तलाक नहीं पहले बेटी की शादी करो
सयानी हो चुकी बिटिया के पिता को भी जिम्मेदारी का अहसास दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को आगे आना पड़ा। कोर्ट ने बीवी से तलाक मांग रहे व्यक्ति को आदेश दिया कि पहले बिटिया की शादी कराओ। कोर्ट ने सुनवाई आठ महीने के लिए टाल दी है। जिस पिता ने जन्म
नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। सयानी हो चुकी बिटिया के पिता को भी जिम्मेदारी का अहसास दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को आगे आना पड़ा। कोर्ट ने बीवी से तलाक मांग रहे व्यक्ति को आदेश दिया कि पहले बिटिया की शादी कराओ। कोर्ट ने सुनवाई आठ महीने के लिए टाल दी है।
जिस पिता ने जन्म से लेकर चौबीस साल तक बिटिया से कभी कोई संबंध नहीं रखा अदालत के अलावा कभी उससे मिला नहीं वो अब अदालत के आदेश पर उसके हाथ पीले करेगा। न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल व न्यायमूर्ति सी. नागप्पन की पीठ ने गत सोमवार याचिका पर सुनवाई टालते हुए शादी का सारा खर्च उठाने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की बेटी विवाह योग्य है। मार्च में बीए के अंतिम वर्ष की परीक्षा देगी। अगर निकट भविष्य में लड़की की शादी होती है तो वह उसका सारा खर्च उठाएगा। इतना ही नही शादी के खर्च के अलावा वह कोर्ट के अंतरिम आदेश के मुताबिक मां बेटी को गुजारा भत्ता भी देता रहेगा। कोर्ट के आदेश पर याचिकाकर्ता 11500 रुपये प्रतिमाह गुजारे भत्ता देता है।
सुनवाई के दौरान पति पत्नी और बेटी तीनों ही कोर्ट में मौजूद थे। समर बहादुर (नाम बदला) के वकील जीतेन्द्र मोहन ने कोर्ट से कहा कि उनका मुवक्किल वन टाइम सेटेलमेंट में 10 लाख रुपये देने को तैयार है जिसमें 5 लाख बेटी की शादी के और 5 लाख पत्नी के लिए, लेकिन रानी ( बदला नाम) के वकील महावीर सिंह और निखिल जैन ने इसका विरोध किया। उन्होंने वन टाइम सेटेलमेंट के तौर पर 50 लाख रुपये मांगे। समर के वकील ने कहा कि ये उनकी सामर्थ्य नहीं है कोर्ट जो चाहे आदेश दे दे। कोर्ट ने समर से कहा आपकी बेटी विवाह योग्य है आप इसकी शादी करिए। समर के वकील ने सामर्थ्य के मुताबिक शादी करने की हामी भरी। जिसके बाद कोर्ट ने तलाक पर सुनवाई 8 महीने के लिए टालते हुए पिता को बिटिया की शादी का खर्च उठाने का आदेश दिया।
क्या है मामला
ये मामला पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गांव का है। जिसमें याचिकाकर्ता की शादी 25 साल पहले अप्रैल 1990 में हुई थी और एक साल बाद ही दोनों अलग हो गए। अक्टूबर 1991 में उनकी बिटिया ने नाना के घर जन्म लिया।
परिवार अदालत ने समर बहादुर की तलाक की अर्जी मंजूर करते हुए तलाक दे दिया था लेकिन पत्नी की
याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक की डिक्री निरस्त कर दी और निचली अदालत द्वारा तय गुजाराभत्ता
भी बढ़ा दिया। इसके खिलाफ समर बहादुर सुप्रीम कोर्ट आया है।