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नीतीश कोविंद के साथ, विपक्ष से दूर, विपक्ष आज तय करेगा उम्मीदवार

जदयू की ओर से कोविंद का समर्थन करने के फैसले के साथ ही विपक्षी गोलबंदी की सियासत बुरी तरह धराशायी हो गई।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 22 Jun 2017 06:52 AM (IST)Updated: Thu, 22 Jun 2017 06:52 AM (IST)
नीतीश कोविंद के साथ, विपक्ष से दूर, विपक्ष आज तय करेगा उम्मीदवार
नीतीश कोविंद के साथ, विपक्ष से दूर, विपक्ष आज तय करेगा उम्मीदवार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की ओर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन करने के फैसले के साथ ही विपक्षी गोलबंदी की सियासत बुरी तरह धराशायी हो गई। विपक्षी गोलबंदी की बुनियाद रखने वालों में शामिल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विपक्ष की बैठक में शरीक होने से भी इन्कार करने से विपक्षी पार्टियों में खलबली मच गई है। नीतीश से मिले इस गहरे सियासी झटके के बावजूद विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है।

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 कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुआई में जदयू को छोड़ विपक्षी खेमे में शामिल अन्य पार्टियों के नेताओं की गुरुवार को हो रही बैठक में विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार का नाम तय किया जाएगा। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार विपक्ष की राष्ट्रपति उम्मीदवार की रेस में सबसे प्रबल दावेदार हैं। नीतीश ने वैसे तो सोमवार को ही सोनिया गांधी और लालू प्रसाद से राजग उम्मीदवार को समर्थन देने की अपनी मंशा जाहिर कर दी थी। फिर भी पटना में बुधवार को जदयू की कोर कमेटी की बैठक बुलाकर उन्होंने अपने फैसले पर मुहर लगवा ली। पार्टी महासचिव केसी त्यागी ने जदयू के कोविंद का समर्थन करने और गुरुवार को विपक्ष की बैठक में नहीं जाने का एलान भी कर दिया। हालांकि पार्टी की केरल इकाई ने नीतीश के फैसले का विरोध करते हुए कोविंद को वोट नहीं देने का एलान किया है।

 विपक्ष के लिए जदयू का राष्ट्रपति चुनाव में राजग के पाले में जाना केवल इस लिहाज से बड़ा झटका नहीं कि इससे वोटों के गणित में विपक्ष कमजोर होगा, बल्कि नीतीश के कदम से 2019 के चुनाव के लिए व्यापक विपक्षी गोलबंदी पर भी गंभीर सवाल खडे़ हो गए हैं। इस बीच बुधवार शाम मीरा कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। मुलाकात के सियासी संकेतों से साफ है कि वह राजग उम्मीदवार कोविंद के खिलाफ विपक्ष का चेहरा हो सकती हैं। हालांकि उम्मीदवारी की दौड़ में पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के साथ पूर्व राज्यसभा सदस्य भालचंद मुंगेकर का नाम भी है।

 बाबा साहब अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए वामपंथी दलों की पहली पसंद बन रहे हैं। इन संभावित उम्मीदवारों के नाम से साफ है कि विपक्ष भी कोंविद के खिलाफ दलित उम्मीदवार को ही उतारने पर गंभीर है।

 दुविधा में राकांपा

नीतीश के इस कदम के बाद विपक्षी खेमे में राकांपा के रुख को लेकर भी आशंका गहरा गई है। राकांपा भी राजग के दलित उम्मीदवार का विरोध करने को लेकर दुविधा में है। हालांकि राकांपा सोनिया की गुरुवार को बुलाई विपक्षी पार्टियों की बैठक में शामिल होगी। तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, नेशनल कांफ्रेंस ने विपक्षी उम्मीदवार उतारने के पक्ष में राय दी है। वहीं राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने बुधवार को फिर कहा कि वह वही करेंगे जो विपक्ष के सभी दल मिलकर तय करेंगे। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी विपक्ष के साथ खड़े हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती पहले ही दलित उम्मीदवार उतारने पर विपक्ष के साथ रहने की बात कह चुकी हैं। इसीलिए विपक्षी रणनीति की अगुआई कर रही कांग्रेस और वामदलों का मानना है कि फिलहाल जदयू के अलावा १७ पार्टियों में कोई अन्य विपक्षी गठबंधन से बाहर जाता नहीं दिख रहा।

 आप विपक्ष के साथ

वामदलों ने संकेत दिया है कि आम आदमी पार्टी भले सीधे विपक्षी गठबंधन में नहीं है मगर राष्ट्रपति चुनाव में वह विपक्ष के उम्मीदवार का समर्थन करेगी। बताया जाता है कि आप और वाम दलों के नेताओं के बीच इस सिलसिले में बात हो चुकी है।

अन्नाद्रमुक भी राजग के साथ

तमिलनाडु में सत्तारूढ़ शशिकला गुट वाले अन्नाद्रमुक ने राजग प्रत्याशी कोविंद को समर्थन देने का फैसला किया है। राज्य के मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ने बुधवार को यह घोषणा की।

नीतीश ने 2012 दोहराया

नीतीश ने राष्ट्रपति चुनाव में विरोधी गठबंधन के उम्मीदवार को समर्थन देने का फैसला पहली बार नहीं किया है। उन्होंने 2012 में राजग में रहते हुए भी राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था।

 इसलिए हैं कोविंद के मुरीद

-बिहार के राज्यपाल रहते उनसे कभी किसी मुद्दे पर टकराव नहीं हुआ।

- शराबबंदी जैसे अहम फैसले का भी कोविंद ने समर्थन किया। जबकि अन्य कई दल व कानूनविद आलोचना कर रहे थे।

- कुलपति चयन में भी नीतीश की पसंद को तवज्जो दी, जबकि कोविंद कुलाधिपति थे और उनके पास सर्वोच्च अधिकार थे।

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