भारत- चीन के बीच नहीं हो सकता है युद्ध, लेकिन झड़पों से नहीं कर सकते हैं इंकार
कई वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और चीन आमने-सामने का युद्ध नहीं कर सकते हैं।
नई दिल्ली (एजेंसी)। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव बरकरार है और चीनी मीडिया इसे और भड़काने का काम कर रही है। इन सबके इतर वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और चीन के बीच शायद ही आमने सामने का युद्ध हो, लेकिन झड़पों से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
डोकलाम पठार की ऊंचाइयों पर चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के अलावा भारतीय सैनिकों ने भी तंबू गाड़ दिए हैं जिससे गतिरोध बना हुआ है। भारत, चीन और भूटान के त्रिकोणीय संबंधों के मुद्दे पर यह गतिरोध लगातार बढ़ रहा है। दोनों देशों का मीडिया लगातार 'युद्ध' शब्द पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
चीनी सरकार के मुखपत्र कहे जाने वाले 'ग्लोबल टाइम्स' ने हाल में ही लिखा था, 'यदि भारत अपने अड़ियल रवैये को नहीं छोड़ता है तो उसे चीनी सीमा से लगी पूरी एलएसी पर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।' सीमा के वर्तमान हालातों पर नजर रखने वाले वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन कभी भी पूरी तरह से युद्ध के लिए नहीं जा सकता है लेकिन जिन क्षेत्रों में वह कमजोर है वहां चीनी सेना द्वारा कुछ भी किया जा सकता है।
डोकलाम में भारत को है फायदा
रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल डी.के. मेहता (सेवानिवृत्त) मानते हैं कि डोकलाम में चीनी सेना (पीएलए) द्वारा तैयार किए गए वर्तमान हालात, भारत पर दबाव बनाने के लिए एक मनोवैज्ञानिक कार्रवाई का हिस्सा हैं। जनरल मेहता बताते हैं कि अगर वर्तमान परिदृश्य को देखा जाए तो दोनों ही देशों के बीच युद्ध होना असंभव है क्योंकि दोनों देशों के पास मामलों को हल करने के लिए और भी परिपक्व तरीके हैं। जनरल मेहता मानते हैं कि अगर युद्ध होता है, तो भारत चीन के मुकाबले लाभ की स्थिति में रहेगा जिसका कारण है इसकी कम ऊंचाई। पहाड़ी क्षेत्रों में युद्ध होने की स्थिति में युद्ध जीतने का अनुपात 1: 9 हो जाता जाता है, क्योंकि दुश्मन को एक सैनिक का मुकाबला करने के लिए नौ सैनिक तैनात करने पड़ेगे।
रणनीति के तहत दबाव बना रहा है चीन!
जनरल मेहता के अनुसार, 'हां, चीन अपने सैनिकों को और अधिक संख्या में तैनात करने को मजबूर हो सकता है, क्योंकि अब हमारे पास चीन के मुकाबले अच्छे उपग्रह और दूसरे पर निगरानी रखने वाली अच्छी क्षमताएं हैं और हमारे पास बेहतर मौसम प्रणाली भी मौजूद है। हालांकि एक युद्ध की बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है, लेकिन चीन रणनीति के तहत भारत पर दवाब बनाने की कोशिश कर रहा है।'
मेजर जनरल बी. के. शर्मा ने इस बात को लेकर चिंतित हैं कि चीन भारत को डोकलाम से सेना हटाने पर मजबूर करने के लिए कुछ शायद दवाब बना रहा है। जनरल शर्मा का कहना है कि हमें चीन द्वारा अन्य क्षेत्रों में भी सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। वह भी एक आमने सामने के युद्ध की संभावना से इंकार करते हैं।
