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पाकिस्तान से वापसी को लेकर उज्मा ही नहीं, सुषमा भी थीं बेचैन

उज्मा अहमद की सकुशल स्वदेश वापसी को लेकर विदेश मंत्री काफी चिंतित थी।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Mon, 29 May 2017 12:55 AM (IST)Updated: Mon, 29 May 2017 05:48 AM (IST)
पाकिस्तान से वापसी को लेकर उज्मा ही नहीं, सुषमा भी थीं बेचैन
पाकिस्तान से वापसी को लेकर उज्मा ही नहीं, सुषमा भी थीं बेचैन

आशुतोष झा, नई दिल्ली। प्रशासनिक दृढ़ता, मानवीय संवेदना और मानसिक सतर्कता में कुछ भी थोड़ा भी कम होता तो पाकिस्तान में अपने पति के घर नर्क झेल चुकी उज्मा अहमद की स्वदेश वापसी मुश्किल थी। उज्मा ने समझ-बूझ दिखाई और चतुराई से अपने पति ताहिर को पैसे का लोभ देकर इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग तक लेकर आई। तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज खुद से उसकी भारतीय नागरिकता की पुष्टि करने से लेकर वाघा बॉर्डर पर ही कार के अंदर गुजारे गए कुछ घंटे तक एक-एक पल की खबर लेती रहीं। खुद सुषमा ने इसकी पुष्टि की।

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मलेशिया में ताहिर और उज्मा की मुलाकात और पाकिस्तान में बंदूक की नोंक पर शादी की सच्चाई तो सार्वजनिक है लेकिन उज्मा की रिहाई तक विदेश मंत्रालय पैरों पर खड़ा था, इसकी जानकारी कुल लोगों को ही होगी। बताते हैं कि जब पहली बार पाकिस्तान स्थित उच्चायोग के डिप्टी जेपी सिंह ने सुषमा को इसकी जानकारी दी तो सबसे पहले नागरिकता पुष्ट करने का निर्देश मिला। दरअसल सुषमा नहीं चाहती थीं कि कहीं कोई चूक हो। उज्मा से दिल्ली के उसके परिवार वालों का पता लिया और उसके भाई को अपने घर बुलाया। पूरी तहकीकात हुई। अपने घर से ही उज्मा और उसके भाई की बात करवाई। जब आश्वस्त हो गईं कि उज्मा को अंधेरे में रखकर पाकिस्तान में ज्यादती हुई है तो जेपी सिंह को स्पष्ट निर्देश दिया कि भले ही साल दो साल उज्मा को रखना पड़े वह उच्चायोग में ही रहेगी।

अच्छी बात यह थी कि उज्मा के वीजा की अवधि बाकी थी। इस बीच सुषमा रोजाना औसतन तीन बार फोन कर उज्मा के बाबत जानकारी लेती थीं। खुद भी बात कर उसे ढाढस देती रहीं। उसका मन ज्यादा बेचैन लगा तो सुषमा ने जेपी सिंह को यह तक सुझाव दिया कि उज्मा को कोई काम दें। दरअसल, पति की ओर से जिस तरह एफआइआर दर्ज कराया गया था और उच्चायोग के बाहर भी उत्पात मचाया जा रहा था उससे उज्मा घबरा गई थी। वह बार-बार कहने लगी थी कि वापस भेजा तो जहर की पुडि़या भी साथ दे देना। इस बीच उज्मा की वापसी से जुड़ा मामला न्यायालय में चलता रहा।

एक मोड़ फिर आया जब अदालत ने वाघा बार्डर से ही उसकी वापसी का निर्देश दिया लेकिन बॉर्डर पहुंचते पहुंचते गेट बंद हो चुका था। भारतीय अधिकारियों ने डिप्लोमैटिक वीजा का हवाला देकर गेट खुलवाने की कोशिश की लेकिन सुषमा ने रोक दिया। निर्देश था- ऐसा कुछ न करो जिससे बात बिगड़े। उनसे कहा गया- बॉर्डर पर ही उच्चायोग की गाड़ी के अंदर गेट खुलने का इंतजार करो। गेट खुला और उज्मा स्वदेश में थी। खुशी के आवेग में उज्मा ने भारत की मिट्टी को चूमा था, उसी आवेग में सुषमा भी यह भूल गई थीं कि 10 जून तक डॉक्टरों ने किसी भी व्यक्ति के स्पर्श से दूर रहने का निर्देश दिया था।

जाहिर तौर पर वापसी की पहली कोशिश उज्मा ने ही की थी जब उसने अपने पति की भावना को समझते हुए यह झूठ कहा था कि भारतीय उच्चायोग में उसका भाई काम करता है। अगर उनसे मिलने चलें तो शादी के बाद तोहफे के रूप में उनसे अच्छी रकम मिल सकती है। ताहिर इस लोभ के कारण ही उज्मा को वहां तक लेकर आया था।

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