Move to Jagran APP

नीतीश के दांव से लालू चारों खाने चित, सहानुभूति बटोरने का भी नहीं मिला मौका

सीएम नतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को बर्खास्त नहीं कर खुद इस्तीफा दे दिया। इससे लालू यादव चारों खाने चित हो गये।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 27 Jul 2017 04:10 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jul 2017 12:50 PM (IST)
नीतीश के दांव से लालू चारों खाने चित, सहानुभूति बटोरने का भी नहीं मिला मौका
नीतीश के दांव से लालू चारों खाने चित, सहानुभूति बटोरने का भी नहीं मिला मौका

पटना [रवि रंजन]। बिहार की महागठबंधन सरकार में लंबे समय से चल रहे विवाद के कारण आखिरकार सीएम नीतीश कुमार ने बुधवार की शाम छह बजे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके तुरंत बाद भाजपा ने सीएम नीतीश को समर्थन देने का एलान किया।

loksabha election banner

रात में ही जदयू और भाजपा के तमाम विधायकों की नीतीश कुमार के आवास पर बैठक हुई। राज्यपाल को समर्थन पत्र सौंपा गया। सुबह 10 बजे नीतीश कुमार एक बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बने गये। लेकिन अब सरकार महागठबंधन की नहीं, एनडीए की है। यह नाटकीय घटनाक्रम देश का शायद पहला ऐसा मामला होगा जब एक मुख्यमंत्री ने इस्तीफा देकर फिर से मात्र 16 घंटे के अंदर शपथ लिया। 

16 घंटों के अंदर इस्तीफा, समर्थन और फिर शपथ ग्रहण का दांव चलकर नीतीश ने लालू यादव को चारो खाने चित्त कर दिया। उन्‍होनें राजद को शहीद होने और सहानुभूति बटोरने का मौका नहीं दिया, बल्कि सबको चौंकाते हुए अपने इस्तीफे का दांव चला और पुन: मुख्‍यमंत्री बन गये।

यूं बढ़ी तल्ख्यिां

सीबीआइ रेड के बाद भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर जदयू ने शुरू से ही कड़ा रूख अख्तियार किया। बार-बार यह कहा गया कि जनता के सामने सफाई दें। जब जदयू ने देखा कि तेजस्‍वी यादव सफाई नहीं दे रहे हैं तो इशारों ही इशारों में इस्‍तीफा देने की भी बात कही गयी। लेकिन राजद अपने अडि़यल रूख पर कायम रहा। न तो सफाई दी और न ही इस्‍तीफा। और तो और लालू यादव ने यह कहकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश किया कि तेजस्‍वी पर यह मुकदमा उस समय दायर किया गया था, जब उसकी मूछें भी नहीं थी। 

नीतीश के सामने बचे थे ये रास्ते

भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर जीरो टॉलरेस का दावा करने वाले नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू की लगातार किरकिरी हो रही थी। अंत में जब नीतीश कुमार ने आरजेडी से अलग होने का फैसला लिया तो उनके सामने दो विकल्प थे। पहला ये कि वो तेजस्वी को बर्खास्त करते या फिर खुद इस्तीफा देते।

दोनों ही स्थितियों में उन्हें बीजेपी का समर्थन मिलता और सरकार बची रहती। तेजस्वी की बर्खास्तगी के बाद आरजेडी अगर समर्थन वापस लेती तो सदन में बीजेपी का समर्थन हासिल कर नीतीश विश्वास मत हासिल कर सकते थे। ऐसे में उन्हें न तो इस्तीफा देना होता और न ही फिर से शपथ ग्रहण की जरूरत पड़ती।

नीतीश ने नहीं दिया सहानुभूति बटोरने का मौका

नीतीश ने तेजस्वी को बर्खास्त कर उन्हें सहानुभूति बटोरने का मौका नहीं दिया। नीतीश कुमार यदि तेजस्‍वी को बर्खास्‍त कर देते तो वे इसका फायदा उठाने से नहीं चुकते। तेजस्वी राज्य में सहानुभूति बटोर सकते थे और उनका राजनीतिक कद भी इससे बढ़ सकता था।

यही कारण था कि लालू यादव और राजद  तेजस्वी से इस्तीफा न दिलवाने की बात पर अड़े रहे ताकि मजबूरन नीतीश को उन्हें बर्खास्त करना पड़े। आरजेडी इसका राजनीतिक फायदा उठा पाए, लेकिन नीतीश ने अपने दांव से लालू को चारो खाने चित्त कर दिया।

नीतीश ने बढ़ा लिया अपना कद

तेजस्वी को बर्खास्त करने की बजाय जब नीतीश खुद इस्तीफा देने राजभवन पहुंच गए तो उन्होंने एक बड़ा राजनीतिक संदेश देने में कामयाबी हासिल की कि वो भ्रष्‍टाचार से समझौता नहीं करेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें अपनी कुर्सी ही क्‍यों न छोड़नी पड़े।

इस्‍तीफा देने के बाद नीतीश कुमार ने राजभवन के बाहर आकर मीडिया से बात करते हुए यह साफ कर दिया कि वे किसी भी कीमत पर अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते हैं। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ अपनी नीति पर कायम रहेंगे। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.