों को खुश करने के लिए निर्दोष मुस्लिमों के मुकदमे वापस लेने की घोषणा की थी। बाद में हाईकोर्ट ने रंजना अग्निहोत्री की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गत वर्ष 12 दिसंबर के फैसले में कहा था कि आरोपी गैरकानूनी गतिविधि रोक अधिनियम में शामिल हैं, जो कि केंद्रीय कानून है और ऐसे में मुकदमा वापस लेने के लिए केंद्र की मंजूरी आवश्यक है। प्रदेश सरकार को हाईकोर्ट की ये कानूनी व्याख्या नहीं पच रही है। शुक्रवार को उप्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन व रवि प्रकाश मल्होत्रा ने हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि मुकदमे वापस लेने से पहले केंद्र की मंजूरी अनिवार्य नहीं है। मामले की जांच राज्य पुलिस ने की है और मुकदमा भी वही चला रही है। अगर हाई कोर्ट का नियम लागू होगा तो आइपीसी की सारी धाराओं में केंद्र की मंजूरी की जरूरत होगी।

उनका कहना था कि केंद्र की मंजूरी सिर्फ सीबीआइ व एनआइए जांच के मामलों में जरूरी होनी चाहिए। न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने दलीलें सुनने के बाद नोटिस जारी करते हुए केंद्र के साथ साथ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने वाली रंजना अग्निहोत्री से भी जवाब मांगा है। उप्र सरकार की ओर से बताया गया कि सीआरपीसी की धारा 321 में मुकदमे वापस लेने का अधिकार राज्य को दिया गया है। हाईकोर्ट का फैसला राज्य के अधिकार को सीमित करता है। हाईकोर्ट का यह कहना भी गलत है कि लोक अभियोजक (सरकारी वकील) बिना कारण बताए धारा 321 के तहत अर्जी देकर मुकदमा वापस नहीं ले सकता। हाईकोर्ट ने फैसला देते समय उसके असर पर विचार नहीं किया। इस फैसले का लंबित मुकदमों पर असर पड़ेगा। हाई कोर्ट का आदेश बने रहने लायक नहीं है, इसलिए इसे रद किया जाए। लखनऊ से छह मुकदमे वापसी की मांग के अलावा कानपुर से तीन और वाराणसी, गोरखपुर, बिजनौर, रामपुर, बाराबंकी से एक-एक मुकदमे वापस लेने की मांग उप्र सरकार ने की थी।

पढ़ें: यूपी के 25 मंत्रियों पर आपराधिक मामले विचाराधीन


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.