Move to Jagran APP

'मुस्लिम समुदाय में ही निकाह करने के बाद नहीं लगेगा रेप और अपहरण केस'

न्यायालय ने कहा कि अल्पसंख्यक लड़की अगर किसी लड़के साथ भाग जाती है और बाद में अगर दोनों शादी कर लेते हैं तो ऐसे मामले में किसी प्रकार का रेप और अपहरण केस नहीं लगेगा।

By Srishti VermaEdited By: Published: Sat, 24 Jun 2017 11:08 AM (IST)Updated: Sat, 24 Jun 2017 05:17 PM (IST)
'मुस्लिम समुदाय में ही निकाह करने के बाद नहीं लगेगा रेप और अपहरण केस'
'मुस्लिम समुदाय में ही निकाह करने के बाद नहीं लगेगा रेप और अपहरण केस'

अहमदाबाद (जेएनएन)। गुजरात उच्च न्यायालय ने अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों के साथ होने वाले रेप और अपहरण के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। न्यायालय ने कहा कि अल्पसंख्यक लड़की अगर किसी लड़के के साथ भाग जाती है और बाद में अगर दोनों शादी कर लेते हैं तो ऐसे मामले में किसी प्रकार का रेप केस नहीं लगेगा। न्यायालय के अनुसार, शरिया नियम के मुताबिक 18 साल की होने के पहले लड़की की शादी को मान्यता दे दी गई है।

loksabha election banner

गुजरात उच्च न्यायालय ने अपहरण चार्ज से भी इनकार कर दिया है। जिस मामले में कोर्ट ने यह फैसला सुनाया वो कुछ इस प्रकार था, धोराजी का आरिफ अफवन, जो छह साल पहले 16 वर्षीय फरीदा के साथ भाग गया था। फरीदा के पिता ने लड़के के खिलाफ लड़की को बहला फुसलाकर भगाने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई थी जिस पर आईपीसी की धारा 163 और 366 लगाई गई थी। हालांकि दोनों ने 2011 में विवाह कर लिया था। जिस काजी ने उन दोनों का निकाह कराया था उसने उनका मैरिज सर्टिफिकेट भी दिखाया है।

जब वे दोनों शांति से रहना शुरू कर दिए तो अफवन ने अपने ऊपर लगे अपहरण के मामले को हटाने के लिए उच्च न्यायालय में अपील की। उसके वकील ने उच्च न्यायालय में सर्वोच्च न्यायालय की दलीलें भी रखीं। सभी पक्षों को देखते हुए गुजरात उच्च न्यायलय ने अफवन के खिलाफ लगे अपहरण के चार्जेज को हटा लिए।

अन्य मामले में, दिसंबर 2016 में शहर के एक सेशन कोर्ट ने 21 वर्षीय मोहम्मद जैद मंसूरी को उसके ऊपर लगे रेप के चार्जेज से बरी कर दिया जबकि उन दोनों से जन्मे बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने पर ये साबित हो चुका था कि उसकी पिता जैद मंसूरी ही है। मामले में 15 वर्षीय नाबालिग लड़की ने मंसूरी के खिलाफ एएफआईआर भी दर्ज कराई थी लेकिन बाद में उन दोनों की मैरिज सर्टिफिकेट ने मंसूरी को बचा लिया।

मंसूरी के वकील ने उच्च न्यायलय मे तीन साल पहले पास हुए एक कानून की दलील दी जिसमें कहा गया था कि एक मुस्लिम लड़की बालिग होने पर अपनी मर्जी से शादी कर सकती है। साथ ही शरिया कानून के मुताबिक मुस्लिम समुदाय की लड़की 15 साल की उम्र में परिपक्व हो जाती है और वो अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतंत्र होती है। हालांकि उच्च न्यायलय ने 2015 में एक अहम फैसला लेते हुए माना था कि बाल विवाह अधिनियम (पीसीएमए) का निषेध जैसे एक विशेष कानून मुसलमानों के निजी कानूनों पर चल रहा है, जहां मुसलमान अपने नाबालिग बेटियों की शादी करवाते हैं।

इसी प्रकार, 28 वर्षीय युन्नुश शेख के खिलाफ भी बलात्कार, अपहरण और पोस्को के उल्लंघन के आरोपों को हटा लिया गया जिसने उस 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की से शादी कर ली थी। लेकिन उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया था कि बाल विवाह को रोकने के कानूनों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई अवश्य की जानी चाहिए।

यह भी पढ़ें : भाई एवं भाभी को मारपीट कर किया घायल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.