सुलगती सियासत की प्रयोगशाला नहीं बना वेस्ट यूपी
लोकसभा चुनावी नतीजों से उत्साहित भाजपा उपचुनावों के पिच पर ढेर हो गई। ध्रुवीकरण की सियासी लैब बनती वेस्ट यूपी की बयार प्रभावी साबित नहीं हुई। लोकसभा चुनावों में प्रदेश से रिकार्ड सीट दिलाने के बाद सीना ठोंक रहे प्रदेश अध्यक्ष का सियासी कद नए सिरे से तय होगा। उनकी केंद्रीय इकाई में पकड़ ढीली पड़ेगी। राज्य में
मेरठ [संतोष शुक्ल]। लोकसभा चुनावी नतीजों से उत्साहित भाजपा उपचुनावों के पिच पर ढेर हो गई। ध्रुवीकरण की सियासी लैब बनती वेस्ट यूपी की बयार प्रभावी साबित नहीं हुई। लोकसभा चुनावों में प्रदेश से रिकार्ड सीट दिलाने के बाद सीना ठोंक रहे प्रदेश अध्यक्ष का सियासी कद नए सिरे से तय होगा। उनकी केंद्रीय इकाई में पकड़ ढीली पड़ेगी। राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों की कमान थामने की तमन्ना को झटका लगा है। कट्टर राजनीति के नकार को लेकर संघ परिवार में हलचल है।
सियासत के सबक
वेस्ट यूपी में ध्रुवीकरण की उर्वर जमीन राजनीतिज्ञों को लुभाती रही है। लोकसभा चुनावों में भाजपा की रणनीति कारगर रही और सभी समीकरण उलट पुलट गए। प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने वक्त की नजाकत भांपते हुए प्रदेश में सक्त्रियता बढ़ाकर आगामी विधानसभा चुनावों में कमान संभालने की तत्परता भी दिखाई। इसी बीच मुजफ्फरनगर, कांठ प्रकरण, सहारनपुर दंगा और खरखौदा प्रकरण ने भाजपा में हार्डकोर राजनीति में सफलता का मुगालता पैदा कर दिया। भाजपा ने लोकसभा चुनावों में मोदी के नाम पर जीत दर्ज की, किंतु उपचुनावों में संगठन एवं बूथस्तरीय तंगी ने पार्टी को शिकस्त दे दी। पार्टी ने हार्डकोर राजनीति की प्रयोगशाला बनाते हुए वेस्ट यूपी की धरती से खूब चुनावी मिसाइल छोड़ा। योगी आदित्यनाथ को चुनावी कमान थमाकर पार्टी ने ध्रुवीकरण को जमकर हवा दी। गरमागरम बयानों से यूपी की सियासत सुलगती रही। प्रदेश अध्यक्ष ने मथुरा बैठक में लव जेहाद का राग छेड़ा। बाद में अलग थलग पड़ गए। इससे पहले कांठ प्रकरण में एसएसपी को चेतावनी देते हुए उन्होंने भाजपा को नागिन बताया, और खुद ही पार्टी के निशाने पर आए। भगवा खेमे ने अंदेशा लगाया कि लव जेहाद प्रकरण पर प्रदेश कैबिनेट मंत्री आजम खान की 'अकबर जोधा' पर बयानबाजी से उपजी प्रतिक्रिया का पार्टी को फायदा होगा। किंतु चुनावी परिणाम ने भगवा खेमे के कागजी पिरामड को ढहा दिया।
मुरझाया हार्डकोर चेहरा
पार्टी के कई शूरमा टिकट बंटवारे और संगठन की कार्यशैली को निशाना बना रहे हैं। संगठन के जानकार और संघ प्रदेश इकाई से खुश नहीं है। अमित शाह की राष्ट्रीय टीम में शामिल न होने पर प्रदेश अध्यक्ष ने 2017 के प्रदेश विधानसभा चुनावों तक पार्टी की कप्तानी का सपना संजोया था, जो अब नए सिरे से समीक्षा के दायरे में है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने योगी आदित्यनाथ को आगे कर उपचुनावों की आसान जीत की डगर देखी थी, किंतु पार्टी का फामरूला सियासी पगडंडी पर भटक गया। अति उत्साह में डूबे कार्यकर्ताओं ने पार्टी की साख को गच्चा दे दिया। लोकसभा चुनावों में पार्टी इन सभी विधानसभाओं में विपक्षियों पर भारी पड़ी थी, जिसे लेकर प्रदेश अध्यक्ष कम से कम 9 सीट जीतने का दावा जता रहे थे। महज नोएडा, सहारनपुर, और लखनऊ पूर्वी सीट पर जीत ने पार्टी सचेत कर दिया है कि जनता मुद्दों और पार्टियों की नियति को भांपते हुए वोटिंग करने लगी है। डा. लक्ष्मीकांत पार्टी की हार मानने से ज्यादा जोर सूबे की सरकार के मशीनरी के दुरुपयोग पर दे रहे हैं।