कृषि योग्य जमीनों के असीमित अधिग्रहण का रास्ता खुला
नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। नए भूमि अधिग्रहण कानून के बाद भी उपजाऊ और बहुफसली जमीनों का अधिग्रहण रुकने वाला नही है। कानून के संशोधित मसौदे में खेती वाली जमीनों के अधिग्रहण को सीमित करने वाले प्रावधान खत्म कर दिए गए हैं। नई सीमाएं तय करने का काम राज्यों के हवाले है, जो कोई भी फैसला करने के लिए स्वतंत्र होंगी। यही नहीं संशोधित प्रावधानों के तहत निजी कंपनियां राज्य सरकारों को खाद्य सुरक्षा के नाम पर एक राशि देकर खेतिहर जमीनों का अधिग्रहण कर सकेंगी।
नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। नए भूमि अधिग्रहण कानून के बाद भी उपजाऊ और बहुफसली जमीनों का अधिग्रहण रुकने वाला नही है। कानून के संशोधित मसौदे में खेती वाली जमीनों के अधिग्रहण को सीमित करने वाले प्रावधान खत्म कर दिए गए हैं। नई सीमाएं तय करने का काम राज्यों के हवाले है, जो कोई भी फैसला करने के लिए स्वतंत्र होंगी। यही नहीं संशोधित प्रावधानों के तहत निजी कंपनियां राज्य सरकारों को खाद्य सुरक्षा के नाम पर एक राशि देकर खेतिहर जमीनों का अधिग्रहण कर सकेंगी।
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ का टप्पल हो या महाराष्ट्र के रायगढ़ का मानगांव, यमुना एक्सप्रेसवे से लेकर दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरीडोर तक खेतिहर जमीनों का अधिग्रहण सबसे ज्यादा विवादित है। नए भूमि अधिग्रहण कानून की बहस भी किसानों के आंदोलन से ही उठी थी। इसलिए प्रस्तावित कानून के पहले मसौदे में खेतिहर जमीनों के अधिग्रहण को सीमित रखने के प्रावधान किए गए थे ताकि फसल उत्पादन पर असर न हो और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहे। लेकिन 158 संशोधनों के साथ जो नया मसौदा सामने आया है, उसमें बहुफसली जमीनों को लेकर ज्यादातर हिफाजती प्रावधान खत्म कर दिए गए हैं। विधेयक में महज कुछ शब्दों के हेरफेर से खेतिहर जमीनों के अधिग्रहण की पूरी तस्वीर ही बदल गई है।
कानून के पहले मसौदे के खंड दस में यह प्रावधान था कि किसी जिले के दायरे में आने वाली कुल सिंचित बहुफसली जमीन के अधिकतम पांच फीसद हिस्से का अधिग्रहण हो सकेगा और वह भी अंतिम विकल्प के रूप में। लेकिन नए मसौदे में यह सीमा समाप्त हो गई है। अधिकतम सीमा का निर्धारण अब जिला नहीं बल्कि प्रदेश के स्तर पर होगा। अर्थात खेतिहर जमीनों का बड़ा हिस्सा अधिग्रहण के लिए खोल दिया गया है। प्रदेश स्तर पर भी इस तरह की जमीनों को लेकर कोई अधिकतम सीमा तय नहीं है। राज्य सरकारें अगर चाहेंगी तो यह सीमा निर्धारित कर सकेंगी। संशोधित मसौदे में यह भी प्रावधान है कि निजी कंपनी राज्य सरकार को एक कीमत देकर खेतिहर जमीन का अधिग्रहण कर सकेंगी, यह कीमत खाद्य सुरक्षा के नाम पर ली जाएगी जो राज्य सरकारें तय करेंगी। भूमि अधिग्रहण कानून पर काम रहे वकील विक्रमजीत बनर्जी कहते हैं कि यह बेहद खतरनाक प्रावधान है, निजी कंपनियां इसका इस्तेमाल कर खेतिहर जमीन खरीदेंगी, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ेगा।
संशोधित मसौदे के तहत खंड 17 में भूमि अधिग्रहण को लेकर जनसुनवाई को भी सीमित कर दिया गया है अर्थात अधिग्रहण पर आपत्ति दर्ज कराने के मौके भी कम हो गए हैं। भूमि अधिग्रहण को लेकर अब केवल उन्हीं ग्राम सभाओं व नगर पालिकाओं में जन सुनवाई होगी, जिनकी 25 फीसद जमीन अधिग्रहण के दायरे में आती है। देश में बहुत कम ग्राम सभायें इतनी बड़ी होंगी, जिनकी 25 फीसद जमीन का अधिग्रहण होगा, इसलिए अधिकांश अधिग्रहण जन आपत्तियों के दायरे से बाहर रह सकता है।
खंड दस का पेंच:-
-बिल के शुरुआती मसौदे के मुताबिक किसी जिले की बहुफसली जमीन का केवल पांच फीसद हिस्सा अधिग्रहीत हो सकता था, लेकिन संशोधन में यह सीमा हटा ली गई है।
-यदि कोई सीमा तय भी होगी तो वह प्रदेश के स्तर पर होगी। वैसे यह काम राज्य सरकार पर छोड़ दिया गया है।
-बडे़ पैमाने पर खेतिहर जमीन अधिग्रहण के लिए उपलब्ध होगी
दुरुपयोग का छेद:-
-सार्वजनिक उद्देश्य के नाम पर अधिग्रहीत भूमि निजी उपयोग रोकने की कोशिशों को इस बिल से बड़ा झटका लगेगा। नए मसौदे में एक खंड 93 है जो यह निर्धारित करता है कि अगर सार्वजनिक उपयोग के लिए अधिग्रहीत जमीन इस्तेमाल नहीं होता तो वह किसी दूसरे सार्वजनिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल हो सकेगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस प्रावधान के सहारे सरकारें जनहित में अधिग्रहीत जमीनों को सार्वजनिक उद्देश्य के नाम पर निजी क्षेत्र को दे सकेंगी।
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