देश भ्रमण की ख्वाहिश, बिना पैसे घूमा 24 राज्य; 1800 ट्रक चालक बने मददगार
27 वर्षीय अंश मिश्रा तीन फरवरी को इलाहबाद स्थित अपने घर से बिना पैसे लिए ही भारत भ्रमण पर निकल पड़े। इन्होंने सिर्फ लिफ्ट लेकर ही एक राज्य से दूसरे राज्य तक का सफर किया।
चंडीगढ़ [शंकर सिंह]। ट्रक, स्कूटर, गाड़ी, साइकिल, बैलगाड़ी या जो भी मिले बस लिफ्ट ले लो...। ड्राइवर के साथ दोस्ती करो। उसके साथ सेल्फी खींचो और फिर निकल जाओ अगले सफर पर। पिछले 225 दिन से इलाहबाद के 27 वर्षीय अंश मिश्रा की जिंदगी यूं ही चल रही है। वह तीन फरवरी को इलाहाबाद से स्थित अपने घर से बिना पैसे लिए ही भारत भ्रमण पर निकल पड़े। इन्होंने सिर्फ लिफ्ट लेकर ही एक राज्य से दूसरे राज्य तक का सफर किया। सोमवार को अंश चंडीगढ़ पहुंचे।
अंश ने कहा कि वह चाहते हैं कि दिवाली से पहले अपनी इस यात्रा को पूरा करें। साथ ही इस पर एक किताब भी लिखने का इरादा है। प्रेस क्लब-27 में उन्होंने अपनी इस यात्रा पर बात की। अंश ने कहा, ‘मुझे ट्रेवलिंग बहुत पसंद है। कॉलेज की पढ़ाई से लेकर नौकरी के दौरान जब भी मौका मिलता था तो निकल पड़ता था। एमबीए और एमसीए करने के बाद एक बीपीओ में नौकरी की। वहां मन नहीं लगा तो खुद का कैंपस रिक्रूटमेंट का काम शुरू किया। इस साल की शुरुआत में ही मैंने अपना बिनजेस शुरू किया था और तीन फरवरी को मैं भारत भ्रमण पर निकल आया।’
तीन मकसद से शुरू किया सफर : अंश ने कहा उन्होंने यात्रा तीन मकसद से शुरू की। पहला तो उन लोगों की गलतफहमी दूर करना, जो ये सोचते हैं कि घूमने के लिए ढ़ेर सारे पैसों की जरूरत होती है। दूसरा, लोगों के दिमाग में भारत के कई क्षेत्रों को लेकर गलतफहमी है। जैसे मणिपुर और नागालैंड जैसे इलाकों में अकेले जाना सुरक्षित नहीं है इत्यादि। तीसरी वजह लोगों की मानसिकता है। हमारे यहां लोग किसी को उसके काम के हिसाब से इज्जत मिलती है। मसलन ट्रक ड्राइवर और ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों को लोग अनपढ़ और बेइज्जती से भरा प्रोफेशन मानते हैं, जबकि इनकी वजह से हमारी इकोनॉमी चल रही है।
पुलिस स्टेशन, सड़क और रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारी : अंश ने कहा कि उनको यात्रा के दौरान लिफ्ट के अलावा खाने पीने और रहने की सबसे बड़ी दिक्कत आई। उन्होंने बताया, ‘मैंने पहले से ही रास्ते में आने वाले गुरुद्वारों, मंदिरों और ऐसी जगह की जानकारी जुटा ली थी जहां मैं रह सकता था। लिफ्ट लेकर कहीं भी पहुंचता तो सबसे पहले वहां गुरुद्वारों और मंदिरों की तलाश करता। यहां खाना और रहना दोनों मिल जाते, लेकिन दक्षिण भारत में इस तरह की सुविधा नहीं मिली। केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में ज्यादातर रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर ही सोना पड़ा। उत्तर पूर्वी राज्यों में भी मुझे यही समस्या झेलनी पड़ी। मणिपुर के मोरे गांव में तो मुझे पुलिस स्टेशन में शरण लेनी पड़ी।’
ढाई दिन भूखा रहा, फिर भी नहीं टूटा हौसला : अंश ने कहा कि उन्हें सफर के दौरान कई बार कई दिन तक खाना नहीं मिला। राजस्थान में सबसे ज्यादा दिक्कत आई। जहां जोधपुर से जैसलमेर के सफर के दौरान ढाई दिन तक भूखा रहा। वहां पानी भी पैसों के बदले मिलता है। बादल खान नाम के एक ड्राइवर ने मेरी मदद की। उसने मुझे अपने होटल के मालिक से मिलाया। वह मेरी यात्रा के बारे में सुनकर बहुत खुश हुआ। उन्होंने मुझे होटल में खाने और रहने की सुविधा दी।
ट्रक ड्राइवरों से ली लिफ्ट : अंश ने अपने पूरे सफर के दौरान करीब 1800 ट्रक ड्राइवरों से लिफ्ट ली। उन्होंने कहा कि हर ट्रक डाइवर ने उनका साथ दिया। अंश ने कहा कि घर से निकलते हुए उन्होंने अपने पास डेबिट और क्रेडिट कार्ड दोनों ही रखे थे, लेकिन अभी तक इस यात्रा के दौरान इसका इस्तेमाल नहीं किया।
इन 24 राज्यों और अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर को पार किया : अंश ने अपने सफर की शुरुआत यूपी से की। इसके बाद दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, सिक्किम, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, बर्मा, भूटान, नेपाल से होते हुए उत्तराखंड, हरियाणा और अब चंडीगढ़ पहुंचे हैं। अंश आगे हिमाचल, जम्मू एंड कश्मीर और लेह लद्दाख से वापस होते हुए इलाहाबाद वापस लौटेंगे।
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