नई सोच से मिला शासन-प्रशासन को नया आयाम, नीति निर्धारण में दिखी नई धार
प्रधानमंत्री की सोच ने शासन प्रशासन का तौर तरीका बदल दिया है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। केंद्र व राज्य के बीच परस्पर तालमेल से सरकार चलाने की प्रधानमंत्री की सोच ने शासन प्रशासन का तौर तरीका बदल दिया है। नतीजा- नीति निर्धारण में नई धार से योजनाओं पर क्रियान्वयन तेजी से हुआ कोआपरेटिव फेडरलिज्म की अवधारणा बुलंद हुई। प्रधानमंत्री ने ताकतवर राजनीतिज्ञ का परिचय देते हुए पुराने पड़ चुके नियम कानून पर झाड़ू चलाया तो स्वच्छता मिशन शुरु कर समूचे देश के जनमानस को जोड़कर गंभीर चुनौतियों को भी आसान बना लिया। वित्तीय स्तर पर पारदर्शिता और कारगर प्रबंधन के बूते बजट अनुशासन को कायम करने में सफल रहे।
पिछले तीन सालों में प्रधानमंत्री खुद राज्यों के साथ समन्वय बढ़ाने पर जोर देते रहे हैं। मोदी सरकार का मानना है कि राज्यों के सहयोग के बिना योजनाओं का तेजी से और सफल क्रियान्वयन संभव नहीं है। पिछले दिनों भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में भी मोदी सरकार का पूरा जोर पीएमओ और सीएमओ के बीच सीधा संवाद करने पर था। बैठक में मुख्यमंत्रियों से सवाल पूछा गया कि उन्होंने अपने सीएमओ में कोई विशेष अधिकारी पीएमओ के साथ समन्वय के लिए नियुक्त किया है या नहीं। मुख्यमंत्रियों को ऐसे अधिकारी की नियुक्ति जल्द-से-जल्द करने को कहा गया है।
सीएमओ और पीएमओ ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन में आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए सीधे डीएम से संवाद कायम करने में पीछे नहीं हटे। हर महीने के अंतिम बुधवार को 'प्रगति' की बैठक इसका ज्वलंत उदाहरण है। इस बैठक में प्रधानमंत्री खुद किसी एक क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाओं की समीक्षा करते हैं। प्रधानमंत्री की दमदार छवि से सरकार के नीति-निर्धारण को नई धार मिली है। जटिल और विवादित मुद्दों पर सीधा फैसला लेने के बजाय मनमोहन सिंह सरकार ने मंत्रिमंडलीय समूह गठित करने का तरीका ढूंढ निकाला था।
लगभग तीन दर्जन मंत्रिमंडलीय समूह में ये मुद्दे सालों-साल अटके रहते थे। मोदी सरकार ने इन सभी मंत्रिमंडलीय समूहों को एक झटके में खत्म कर दिया। इसके बजाय विकास की जटिल योजनाओं पर सुझाव के लिए सचिवों की समितियां बना दी गईं। सचिवों की समितियां सीधे पीएमओ की अपनी रिपोर्ट देते हैं और प्रधानमंत्री उनकी रिपोर्ट पर फैसला लेते हैं।
विकास की नीति ने ली पंचवर्षीय परियोजनाओं की जगह
गुजरात में विकास की नई इबादत लिखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू में ही साफ कर दिया था कि दिल्ली में शासन-प्रशासन के स्थापित मापदंडों को वे नहीं जानते हैं और यहां एक नई सोच के साथ आए हैं। सात दशक पुराने योजना आयोग का खत्म कर उसकी जगह नीति आयोग का गठन या फिर एफआइपीबी को निरस्त कर विदेशी निवेश की रास्ते में नौकरशाही की भूमिका को खत्म करना इसी नई सोच का परिणाम है।
आजादी के बाद से ही देश में विकास की रूपरेखा तय करने की जिम्मेदारी योजना आयोग के जिम्मे थी। योजना आयोग की पंचवर्षीय योजनाओं के सहारे विकास की दशा और दिशा तय की जाती थी। लेकिन मोदी सरकार ने साफ किया कि विकास के लिए किसी पंचवर्षीय योजना की जरूरत नहीं है, बल्कि इसके लिए नीति बननी चाहिए। योजनाएं बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने का काम केंद्र और राज्य सरकार का है।
इसी तरह आजादी के बाद से ही विदेशी निवेश को नियंत्रित करने का काम एफआइपीबी करता रहा था। कई मामलों में विदेशी निवेश के प्रस्ताव एफआइपीबी के पास सालों अटके रहते थे। सरकार ने विदेशी निवेश की राह आसान करने के लिए एफआइपीबी को ही निरस्त कर दिया। अब कोई विदेशी कंपनी जरूरी सिक्यूरिटी क्लीयरेंस लेकर किसी कंपनी में विदेशी निवेश कर सकेंगी।
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