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आएगा गरीबी का नया पैमाना

गरीबी रेखा के लिए 28 रुपये और 32 रुपये का पैमाना तयकर गरीबों के साथ मजाक करने का सरकारी अंदाज अब खत्म होने वाला है। मोदी सरकार उस तरीके को खत्म करने जा रही है, जिसके तहत प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आधार पर गरीबी रेखा तय होती है।

By Sachin kEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2015 12:58 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2015 06:09 AM (IST)
आएगा गरीबी का नया पैमाना

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। गरीबी रेखा के लिए 28 रुपये और 32 रुपये का पैमाना तयकर गरीबों के साथ मजाक करने का सरकारी अंदाज अब खत्म होने वाला है। मोदी सरकार उस तरीके को खत्म करने जा रही है, जिसके तहत प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आधार पर गरीबी रेखा तय होती है। संप्रग सरकार के दौरान इसी को आधार बनाकर गरीबी रेखा गांवों में 32 रुपये और शहरों में 28 रुपये तय हुई थी। गरीबी रेखा तय करने का यह आधार थोड़े-बहुत बदलाव के साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू के जमाने से चल रहा है।

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नीति आयोग के सदस्य बिबेक देवरॉय ने दैनिक जागरण से कहा कि गरीबी उन्मूलन पर नीति आयोग के टास्क फोर्स की रिपोर्ट इस माह के अंत तक आ जाएगी। इसमें गरीबी की एक व्यावहारिक परिभाषा भी होगी। देबरॉय ने कहा कि फिलहाल गरीबी रेखा नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण के आधार पर तय होती है। टास्क फोर्स विचार कर रही है कि क्यों न इस सर्वे की जगह सामाजिक, आर्थिक व जातिगत जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाया जाए। क्या बहु-सूचकों के आधार पर गरीबी का पैमाना तय किया जा सकता है? फिलहाल ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार है और जल्द ही इसे अंतिम रूप देकर आयोग को सौंप दिया जाएगा।

अब तक योजना आयोग गरीबी रेखा और गरीबों की संख्या तय करता था। लेकिन उसका उत्तराधिकारी नीति आयोग यह काम नहीं करेगा। देबरॉय का कहना है कि नीति आयोग के अलावा कोई अन्य संस्था इस काम को कर सकती है, जैसे भारतीय सांख्यिकीय आयोग। देबरॉय ने कहा कि सरकार के अलग-अलग कार्यक्रमों के लिए गरीबी का पैमाना भी भिन्न होगा। यह कई मानकों के आधार पर तय होगा, ताकि विगत में गरीबी रेखा 28 रुपये तय करने पर जो विवाद हुआ था, वह दोबारा न हो।

कब-कब कौन रहा गरीब
-गरीबी रेखा तय करने की शुरुआत योजना आयोग ने 1962 में एक कार्यकारी समूह बनाकर की थी।
-इसने प्रचलित मूल्यों के आधार पर प्रति व्यक्ति 20 रुपये मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा माना था।
-1979 में अलघ समिति ने गांवों में 49 रुपये तथा शहरों में 56.64 रुपये प्रति व्यक्ति मासिक व्यय को गरीबी रेखा माना।
-1993 में लकड़ावाला समिति ने गांवों में 205 रुपये तथा शहरों में 281 रुपये प्रति व्यक्ति खर्च को गरीबी रेखा माना।
-2009 में तेंदुलकर समिति ने गांवों में 447 रुपये तथा शहरों में 579 रुपये की गरीबी रेखा तय की।
-तेंदुलकर समिति द्वारा तय गरीबी रेखा पर विवाद हुआ तो संप्रग सरकार ने रंगराजन समिति का गठन किया।
-रंगराजन समिति ने गांवों में 972 रुपये तथा शहरों में 1407 रुपये प्रति व्यक्ति मासिक खर्च को गरीबी रेखा माना।

पढ़ेंः गांव में गरीबी का सच


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