एलएसी पर चीन है मजबूत स्थिति में
सूत्र बताते हैं कि चीन पिछले दो महीनों से लगातार तिब्बत में अपनी सैन्य गतिविधयों को बढ़ाने में लगा है। भारत ने तिब्बत से लगी 1100 किमी. लगी लंबी सीमा पर बड़ी मात्रा में सैनिकों की तैनाती कर दी है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की कुल लंबाई 3,488 किमीं है। चीन ने काराकोरम पास से शुरू होकर अरुणाचल प्रदेश तक लगने वाली 3,488 किमी लंबी एलएसी पर 15-16 डिवीजन तैनात कर रखी हैं। जो चीनी आर्मी के वेस्टर्न थियेटर कमांड के अंतर्गत आथा है। यदि युद्ध की स्थित आती है तो चीन के पास चार और डिवीजन हैं जो चीन के शिनजियांग प्रांत में तैनात हैं और यह जम्मू कश्मीर के लद्दाख सेक्टर को कवर करता है।
पहाड़ी सीमाओं में बुनियादी ढ़ाचां मजबूत करने में लगातार जुटे हैं भारत और चीन
भारत और चीन तिब्बत पठारों काफी ऊँचाई वाले स्थानों पर स्थित है जिस कारण लड़ाकू विमान के वजन ढ़ोने की क्षमता प्रभावित होती है और इसमें सुधार कर ने के लिए हाल के दिनों में चीन ने हवाई अड्डों के रनवे की लंबाई में बढ़ोतरी की है। साथ ही, क्षेत्र में दूसरी आर्टिलरी भी तैनात की गई है। चीन ने अपनी मैकेनाइज्ड रेजिमेंट्स तैनात करके तेजी से सैनिकों को स्थानांतरित करने की क्षमता भी विकसित की है, जो भारतीय ब्रिगेड के आकार के बराबर हैं।
भारत और चीन दोनों सीमाओं के आस पास बुनियादी ढांचे को मजबूत करने तथा सीमाओं पर सैन्य उपस्थिति को मजबूत करने के लिए निरंतर कदम उठा रहे हैं। चीन 2009 के बाद से ही आपूर्ति और रसद संबंधित एक वार्षिक अभ्यास कर रहा है। तिब्बत में बुनियादी ढांचे को जुटाने का अभ्यास अनवरत जारी है। भारत भी रणनीतिक सड़क मार्गों का निर्माण करने में व्यस्त है।
धमकी देकर दवाब बनाने में विश्वास रखता है चीन
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के रिचर्स प्रोफेसर भारत कर्नाड के अनुसार चीन धमकी और दवाब बनाने वाले रूख में विश्वास रखता है। कर्नाड बताते हैं, 'चीनी को लगता है कि भारत चीनी बयानबाजी, उत्तेजक कार्रवाई से डरता और चीन भारत को ऐसा कर डोकलाम से हटने पर मजबूर कर सकता है। लेकिन ऐसा नहीं होने वाला है।' सैन्य शब्दों में सीमा स्थिति का विश्लेषण करते हुए कर्नाड बताते हैं कि चीनी ज्यादा कुछ नहीं कर सकते है। भारत के पास चीन से लगी पूर्वी और उत्तरी सीमा क्षेत्रों भारत में पर्याप्त सैनिक हैं। दोनों देशों के बीच ढांचागत सुविधाएं भी पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं। कर्नाड का मानना है कि चीन कभी भी परमाणु युद्ध के लिए नहीं जाएगा।
पूर्व आर्मी चीफ जनरल ब्रिकम सिहं ने डोकलाम को संभावित विवाद के रूप में देखते हैं। जनरल सिंह कहते हैं, 'डोकलाम में दोनों पक्षों के कठोर रुख को देखते हुए, दोनों क्षेत्रीय शक्तियों के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है। अगर यह तनाव लंबे समय तक रहता है तो दोनों देशों के लिए हानिकारक होगा। इसलिए यह जरूरी है कि तनाव को संवाद के माध्यम खत्म करना चाहिए।' जनरल सिंह ने आगे कहा कि यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि मीडिया को इस घटना पर परिपक्वता और संतुलन का इस्तेमाल कर रिपोर्टिंग करना चाहिए। यह दोनों ही पक्षों के लिए महत्वपूर्ण है।